राज्य भर में संविदा (ठेके) पर नियुक्त स्वास्थ्यकर्मियों में से 80 हजार स्वास्थ्यकर्मी गत सोमवार से ही हड़ताल पर हैं. उनका मांग जिन अधिकारों को लेकर हैं, उसका अधिकार खुद देश का संविधान देता है और साथ ही सुप्रीम कोर्ट भी उनके इस संवैधानिक अधिकार पर मुहर लगाई है.
इसके बाद भी बिहार राज्य सरकार संविदा पर नियुक्त इन स्वास्थ्यकर्मियों की मांगों को मानने के वजाय, उनके अधिकार के हनन पर उतर आई है और संविदा पर बहाल अपने अधिकार की मांग रहे इन 80 हजार स्वास्थ्यकर्मियों को हटाने का आदेश दे दिया है. इसके साथ-साथ उनके वेतन रोकने की भी धमकी दी है.
सरकार के इस फैसले के मद्देनजर स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव आर.के महाजन ने सभी जिलाधिकारियों और सिविल सर्जनों को एक पत्र जारी किया और कहा है कि हड़ताली स्वास्थ्यकर्मियों की सेवाएं तुरंत समाप्त की जाए और उनके जगह पर नई बहाली की जाए.
4 दिसंबर से पूरे राज्य में तकरीबन 80 हजार संविदा (कॉन्ट्रैक्ट) पर बहाल स्वास्थ्यकर्मी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं. हड़ताली स्वास्थ्यकर्मियों की मांग है कि उन्हें स्थाई स्वास्थ्यकर्मियों की तरह समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाए और उनकी सेवाएं भी स्थाई की जाए.
कॉन्ट्रैक्ट पर बहाल स्वास्थ्यकर्मी जो अनिश्चितकालीन हड़ताल पर है उनमें हेल्थ मैनेजर, फार्मासिस्ट, ओटी असिस्टेंट, टेक्नीशियन, डाटा ऑपरेटर और काउंसलर शामिल है.
संविदा पर नियुक्त स्वास्थ्यकर्मियों अपने जिन मांगों के समर्थन पर हड़ताल पर गये हैं, वे इस प्रकार हैं:
- सेवा नियमित हो तथा समान काम का समान वेतन दो.
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत् कर्मियों का वेतनमान नये सिरे से निर्धारित हो.
- डाटा आॅपरेटर और एंबुलेंस कर्मियों को आऊटसोर्सिंग से मुक्त किया जाये.
- आशा, ममता कार्यकत्र्ताओं के मानदेय का निर्धारण किया जाये.
संविदा पर नियुक्त इन स्वास्थ्यकर्मियों की मांगें न्यायोचित है, जिसे अविलम्ब लागू किये जाने की जरूरत है. संविदा पर नियुक्त किये जा रहे इन कर्मियों के काम के घंटे बेहद ही बेतरतीब और अमानवीय होता है. बार-बार उन्हें निकालने की धमकी का सामना करना पड़ता है. उनके वेतन न तो सही वक्त पर ही मिलता है और न ही उचित तरीके से.
संविदा पर नियुक्त स्वास्थ्यकर्मियों को एक और समस्या का सामना करना पड़ता है, वह है किसी निजी कम्पनी के माध्यम से संविदा पर नियुक्ति का. इन निजी कम्पनी के साथ संविदा पर नियुक्त स्वास्थ्यकर्मियों की दुर्दशा अत्यन्त ही भयानक है. उन्हें न तो वक्त पर वेतन ही मिलता है और न ही पूरा वेतन. ये निजी कम्पनी अपने मनमाने तरीके से वेतन का बंटवारा करते हैं और बड़े पैमाने पर वेतन देने में घोटाला करते हैं. ये कई-कई महीने के वेतन को सीधा गटक जाते हैं.
बेहद ही कम वेतन पर कार्यरत् ये स्वास्थ्यकर्मी अगर कहीं शिकायत करते हैं तो सीधे काम से निकालने की धमकी दी जाती है. डरे-सहमे ये कर्मी खामोश हो जाते हैं.
इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में संविदा पर नियुक्त स्वास्थ्यकर्मियों का आये दिन होने वाले प्रदर्शन इन निजी कम्पनी की धांधली का काला चिट्ठा है.
बेहद ही कम वेतन पर काम करने के वाबजूद हर वक्त नौकरी से निकाले जाने की धमकी के बीच संविदा पर नियुक्त ये स्वास्थ्यकर्मी आखिर किस प्रकार अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन कर सकते हैं ? ये सवाल है, जिसका जबाव राज्य सरकार को देना चाहिए और संविदा पर नियुक्त स्वास्थ्यकर्मियों के सवालों को राज्य सरकारों को गंभीरतापूर्वक हल करना चाहिए अन्यथा सरकार को किसी भी अनहोनी की आशंका के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि इन आन्दोलनकारी स्वास्थ्यकर्मियों ने साफ-साफ सामूहिक आत्मदाह करने की चेतावनी दी है. अगर ऐसा होता है तो बिहार में नीतिश-भाजपा सरकार की यह आखिरी सांस ही होगी.
S Chatterjee
December 9, 2017 at 1:47 am
पूँजीवाद जैसे जैसे पतन की ओर बढ़ेगा उसका जन विरोधी चेहरा और विकृत होता जायेगा। जो सरकारें अपनी जनता से बदला लेतीं है उनका पतन कोई नंही रोक सकता
Shyam lal Sahu
December 11, 2017 at 4:22 pm
कमोबेश पूरे देश में यही स्थिति है। सुप्रीम कोर्ट के “समान काम-समान वेतनमान” के निर्देश की लोकतांत्रिक और देशभक्त कहलाने वाली सरकारों द्वारा खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। जायज मांग करने पर कर्मियों को काम से निकालने की धमकियाँ मिलती हैं।