राम चन्द्र शुक्ल
गोलमोल बातों से किसानों की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आने वाला है. कृषि वैज्ञानिक एम. एस. स्वामीनाथन की संस्तुतियां बिना लागू हुए पड़ी हैं. किसान आयोग का गठन भी लंबित है. पिछड़ा वर्ग आयोग, अल्पसंख्यक आयोग, महिला आयोग, अनुसूचित जाति व जनजाति आयोग व मानवाधिकार आयोग, सूचना का अधिकार आयोग जैसे जनता को जाति, धर्म व लिंग के आधार पर विभाजित करने वाले तमाम आयोग बने हुए हैं, पर किसानों के लिए आयोग गठित करने का विभिन्न दल वादा तो करते हैं पर वास्तव में करते कुछ नहीं.
इसका सबसे बड़ा कारण है कि देश के किसान संगठित नही हैं. किसान जब तक मेहनतकशों से एकता कायम कर अपने वाजिब हकों के लिए आन्दोलन व संघर्ष नहीं करेंगे तब तक उनके जीवन की स्थितियों में कोई बदलाव नहीं आने वाला है. मैं पिछले चार साल से कृषि विभाग उत्तर प्रदेश, सचिवालय में अंडर सेक्रेटरी के पद पर कार्यरत हूं. आप जो बता रहे हैं उन सरकारी टोटकों से मैं भलीभांति परिचित हूं.
किसान की मूल समस्या है उसके द्वारा उत्पादित वस्तुओं की लागत में बेतहाशा वृद्धि तथा उसकी उपज का लाभकारी मूल्य का न मिलना. यहां तक कि सरकारों द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (मिनिमम सपोर्ट प्राइज) का भी न मिलना. यह कितनी बड़ी विडंबना है कि धरती से मुफ्त में निकाल कर पानी 20/- रुपये प्रति लीटर बेचा जा रहा है तथा समुद्र से फ्री में निकाला जाने वाला नमक भी 20/- रुपये प्रति किलोग्राम बिकता है, परन्तु 5-6 महीने की मेहनत व मशक्कत तथा बेतहाशा लागत से तैयार धान 20/- रुपये प्रति किलोग्राम भी नहीं बिक पाता है.
2017 के कृषि से जुड़े एक तुलनात्मक आंकड़े रुपेश कुमार ने तैयार किया है, उसे यहां हम प्रस्तुत करते हैं –
- 2008 में सरकारी टीचर का वेत्तन 30000 रुपये
2016 में सरकारी टीचर का वेतन 50000 रुपये - 2008 में किसान के गेहूं की कीमत 1300 रुपये
2016 में किसान के गेहूं की कीमत 1500 रुपये - 2008 में कपास का कीमत 3500 रुपये
2016 में कपास का कीमत 4500 रुपये - 2008 में मक्का की कीमत 1000 रुपये
2016 में मक्का की कीमत 1200 रुपये - 2008 में ज्वर की कीमत 1200 रुपये
2016 में ज्वर की कीमत 1400 रुपये - 2008 में विधायक का वेतन 60000 रुपये
2016 में विधायक का वेतन 125000 रुपये
दूसरी ओर कीटनाशकों व उर्वरक के दाम दुगुने हो गये –
- 2008 में डीएपी की कीमत 450 रुपये
2016 में डीएपी की कीमत 1250 रुपये - 2008 में पोटाश की कीमत 400 रुपये
2016 में पोटाश की कीमत 900 रूपये - 2008 में सुपर की कीमत 150 रुपये
2016 में सुपर की कीमत 300 रुपये
और सरकार कहती है किसानों की आय डबल करेंगे ? आय डबल केवल सरकारी कर्मचारियों की, नेताओं की और व्यापरियों की करो, किसानों की तो ऐसे ही डबल हो जायेगी. और मजे की बात. सरकार किसानों के लिए कृषि मेला, कृषि रथ, किसान कल्याण जैसी योजनायें चलाती है, जिसमें करोडों रुपये बर्बाद करती है.
कुछ महीनों पहले कृषि महोत्सव का आयोजन हुआ था जिसमें सरकार ने 450 करोड़ रुपये खर्च किये थे, एक भी किसान बता दे कि उसने इस योजना से 450 रुपये का भी फायदा लिया हो ? सरकार की सारी योजनाओं का लाभ केवल कृषि से जुड़े कर्मचारी ओर व्यापारी ले रहे हैं.
सरकार की योजनाओं का लाभ सिर्फ 20 प्रतिशत किसान ले पाते हैं.
किसानों द्वारा खरीदे जाने वाले बीजों, रासायनिक उर्वरकों, कृषि यंत्रों/ट्रैक्टरों, पंपिंग सेटों तथा डीजल के मूल्यों में पिछले 25-30 सालों में जिस अनुपात में बढ़ोत्तरी हुई है, उस अनुपात में कृषि उपजों के मूल्यों में बढ़ोत्तरी नहीं हुई है. इस बढ़ते अंतर के कारण खेती घाटे का उद्यम बन गयी है. इस घाटे को पूरा करने के लिए किसान कर्ज लेता है, जिसे अदा करने की स्थिति में वह कभी नहीं पहुंच पाता. फलस्वरूप कर्जों की अदायगी न कर पाने तथा खेती में निरंतर घाटा होने के कारण उसे अपनी जिंदगी बोझ से दबी व अंधकारमय नजर आने लगती है और कोई उम्मीद की किरण नजर न आने के कारण वह आत्मघात का रास्ता अख्तियार कर लेता है.
ग्रामीण क्षेत्रों में सभी ग्राम सभाओं में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की सरकारी दुकानें खुली हैं पर अनाज के सरकारी क्रय केंद्र हर ग्राम सभा में क्यों नही खोले गये हैं ? सरकारी कोटे की दुकानों में वितरण के लिए अनाज जिला मुख्यालयों में स्थिति एफसीआई के गोदामों से आता है. कोटेदारों को अनाज का वितरण ब्लाक मुख्यालयों से होता है, पर इन ब्लाकों में किसानों से सरकारी दरों पर खरीदे जाने वाले अनाज के भंडारण की व्यवस्था नहीं है.
किसान चौतरफा ठगी का शिकार है. किसान व मेहनतकशों की जिंदगी में वास्तविक बेहतरी से भरा बदलाव तभी आएगा, जब देश व दुनिया की राजनीतिक व आर्थिक सत्ता पर उनका अधिकार होगा तथा सभी तरह के निर्णय लेने का हक उनके पास होगा. निजी सम्पत्ति का खात्मा कर देश की सारी चल व अचल संपत्ति राज्य के अधिकार में होगी. शिक्षा स्वास्थ्य आवास व रोजगार देना राज्य की जिम्मेदारी होगी और सभी को उसकी क्षमता के अनुसार सुनिश्चित रोजगार की व्यवस्था होगी.
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