हिमांशु कुमार, गांधीवादी विचारक
पिछले वर्ष की हकीकत इस वर्ष की भी हकीकत है. जो मजदूर दो 2000 किलोमीटर पैदल चलकर जा रहे हैं, उनके जूते चप्पल फट चुके हैं. वह भूखे हैं .पानी नहीं मिल रहा पांव में छाले पड़ चुके हैं. उन्हें पुलिस वाले डंडे मारते हैं. मजदूर इतने थके हुए होते हैं कि वे डंडे देखकर भागते नहीं. भाग सकते भी नहीं. वे मार खाते रहते हैं और चुपचाप चलते रहते हैं. पुलिस वाले अपनी ड्यूटी समझकर उन्हें पीट रहे हैं. गरीब इसे अपनी औकात समझ कर मार खा रहा है.
आप मजदूर को खाना नहीं दे सकते, बस ट्रेन नहीं दे सकते, किराया नहीं दे सकते, अपने 20 लाख करोड़ में से एक फूटी कौड़ी नहीं दे सकते लेकिन आप अपनी सरकार व्यवस्था अपनी अमीरी अपने हैसियत और रुतबे का रौब दिखाने के लिए उसे बस पीट सकते हैं.
आप उसे लगातार पीट रहे हैं. जब वह मजदूरी मांगता है तब पीटते हैं. जब उसकी जमीन छीननी होती है, तब उस आदिवासी को मारते हैं. आप लगातार मारते ही जा रहे हैं. आपके राष्ट्रवाद में कमजोर का स्थान नहीं है. वहां ताकतवर राष्ट्र बनाने का फितूर है.
आप की राजनीति में कमजोरों का कोई स्थान नहीं है इसलिए इन मजदूरों की तरफ ध्यान ना देना, इनकी तरफ देखना भी नहीं, इन्हें पीटना, इन्हें मार डालना यह सब आपके राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा है. और जब कभी गरीब पलटकर आपके सिपाही पर हमला कर दे तब फिर आप हिंसा हिंसा चिल्लाते हैं. उसे आतंकवाद कहते हैं. आपको अपनी हिंसा कब नजर आएगी ?
आपका विकास का मॉडल, आप की राजनैतिक व्यवस्था, आप की आर्थिक व्यवस्था सब हिंसा से लथपथ है. आप वायरस से भले बच जाए लेकिन यह हिंसा एक दिन आप की अर्थव्यवस्था राजनीतिक व्यवस्था सबको खा जाएगी.
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हमने माना कि जनता की सांप्रदायिकता को भड़का कर आतंकवादी सत्ता पर बैठ गए हैं. अगर सत्ता पर आतंकवादी बैठ जाए तो उनको गलत से रोकने की जिम्मेदारी किसकी है ? संविधान में इसीलिए अदालतों को सरकार से स्वतंत्र रखा गया है कि अगर सरकार कुछ गलत करें तो अदालतें उस पर कंट्रोल रखें. लेकिन अगर अदालतें भी आतंकवादियों का साथ देंगी, सांप्रदायिक हो जाएंगी, जातिवादी हो जाएंगी तो फिर संविधान लोकतंत्र और देश की जनता को कौन बचाएगा ?
आज इस देश की असली दौलत यानी जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए संघर्ष करने वाले आदिवासी जेलों में है. अभी पिछले महीने ही दंतेवाड़ा में महिला सामाजिक कार्यकर्ता हिड़में को जेल में डाला गया है. आदिवासियों के संघर्ष को समर्थन देने वाले बहुत सारे सामाजिक कार्यकर्ता जैसे फादर स्टैन स्वामी, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा और बहुत सारे लोग जेलों में बंद है. क्या अदालतों को इन लोगों की जमानत मंजूर करके इन्हें रिहा नहीं करना चाहिए था ?
सिद्दीक कप्पन मुस्लिम पत्रकार जो हाथरस में बलात्कार कांड की रिपोर्टिंग करने के लिए जा रहा था, उत्तर प्रदेश के गुंडे मुख्यमंत्री ने उस पत्रकार को जेल में डाल दिया और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम लगा दिया. इस पत्रकार को कोरोना हो गया तो अस्पताल में बेड के साथ जंजीरों से बांधकर रखा गया. क्या अदालत को यह सब दिखाई नहीं देता क्या ? इस पत्रकार को जमानत पर रिहा नहीं किया जाना चाहिए था ?
दिल्ली में अमित शाह ने दंगे करवाए. मुस्लिमों के घर और दुकानें जलवाई और बदले में उमर खालिद समेत एक हज़ार से ज्यादा छात्रों और बेगुनाह नौजवानों को जेल में डाल दिया. क्या अदालतों को इन सभी बेगुनाहों को जमानत पर रिहा करने का हुक्म नहीं देना चाहिए था ? याद कीजिए अमेरिका में एक पुलिस अधिकारी ने राष्ट्रपति ट्रंप को सोशल मीडिया पर कहा था कि ‘आप शटअप कीजिए.’ क्या भारत में किसी पुलिस अधिकारी, किसी जज, किसी अधिकारी की इतनी हिम्मत नहीं बची है कि वह संविधान न्याय लोकतंत्र सच्चाई के पक्ष में एक शब्द भी बोल सके ?
ऐसा मुर्दा देश है यह ? अगर देश ने मुर्दा बनना ही चुन लिया है तो इस देश की मृत्यु बहुत नजदीक है. फिर किसी दूसरे को इसे मारने की जरूरत नहीं पड़ेगी, यह खुद ब खुद मर जाएगा. अगर जिंदा हो तो दिखाओ कि तुम जिंदा हो.
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आरएसएस वाले चालाकी से इतिहास को तोड़ते मरोड़ते हैं और मुगलों को हिन्दुओं पर जुल्म करने वाला बताते हैं. फिर ये संघी ज्यादा होशियारी दिखाते हुए नौजवानों को भड़काते हैं कि ‘आज के मुसलमान उन्हीं जालिम मुगलों के वंशज हैं इसलिए हम हिन्दुओं का इनसे नफरत करना जायज है.’
असलियत में दोनों ही बातें झूठ हैं. मुग़ल उतने ही जालिम थे जितने हिन्दू राजा थे और उतने ही उदार भी थे, जितने हिन्दू राजा थे.
‘औरंगजेब सवा मन जनेऊ देखने के बाद ही खाना खाता था’, संघी कहते हैं.
अरे मूर्खों ! चार ग्राम का एक जनेऊ होता है (मैं भी बामन हूं मुझे पता है). तो सवा मन जनेऊ के लिए कितने ब्राह्मणों को रोज मुसलमान बनाया जाता होगा ?
औरगंजेब का शासन 1658 से 1707 तक चला. तो सवा मन याने पचास किलो जनेऊ उनचास साल तक तुलवा कर खाना खाया. यानी इतने ब्राह्मणों को मुसलमान बनाया तो 50 किलो, यानी 50 हजार ग्राम भाग दो 4 ग्राम से तो आया 12500 जनेऊ रोज. अब इसे 49 सालों से गुणा करो. 49 x 365 x 12500= 22.35 यानी बीस करोड़ पैंतीस लाख ब्राह्मणों को संघियों के मुताबिक़ औरंगजेब ने मुसलमान बनाया, जबकि आजादी के समय भारत की आबादी 36 करोड़ 10 लाख थी.
उस समय भारत की आबादी में 13.4 प्रतिशत ही मुसलमान थे यानी आजादी के समय भारत में कुल मुसलमान 4.83 करोड़ थे. भारत के कुल 4.83 करोड़ मुसलमानों में ज्यादातर पुराने दलित हैं, जो बराबरी की तलाश में इस्लाम की शरण में गये (नहीं मानते तो विवेकानन्द को पढ़ लो). अब सवाल उठता है कि मुगलों के आने से पहले से मुग़ल काल खत्म होने तक ब्राह्मणों की आबादी उतनी ही रही. फिर ये मुसलमान बने हुए बाईस करोड़ बामन कहां से आये और कहां को गये ?
इतिहास में ऐसा भी कहीं नहीं लिखा कि इन मुसलमान बन चुके बामनों ने कहीं दुसरे देश में शरण ली हो. इस तरह आप देख सकते हैं कि यह आरएसएस वाले पूरी तरह शुद्ध गप्प को इतिहास कह कर फैलाते हैं.
अब असली मुद्दे की बात. सच्चाई यह है की मुग़ल काल में भारत में भक्तिकाल का विकास हुआ. कृष्ण का बाल रूप प्रेमी रूप मुग़ल काल में ही कविताओं और कथाओं में लोकप्रिय हुआ. कई मुस्लिम कृष्णभक्त कवि भी हुए और जम कर कृष्ण भक्ति की. मानुस हों तो वही रसखान बसों ब्रज गोकुल गाँव की ग्वारन जैसी कृष्णभक्ति की कविताएँ लिखी.
मुग़लकाल में ही रामचरित मानस लिखी गई. तुलसीदास तो राम का चरित्र लिखते थे और मस्जिद में सोते थे. विनय पत्रिका में तुलसीदास खुद लिखते हैं मांग के खईबो मसीत (यानी मस्जिद) को सोइबो, ना लेबे को एक ना देबे को दुई.
और अब बिलकुल असली बात. आज अट्ठारह सौ सत्तावन के गदर शुरू होने का दिन है. जब सारे देश से गदर के सिपाही इकठ्ठा हुए तो वो किसके पास गये कि अब आप हमारे राजा बनिये ? गदर के सिपाही ज्यादातर हिन्दू थे लेकिन वे किसी हिन्दू राजा के पास नहीं गए. वो मरणप्राय आखिरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफर के पास पहुंचे और कहा ‘उठो अब तुम हमारे बादशाह हो !’ अब संघियों से पूछिए अबे झूठों की औलादों, अगर मुग़ल जालिम थे तो गदर के सिपाही बिस्तर पर पड़े मुग़ल के पास क्यों गये थे ? असलियत दूसरी ही है, फैलाई दूसरी जा रही है.
इस देश की तहजीब, इस देश की जुबान, इस देश की सोच में सब शामिल हैं. सब इस मुल्क के हैं, यह मुल्क सबका है. सब इससे मुहब्बत करते हैं लेकिन संघी इस मुल्क से मुहब्बत नहीं करते. वो नफरत फैलाते हैं और मुल्क को कमजोर करते हैं. आइये गदर के वक्त की यकजहदी को बरकरार रखने का अहद लें और इन नफरत फ़ैलाने वालों से हमेशा संघर्ष करते रहने का वादा करें. इन्कलाब जिंदाबाद !
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अमेरिका के न्यूजर्सी प्रांत में एक मंदिर बन रहा है. इस मंदिर बनाने वाली संस्था का संबंध नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी से है. मंदिर बनाने वाली इस संस्था द्वारा भारत से दलित मजदूरों को अमेरिका ले जाया गया.
इस हिंदूत्ववादी संगठन ने इन दलित मजदूरों के पासपोर्ट छीन कर अपने पास रख लिए. इन दलितों को बंधुआ मजदूर बना लिया गया. इनसे गैरकानूनी तरीके से 13 घंटे प्रतिदिन काम कराया गया.
अमेरिका में 15 डालर प्रति घंटे की न्यूनतम मजदूरी की बजाय इन्हें 1 डालर प्रति घंटे की गैरकानूनी मजदूरी दी गई. अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई ने मंदिर पर छापा मारा और 90 मजदूरों को वहां से मुक्त कराया है. इस हिंदुत्ववादी संगठन के ऊपर अमेरिकी अदालत में मुकदमा दायर किया गया है. इन मजदूरों को कांटेदार तारों के अंदर लोहे के कंटेनरों में गर्मी में जानवरों की तरह कैद कर रखा जाता था. इन्हें खाने में बहुत खराब दाल और आलू दिए जाते थे.
यह हिंदुत्ववादी संस्था सारी दुनिया में मंदिर बनाती है. पिछले साल आबूधाबी में नरेंद्र मोदी ने जिस मंदिर का उद्घाटन किया था, वह भी इसी संस्था ने बनाया था. इससे पहले भी इस संस्था के एक मंदिर में एक नाबालिग 17 साल के मजदूर की मौत हो चुकी है. इससे पहले भी इसके द्वारा बनाए जा रहे हैं कुछ मंदिरों के निर्माण कार्य को अमेरिकी सरकार ने रजिस्टर में मजदूरी ना चढ़ाए जाने के कारण काम बंद करवा दिया था.
बताया जा रहा है कि अमेरिका में इस तरह का बंधुआ मजदूरी का यह हाल के वर्षों में सबसे बड़ा कांड है.
ऐसा नहीं हो सकता कि इस गैरकानूनी काम की जानकारी भारत के प्रधानमंत्री को ना हो क्योंकि वह इस संगठन से नजदीक से जुड़े हुए हैं.
हमें अंदेशा है कि भारत की हिंदुत्ववादी सरकार अपने इन हिंदुत्ववादी अपराधियों को बचाने के लिए अमेरिकी सरकार पर जरूर दबाव डालेगी.
एक बात साफ है कि इन हिंदुत्ववादियों के इस काले कारनामे से अमेरिकी लोगों की नजर में भारत की इज्जत को बहुत बड़ा धब्बा लगेगा. यह एक बहुत शर्मनाक और घिनौनी हरकत है, जो इन हिंदुत्ववादियों के द्वारा पहले भारत में दलितों को सताया गया, अब यह अमेरिका तक में वही अपराध कर रहे हैं.
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ऑस्ट्रेलिया में सन 60 तक आदिवासियों को पेड़, पौधों और जानवरों की श्रेणी में और उसी कानून के अंतर्गत माना जाता था. इंसान के लिए बने कानून आदिवासियों के लिए नहीं थे. आज भारत में वैसा ही माहौल है.
भारत के आदिवासी इलाकों में विकसित और तथाकथित सभ्य लोगों ने अपने सैनिक भेज दिए हैं और वह लोग उनके जंगलों, खदानों, नदियों और पहाड़ों पर कब्जा करने के लिए आदिवासियों की हत्या करना, उन्हें जेलों में ठूंसना, महिलाओं से बलात्कार करना लगातार कर रहे हैं लेकिन भारत के बुद्धिजीवी, भारत के लेखक, साहित्यकार, कवि और राजनेता अमूमन चुप है.
आदिवासियों के सफाए के बाद हम फिर से सभ्य, सुसंस्कृत, महान, धार्मिक, विश्व गुरु और विश्व की महाशक्ति कहेंगे. हमें अपनी हिंसा अपनी क्रूरता दिखाई नहीं देगी और जो लोग हमारी हिंसा और क्रूरता की तरफ ध्यान दिलाएंगे उन्हें हमारी सरकार जेल में डाल देगी. और भारत का प्रधानमंत्री कहेगा कि यह जो आदिवासियों की आवाज उठाने वाले लोग हैं यह लोग मुझे मारना चाहते हैं.
जैसे सुधा भारद्वाज जीएन साईबाबा, गाडलिंग, अरुण फरेरा, शोमा सेन और अन्य अनेकों सामाजिक कार्यकर्ताओं को इस समय जेलों में डाला गया है
यह भयानक दौर है जहां करोड़ों लोगों के खिलाफ लाखों सिपाहियों को इस्तेमाल किया जा रहा है. भारत की आबादी का ताकतवर तबका भारत की कमजोर आबादी के खिलाफ अपने सैनिक भेज कर उन्हें मार कर रहा है और भारत चुपचाप देख रहा है.
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