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दांतेवाड़ा : सुखमती 14 साल की थी

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दांतेवाड़ा : सुखमती 14 साल की थी

हिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्त्ताहिमांशु कुमार, गांधीवादी विचारक

सुखमती 14 साल की थी. सुखमती की बड़ी बहन कमली की शादी उसी गांव में रहने वाले बामन से हुई थी. सुखमती के गांव का नाम गम्फूड़ था. गम्फूड़ उन तीन गांवों में से एक था जो सरकारी कंपनी एनएमडीसी की लोहा खदान प्रोजेक्ट के लिए विस्थापित हुए थे. इन गांवों की जमीनों पर से आदिवासियों के झोपड़े हटाकर उनकी खेती खत्म करवा कर भारत सरकार ने लोहा खोदना शुरू किया था, और उन्हें जंगल में खदेड़ दिया गया था.

इन आदिवासियों से वादा किया गया था कि इन तीनों गांव का ऐसा विकास होगा जो सारे देश के लिए एक मॉडल बनेगा. स्कूल होगा, आंगनबाड़ी होगी, सड़कें होंगी. यह तब की बात है जब दिल्ली में नेहरू प्रधानमंत्री थे. सरकार ने लोहा खोदना शुरू किया.

रोज़ कई सारी रेल गाड़ियों में भरकर लोहा विशाखापट्टनम समुद्र किनारे तक जाता था. वहां से पानी के जहाजों में भरकर यह लोहा जापान भेज दिया जाता था. सुखमती के गांव और बाकी के 2 गांव को सरकारी कंपनी एनएमडीसी ने गोद लिया था, और इनके सर्वांगीण विकास का वादा किया था.

सरकार वहां से लोहा खोदती रही. लोहा खोदने के लिए बाहर से साहब लोग आकर कंपनी में नौकरी पाते रहे. उनके लिए स्टाफ क्वार्टर बने, क्लब बने, सरकारी डाक बंगले बने, ट्रक ड्राइवरों के क्वार्टर बने. पूरा एक शहर बस गया, लेकिन सरकार इन तीनों गांवों का विकास करना भूल गई.

गांव में न कोई स्कूल खोला गया, न कोई आंगनबाड़ी, ना कोई स्वास्थ्य केन्द्र. गांव के लोग सब्जी और जंगल से इकट्ठा करे हुए फल ले जाकर इन साहब लोगों को बेच देते थे. कुछ लोग जंगल से सूखी लकड़ियां इकट्ठी करके बचेली और किरंदुल शहर में चलने वाले होटल ढाबों में बेच कर अपना घर चलाते थे.

सरकारी कंपनी एनएमडीसी लोहा खोदने के बाद पहले धोती थी, बाद में रेल गाड़ी में लादती थी. लोहा धोने के बाद जो लाल पानी बचता था, वह लाल पानी इन गांवों की तरफ बहा दिया जाता था.

लोहे के लाल पानी से गांव की नदी बर्बाद हो गई थी. गाय, बैल नदी का पानी पीकर जल्दी मर जाते थे. लाल धूल फसल पर जम जाती थी इसलिये खेती करना भी मुश्किल हो गया था. मच्छर बहुत थे, कई लोग हर साल मलेरिया से मर जाते थे. विकास का मॉडल खड़ा होने की बजाय विकास के नाम पर धब्बा बन चुके थे यह तीनों गांव.

2OO5 में सरकार ने यहां सलवा जुडूम शुरू किया, जिसके तहत और बड़ी-बड़ी कंपनियों को बस्तर में जमीने दी जानी थी. इस बार तो सरकार को आदिवासियों से विकास का कोई वादा करने की जरूरत भी नहीं पड़ी. सरकार ने आदिवासियों के गांव जलाने शुरू कर दिये.

भारी तादाद में सिपाही जंगलों में भर दिए गए. जगह-जगह पुलिस के कैंप बन गए. राजस्थान, हरियाणा, तमिलनाडु और नागालैंड तक के सिपाही जंगलों में झुंड बनाकर घूमने लगे. आदिवासी लड़कियों का घर से निकलना मुहाल हो गया.

एक रोज 14 साल की सुखमती अपनी बहन के देवर भीमा के साथ किरंदुल बाजार गई. वहां से लौटते समय अपनी मां के लिए उसने ₹10 की जलेबी खरीदी थी. रास्ते में भीमा आगे-आगे था, सुखमति पीछे-पीछे थी. रास्ते में सुखमति ने देखा जंगल में सिपाही फैले हुए हैं. सिपाहियों ने सुखमति और भीमा को पकड़ लिया.

भीमा को पकड़ कर एक पेड़ से बांध दिया गया. सिपाही सुखमति के साथ छेड़खानी करने लगे. दो सिपाहियों ने सुखमति के कपड़े फाड़ दिए. सिपाहियों ने सुखमति को रौदना शुरु किया. सुखमती संख्या भी भूल गई कि उसे कितने सिपाहियों ने रौंदा. जी भर जाने के बाद सुखमती और भीमा को थाने ले जाया गया.

सिपाहियों ने कहा अब इनका क्या करें ? छोडेंगे तो यह बाहर जाकर सब कुछ बता देंगे. साहब ने कहा गोली से उड़ा दो और वर्दी पहना दो. अगले दिन अखबारों में छापा गया हमारे सुरक्षाबलों ने वीरता का परिचय देता देते हुए दो खूंखार माओवादियों को ढेर कर दिया है. सुखमति और भीमा की लाशें उसके परिवार वालों को दे दी गई. भारत के विकास का जो वादा चाचा नेहरू ने किया था, उसके परखच्चे उड़ चुके थे.

विकास के नाम पर सरकारी सिपाहियों द्वारा रौंदी गई 14 साल की किशोरी की लाश गांव के बीच में पड़ी थी. भीमा का बड़ा भाई बामन पिछले हफ्ते अदालत जाने के लिये गांव से निकला. रास्ते में सिपाहियों ने बामन को पकड़ कर बुरी तरह पीटा और चाकू से उसका पांव काटने की कोशिश की. बामन को इसी रविवार जेल में डाल दिया गया.

मुझे खबर मिली है गांव वालों नें सुखमति की लाश का दाह संस्कार नहीं किया है. गांव के आदिवासी चाहते हैं कि मीडिया वाले आयें और विकास के नाम पर उनकी बेटियों की दुर्गति देख कर जायें. मैनें अपने कुछ पत्रकार मित्रों को वहां जाने के लिये फोन भी किया, लेकिन ज्यादातर पत्रकारों को उनके चैनलों ने चुनाव के समाचार लाने में लगाया हुआ है.

सुखमती की जगह अपनी बेटियों को रखकर सोचता हूँ तो दिल कांप जाता है, यह कौन सी जगह आ गये है हम ?

सुखमती 20.3.2017

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ROHIT SHARMA

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