हिमांशु कुमार, गांधीवादी विचारक
गोडसे को लगा कि गांधी राष्ट्रभक्त नहीं है. गोडसे को यह भी लगा कि मैं ज्यादा राष्ट्रभक्त हूँ, तो गोडसे ने गांधी को गोली से उडा दिया. यह है इनका राष्ट्रभक्ति पर फैसला करने का तरीका, और यह है इनकी समझ. इस समझ और इस तरीके से यह सबकी राष्ट्रभक्ति पर फैसला करने वाले न्यायाधीश बने घूमते हैं, यही मूर्खता ही हिंदुत्व की राजनीति का आधार है.
जिस राष्ट्र की यह भक्ति करते हैं, इनके उस राष्ट्र में देश की जनता नहीं है. इनके सपने के राष्ट्र में आदिवासी नहीं हैं, दलित नहीं हैं, मुसलमान नहीं हैं, इसाई नहीं हैं, इनका राष्ट्र कल्पना का राष्ट्र है, सचमुच का देश नहीं.
इनसे कभी पूछिए कि अच्छा तुम मुसलमानों को इतनी गाली बकते हो ? तो अगर तुम्हारे मन की कर दी जाय तो तुम मुसलमानों के साथ क्या करोगे ? क्योंकि तुम भारत से मुसलमानों के सफाए के नाम पर हज़ार दो हज़ार को ही मार पाते हो. भारत में तो करीब बीस करोड़ मुसलमान हैं. क्या करोगे इनके साथ ? क्या सबको मारना चाहते हो ? या सबको हिन्दू बनाना चाहते हो ? या सबको भारत से बाहर भगाना चाहते हो ? क्यों नफरत करते हो उनसे ? करना क्या चाहते हो ? तो यह संघी बगलें झाँकने लगते हैं.
मेरे एक दोस्त ने एक बार एक संघी नेता से पूछा कि आप अखंड भारत फिर से बनाने की बात संघ की शाखा में करते हैं, और कहते हो कि अफगानिस्तान, बंगलादेश, पकिस्तान सबको मिला कर अखंड भारत बनाना है लेकिन यह सभी देश तो मुस्लिम बहुल हैं. तो अगर इन्हें भारत में मिलाया गया तो भारत में मुसलमान बहुमत में हो जायेंगे ? और अगर हम इन्हें हिन्दू बनाना चाहते हैं तो इतनी बड़ी आबादी को हम थोड़े से हिन्दू कैसे बदल पायेंगे ? इस पर वह संघी नेता आंय बायं करने लगे और कोई जवाब नहीं दे पाए.
आरएसएस की कोई समझ नहीं है. ये मूर्खों और कट्टरपंथियों का जमावड़ा है. इनका काम भाजपा के लिए वोट बटोरने और उसके लिए हिन्दू युवकों के मन में ज़हर भरते रहने का है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक सेवक संघ ने जितना नुकसान भारत का किया है, उतना कोई विदेशी शत्रु भी नहीं कर पाया.
भारत के युवा जब तक खुले दिमाग और खुली समझ वाले नहीं बनेंगे, जब तक युवा देश की जाति, सम्प्रदाय और आर्थिक लूट की समस्या को हल नहीं करेंगे, भारत इसी दलदल में लिथडता रहेगा. यह साम्प्रदायिक जोंकें भारत का खून ऐसे ही पीती रहेंगी.
तीन हज़ार साल से जिन्होंने इस भू-भाग के मूल निवासियों को दानव कह कर उन्हें मारा, उन्हें दास बना कर उन्हें हीन काम करने पर मजबूर किया, उन्हें शूद्र कहा और उनकी ज़मीने छीन ली. यहाँ के अस्सी प्रतिशत शूद्रों को बेज़मीन बना दिया, वही लोग फिर हिंदुत्व के रथ पर सवार होकर ज़मीने हथियाने निकले हैं. पिछली बार इन्होने इसे धर्म युद्ध कहा था इस बार ये इसे देश रक्षा कह रहे हैं.
इन्हें ही पता चलता है कि राम कहाँ पैदा हुए थे और ये भी कि वो जो बाबर की मस्जिद है उसी के नीचे पैदा हुए थे. औरतों की बराबरी, जाति का सवाल, आर्थिक समानता की बातों को ये लोग चीन के माओवादियों का षड्यंत्र बताते हैं. बड़ी होशियारी से ये असली मुद्दों से ध्यान भटकाते हैं. जैसे ही लोग असली मुद्दों पर सवाल उठाते हैं ये तुरंत एक बम धमाका या दंगा करवाते हैं.
ये लोग डरते हैं कि हज़ारों सालों से बिना मेहनत किये जो अपने धर्म, जाति या आर्थिक शोषण की व्यवस्था की वजह से मज़ा कर रहे हैं उनके हाथ से कहीं ये सत्ता निकल ना जाय. इनसे देश को मुक्त कराये बिना भारत से ना गरीबी मिटेगी ना शांति आयेगी. देश से मुहब्बत करने वालों को साम्प्रदायिकता और आर्थिक लूट करने वाले इन गिरोहों से देश को मुक्त करवाने की लड़ाई लडनी ही पड़ेगी.
( 2 )
आज़ादी के आन्दोलन में ही तय हो गया था कि आज़ादी के बाद भारत कैसा बनाया जायेगा ? गांधी, भगत सिंह, नेहरु, पटेल, अम्बेडकर सब अपनी-अपनी तरह से आज़ादी के बाद के भारत के लिए आदर्श तय करने में लगे हुए थे.
आज़ाद भारत के लिए सबके सपनों में मामूली से फर्क होने के बावजूद कुछ बातें एक जैसी थी. सभी लोग बराबरी और न्याय को आज़ाद भारत का आधार मानते हुए जाति धरम से मुक्त गाँव, गरीब-मजदूरों की हालत बदलने को आज़ादी के बाद सबसे पहला काम मानते थे. लेकिन उस वख्त भी एक कौम ऐसी थी जो आज़ादी की लड़ाई में तो शामिल नहीं थी लेकिन शातिर बिल्ली की तरह आज़ादी मिलने के बाद सत्ता पर कब्ज़ा करने के मंसूबे बना रही थी. यह थी राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ और हिंदू महासभा.
यह उन लोगों की जमात थी जो सदियों से भारत में सत्ता के नज़दीक रहे थे, व्यापारी थे, बड़ी जात के अमीर थे, ज़मींदार थे और सत्ता के दलाल थे. ये लोग डर रहे थे कि कहीं ऐसा ना हो कि आज़ादी के बाद बराबरी आ जाय और कुचले दबे नीच जात के गरीब गुरबे भी हमारे बराबर हो जाएँ. इसलिए इन सत्ता के दलालों ने आज़ादी मिलते ही भारत की राजनीति को समानता की ओर से मोड़ कर साम्प्रदायिकता की तरफ करने के लिए पूरी ताकत लगा दी.
आज़ादी मिलते ही सवयम सेवक संघ ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी और बाबरी मस्जिद में राम की मूर्ती रख दी. इन लोगों ने पूरी ताकत से इस बात को प्रचारित किया कि आज़ाद भारत की राजनीती का लक्ष्य सबकी समानता नहीं बल्कि यह होना चाहिये कि राम का मंदिर बनेगा या नहीं.
तब से ये लोग भारत की राजनीति को आर्थिक और सामाजिक समानता की पटरी से उतार कर साम्प्रदायिकता की पटरी पर लाने का प्रयत्न करते रहे और अंत में सफल भी हो गए. आप देखेंगे कि इन संघियों को समानता और न्याय का नाम सुनते ही बुखार चढ़ जाता है और ये आपको कम्युनिस्ट और विदेशी एजेंट कहने लगते हैं.
लेकिन आज़ादी की लड़ाई का काम अभी अधूरा है. ये लोग धोखा देकर भले ही कुछ समय के लिए सत्ता पर काबिज हो गए हैं लेकिन भारत में सभी नागरिकों की बराबरी और सबको न्याय का बड़ा काम अभी बाकी है. हम हारे नहीं हैं.
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