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कश्मीर घाटी को नोचती गिद्धें

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ऐसे हज़ारों उदाहरण हैं, जिनमें लोगों को बिना सबूत के आजीवन कारावास की सज़ा दी गई. एक नौजवान को 35 साल तक जेल में रखा जाता है और फिर सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया जाता है. इस नौजवान ने 35 साल की सज़ा क्यों काटी ? कश्मीर का इतिहास इस बात का गवाह है कि यह क़ौम अपनी आज़ादी के लिए लड़ती रही है और यह चुप बैठने वाली नहीं है. जितना दमन बढ़ेगा, यह और अधिक ताक़त से मुक़ाबला करेगी.

कश्मीर घाटी को नोचती गिद्धें

कश्मीर घाटी दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत जगहों में से एक है, जिसकी ख़ूबसूरती पूरी दुनिया को हैरान कर देती है. ऊंचे पहाड़, बर्फ़ से ढंकी पहाड़ों की चोटियां, ज़मीन पर बर्फ़ की सफे़द चादर, बहती धाराएं, नदियां, झरने, हरियाली का अपना अलग रूप, झीलों की गोद में रहने वाले लोग आदि सभी बहुत ही मनभावन हैं लेकिन इस ख़ूबसूरती को बरकरार रखने वाले लोगों समेत भारतीय शासकों ने इसकी ख़ूबसूरती को दुनिया की सबसे बड़ी जेल बना दिया है. पैलेट गन, यातना शिविर, जेलें, बलात्कार आदि की बर्बरता ने यहां के लोगों की ख़ूबसूरती को भी मटियामेट कर दिया है.

कुछ साल पहले जब मुझे गर्मियों में जम्मू-कश्मीर घूमने का मौक़ा मिला तो वहां के एक निवासी से मेरी बातचीत हुई. उनके एक प्रश्न ने मेरे मन में बहुत सारे प्रश्न खड़े कर दिए. प्रश्न था कि एक बच्चे में बंदूक़ के सामने पत्थर लेकर खड़े होने की हिम्मत कैसे होती है ? निवासी ने आगे कहा कि यहां के निवासियों की नौकरियां जा रही हैं, यहां के लोगों की मदद से और संसाधनों से बिजली पैदा होती है, लेकिन फिर भी हमें उपलब्ध नहीं है. हम अपने बच्चों को अच्छी तरह से शिक्षित कर रहे हैं, लेकिन फिर भी बच्चों पर अत्याचार इस कदर जारी है कि हमें आज़ादी के लिए आवाज़ उठानी पड़ती है.

धारा 370 को ख़त्म करने के बाद, भारत की केंद्र सरकार ने भी जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का अधिकार छीन लिया है. तब से, जन आक्रोश बढ़ रहा है और केंद्र सरकार ने विभिन्न आदेश जारी करके लोगों की आवाज़ को दबाने की कोशिश की है. इसके बाद दिन-ब-दिन ख़ुफि़या एजेंसियों की गश्त बढ़ा दी गई. धारा 370 के पक्ष में बोलने वालों को जेल में डाल दिया गया, मीडिया पर पाबंदियां लगाई गईं, कश्मीर की सड़कों पर गिरे ख़ून की तस्वीरें, नौजवानों और बुजुर्गों की पिटाई के वीडियो पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, ताकि कोई ख़बर सामने न आए. इंटरनेट एक साल से अधिक समय तक बंद रखा गया, बाद में सबसे धीमी गति वाला 2जी चालू किया गया. मंशा साफ़ थी कि केंद्र सरकार के अत्याचारों की कोई तस्वीर बाहरी दुनिया तक न पहुंचे.

मोदी सरकार की नीति है कि जो कुछ भी उसके अनुकूल नहीं, उसे रोक दिया जाए. पिछले समय से मोदी सरकार द्वारा सोशल मीडिया के डर से तरह-तरह की पाबंदियां लगाई जा रही है और अब केंद्र सरकार ने नया आदेश जारी किया है, जिसके तहत एक विशेष बल (स्पेशल टास्क फ़ोर्स) का जम्मू-कश्मीर में गठन किया गया है, जिसका काम है किसी भी सरकारी अधिकारी के सोशल मीडिया अकाउंट पर नज़र रखना और समय-समय पर किसी भी तरह के ‘राष्ट्र-विरोधी’ कार्यक्रम में भाग लेने या सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने की ख़बर पुलिस के विशेष बलों के पास पहुंचाना. यदि कोई ऐसा करता पाया जाता है, तो उसे निकाल दिया जाएगा, उसका मासिक वेतन रोका जा सकता है या उसे तरक़्क़ी नहीं दी जाएगी, और निचले पद पर भेज दिया जाएगा. इस स्पेशल फ़ोर्स को यह भी अधिकार है कि उसे किसी भी तरह की कोई कार्रवाई या सबूत पेश करने की ज़रूरत नहीं है, व्यक्ति को सीधे बाहर का रास्ता दिखाने के लिए अगली कार्रवाई की जा सकती है.

अब बात करते हैं, इस विशेष टास्क फ़ोर्स के असली मक़सद की. कश्मीर में दमनकारी सरकार के ख़िलाफ़ कोई आवाज़ न उठा सके, पुलिस-सेना के ख़िलाफ़ कोई बोल न सके और बोलने वाले को देशद्रोही घोषित करके जेल में ठूंसा जा सके. भाजपा-संघ की नज़र में देशद्रोहियों की परिभाषा अलग है, जो हर तर्कसंगत व्यक्ति अच्छे से जानता है. यह सरकार रोकना तो सबको चाहती है, ताकि सोशल मीडिया पर कोई अपने हक़ की बात न कर सके, लेकिन सरकारी अधिकारियों पर शिकंजा नौकरी छीनने की धमकियों से कड़ा किया जा सकता है. इसलिए अधिकारियों को विशेष रूप से सोशल मीडिया पर ऐसा करने और न करने के निर्देश दिए गए थे.

इस विशेष बल का एक अन्य कार्य किसी भी नई भर्ती के लिए पढ़ाई के दस्तावेज़ों के साथ-साथ सोशल मीडिया अकाउंट की जांच करना है. कोई कार्रवाई या पोस्ट उन्हें अच्छी नहीं लगी, तो नौकरी नहीं दी जाएगी. सीधे-सीधे मोदी सरकार बस इतना कहना चाहती है कि यहां के लोग हर काम हमारी इच्छा अनुसार करें. खाना-पीना, कपड़े पहनना, बोलना, पढ़ना, लिखना और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना, सब हमारी इच्छा से होना चाहिए. अब आप समझ ही गए होंगे कि केंद्र सरकार किस तरह की नीतियों से कश्मीरी लोगों के मानवाधिकारों का हनन कर रही है. केंद्र सरकार इस काम के लिए अलग से स्वयंसेवकों की भर्ती भी कर रही है, यह हिंदू राष्ट्र के विचारकों के लिए काम करेंगे.

ये कारवाईयाँ पिछले कई सालों से चल रही हैं. 2015 में, केंद्र सरकार ने कश्मीर में पीडीपी से मिलकर करीब 60 सरकारी अधिकारियों को बर्ख़ास्त किया. अब भी लगातार अधिकारियों को नौकरी से निकाला जा रहा है. जो कोई भी अपने अधिकारों या लोगों की आवाज़ में योगदान देता है, उसे चुप कराया जा रहा है.

  • 2019 में, तीन अधिकारियों को सोशल मीडिया पर एक राजनीतिक कार्यक्रम में भाग लेने की तस्वीरें पोस्ट करने के लिए निकाल दिया गया था.
  • अप्रैल 2019 में, कश्मीर के आवास नियमों के ख़िलाफ़ बोलने के लिए एक बिजली मुलाजिम को निकाल दिया गया था.
  • 38 वर्षीय अध्यापक इदरीस जनमीर 14 साल से सेवा कर रहे थे कि उन्हें अचानक लेफ़्टिनेंट की ओर से बर्ख़ास्तगी के आदेश का एक पत्र मिला. यह बात अध्यापक को पत्र पढ़ने के बाद ही पता चली. निष्कासन का कारण यह बताया गया कि वह सरकार को डरा रहा था और कथित तौर पर बच्चों को सरकार के ख़िलाफ़ भड़का रहा था. इदरीस ने रिपोर्टर को बताया था कि उसे पहले छह महीने के लिए जेल में रखा गया था, लेकिन सबूतों के अभाव में अदालत ने बरी कर दिया था, लेकिन फिर भी बिना किसी सबूत के उसे निकाल दिया गया.

ऐसे हज़ारों उदाहरण हैं, जिनमें लोगों को बिना सबूत के आजीवन कारावास की सज़ा दी गई. एक नौजवान को 35 साल तक जेल में रखा जाता है और फिर सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया जाता है. इस नौजवान ने 35 साल की सज़ा क्यों काटी ?

केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर सहित पूरे भारत में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध बढ़ा रही है. जब भी सरकार के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया पर कोई आंदोलन होता है तो सरकार उसे बंद कर देती है, उस पर रोक लगा दी जाती है. जैसे ‘प्रधानमंत्री इस्तीफ़ा दो’ का टैग इन दिनों सोशल मीडिया पर चल रहा था, तो इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया और खाते बंद कर दिए गए.

इसी तरह 5 अगस्त 2019 के बाद, ट्विटर को यह भी निर्देश दिया गया था कि देश की ‘शांति और सुरक्षा’ का उल्लंघन करने वाले कुछ खातों और गतिविधियों को न दिखाएं. ये खाते और गतिविधियां वही हैं जो धारा 370 के पक्ष में बोल रहे थे और इसे देश की शांति भंग करने वाला क़रार दिया गया था. कश्मीरी पत्रकारों और निवासियों सहित 2272 खातों को सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म से ब्लॉक कर दिया गया था.

अब सोशल मीडिया पर कौन क्या कर रहा है, कोई 24 घंटे आप पर निगरानी रख रहा हो तो आपको कैसा लगेगा. किसी भी व्यक्ति के व्यक्तिगत मामलों की निगरानी करना और इन सभी सूचनाओं को पुलिस और सेना तक पहुंचाने का काम विशेष बल और स्वयंसेवक करेंगे और करते आ रहे हैं.

सरकार सीधे-सीधे कह रही है कि अपना मुंह बंद रखो और चुपचाप काम करो. जिस किसी को भी सरकारी नौकरी करनी है, वह मानसिक रूप से तैयार होकर आए. सिर्फ़ आदेश का पालन करे, कोई सवाल नहीं और कोई विरोध नहीं. इस विशेष फ़ौज़ के निशाने पर लगभग 750 अधिकारी हैं, जिन्हें किसी भी समय नौकरी से निकाला जा सकता है.

सरकार की ऐसी नीतियां हमेशा से जनविरोधी रही हैं. अब सरकार ने कोरोना का डर खड़ा किया हुआ है. आम जनता भी इस बात को महसूस कर रही है कि कोरोना की आड़ में काले क़ानून लागू किए जा रहे हैं. इस प्रकार सेहत सुविधाओं का अच्छा प्रबंध करने की बजाए, सरकारें विशेष बल गठित कर रही हैं कि लोगों की आवाज़ को कैसे कुचलना है और उनके अधिकार कैसे छीने जा सकते हैं. नर्सों, डॉक्टरों की कमी है, लेकिन स्वयंसेवकों और सेना की भर्ती की जा रही है, ताकि लोगों की गतिविधियों की सूचना सरकार तक पहुंच सके.

ऐसी फ़ौजें, शक्तियां सरकारों के काले क़ानूनों को लागू करती रही हैं. जनता की ताक़त को ही इन फ़ौजों का मुंह मोड़ना पड़ेगा. कश्मीर का इतिहास इस बात का गवाह है कि यह क़ौम अपनी आज़ादी के लिए लड़ती रही है और यह चुप बैठने वाली नहीं है. जितना दमन बढ़ेगा, यह और अधिक ताक़त से मुक़ाबला करेगी. इस अत्याचारी सरकार के दमन का यही एक हल है.

  • स्रोत : मुक्ति संग्राम – बुलेटिन 7, मई-जून (संयुक्तांक) 2021 में प्रकाशित

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ROHIT SHARMA

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