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अपनी ही अवाम के साथ इतनी घातक-घिनौना षड्यंत्र एक गद्दार ही कर सकता है

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अपनी ही अवाम के साथ इतनी घातक-घिनौना षड्यंत्र एक गद्दार ही कर सकता है

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से प्रचार करते हुए केन्द्र की मोदी सरकार ने गांव-गांव में श्मशान बनाने का ऐलान किया था. उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही मोदी सरकार के इशारे पर चंद दिनों के अंदर ही श्मसान का निर्माण शुरू कर दिया, जिसमें सैकड़ों बच्चों की मौत ऑक्सीजन की आपूर्ति उत्तर प्रदेश के भाजपाई मुख्यमंत्री अजय कुमार बिष्ठ के निर्देश पर बंद कर दिये जाने पर हुई. और अब भाजपाई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्देश पर देशभर में ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित कर देश को ही श्मसान में तब्दील कर दिया है.

जानकार बताते हैं कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जैसे अंग्रेजपरस्त अंग्रेजी जासूसी संगठन जो पुरातनपंथी संगठन है, के एजेंट के पास देश की हर समस्या का एक ही समाधान है, वह है अतीत में खारीज की जा चुकी मनुस्मृति आधारित मानवविरोधी ग्रंथ को देश का संविधान के बतौर स्थापित कर देश को राजतंत्र के अधीन कर, देश की सारी सम्पत्ति चंद लोगों के अधीन करना और शेष मनुष्यों को दास या गुलाम बना डालने की ओर धकेल देना.

अंग्रेजों के जाने के बाद आरएसएस को उम्मीद थी कि अंग्रेजी शासक देश की सत्ता उसी के हाथ सौंपेगा. परन्तु, अंग्रजों ने यह सत्ता कांग्रेस के हाथों में सौंपा, जिस कारण आरएसएस ने विद्रोह, हत्या और माफी को बेहद ही चतुराई से इस्तेमाल किया.

जानकार बताते हैं कि आरएसएस ने सेना के अंदर घुसपैठ कर तत्कालीन भारतीय राजसत्ता के खिलाफ सैन्य विद्रोह की भी आपराधिक कोशिश की थी, परन्तु उसके नाकामयाब होने के बाद उसने दूसरा तरीका अपनाया और देश के कोने कोने तक हजारों तरह के संगठनों का जाल बिछाकर देश को वैचारिक तौर पर खोखला कर अंततः 2014 में नरेन्द्र मोदी के आपराधिक नेतृत्व में सत्ता हासिल कर लिया.

यह एक बुनियादी तथ्य है कि अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के बाद लंबे दिनों तक आरएसएस भारतीय संविधान और राष्ट्रीय झंडा को पैरों तले कुचलता रहा, आग में जलाता रहा और उसे सम्मान देने से कतराता रहा. यहां तक कि अभी भी वह भारतीय संविधान को दृढतापूर्वक नकारता रहा है, उसे जलाता रहा है.

नवनिर्मित संविधान के तहत देश की एक बड़ी आबादी बेहद ही शिक्षित, बुद्धिमान और जागरूक हो गई, जिस कारण पुरातनपंथी मनुस्मृति का लागू कर पाना आरएसएस के लिए अभी बेहद कठिन है, जिसे आरएसएस 70 साल का गड्ढ़ा कहता है, और उसे भरनेे केे नाम पर देश के जागरूक बुद्धिजीवी, पत्रकारों, लेखकों, इतिहासकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, वकीलों, मानवाधिकारवादियों समेत विरोध दर्ज कर रहे तमाम लोगों की खुलेआम हत्या, बलात्कार की धमकी, लिंचिंग, फर्जी मुकदमों में जेलों में बंद करना अथवा नकली मुठभेड़ दिखाकर हत्याकांड रचकर आतंक का बेरहम तांडव मचा रहा है.

इसके अलावा आरएसएस के एजेंट नरेन्द्र मोदी इस ‘गड्ढों’ को भरने के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य को तबाह करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दिया. बड़े पैमाने पर स्कूल, काॅलेजों और विश्वविद्यालयों को बदनाम किया, उस पर हमले किये गये, उसे बंद किया गया यहां तक कि शिक्षा हासिल करना ही मजाक का पर्याय बना दिया गया. ‘केवल पैसे वाले ही पढ़ेगा’ की तर्ज पर शिक्षा को पैसे वालों के लिए आरक्षित करने का प्रयास किया गया. समाज के कमजोर तबकों को कोरोना महामारी के नाम पर शिक्षा से दूर भगाने का दुश्चक्र तैयार किया.

दूसरी ओर, अस्पतालों का निजीकरण कर अब केवल पैसे वालों का ही उपचार हो, इसे सुनिश्चित करने का ठोस तरीका अपनाया है आरएसएस संचालित केन्द्र की राजनीतिक सत्ता ने. इसका विभत्स रूप हम इन दिनों कोरोना के नाम पर उत्पन्न की महामारी के नाम पर बड़े पैमाने पर लोगों को मामूली चिकित्सीय सुविधा ऑक्सीजन, दवाई, बेड तक से महरूम कर नरसंहार कर आतंकित कर देना, इस दौर में देखा जा रहा है.

आरएसएस भारत की राजनीति सत्ता का उपयोग कर वह एक ओर देश में इस कदर दमनचक्र चला रही है, वहीं दूसरी ओर रीढ़विहीन डरपोक यह शासक अन्तर्राष्ट्रीय साम्राज्यवादी ताकतों के हितों के साथ तालमेल बिठा कर देश की बहुसंख्यक आबादी के साथ गद्दारी कर रही है, और कोरोना जैसी काल्पनिक महामारी के नाम पर अपना हित साधने में साम्राज्यवादी ताकतों का भी इस्तेमाल कर रही है.

इस भयानक दुश्चक्र को स्पष्ट करते हुए प्रमोद रंजन सोशल मीडिया के अपने पेज पर लिखते हैं – भारत समेत दुनिया भर में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है, जो चाहते हैं कि सरकारें उनका कथित भला करने के नाम पर यह दमनात्मक कार्रवाइयां बंद करें लेकिन जनता की इच्छाओं में परिवर्तन के लिए एक मनोवैज्ञानिक युद्ध छेड़ दिया गया है.

यह युद्ध कई स्तरों पर है, जिसकी मुख्य खिलाड़ी संचार-तकनीक और सोशल मीडिया के क्षेत्र में कार्यरत कंपनियां हैं. यह एकतरफा युद्ध किस स्तर पर पहुंच चुका है, इसे समझने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की इससे संबंधित रणनीतियों को देखने की आवश्यकता है.

पिछले कुछ समय से विश्व स्वास्थ्य संगठन, स्वतंत्र रूप से सोचने और निर्णय करने को एक बीमारी बता रहा है, जो उसके अनुसार ‘कोविड से भी अधिक खतरनाक’ है. उसने इसे Infodemic (इंफोडेमिक) यानी सूचनाओं की महामारी का नाम दिया है. 30 जून से 16 जुलाई, 2020 के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बीमारी को सैद्धांतिक स्वीकृति दिलाने के लिए टेक कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ मनोवैज्ञानिकों और चिकित्साशास्त्रियों के साथ क्लोज डोर बैठक की.

इस गुप्त बैठक में सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्रों के विशेषज्ञ; एप्लाइड गणित एंड डेटा साइंस, डिजिटल स्वास्थ्य और प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग, सामाजिक और व्यवहार विज्ञान, मीडिया-अध्ययन क्षेत्र के विशेषज्ञ, मार्केटिंग गुरू व अनेक सरकारों के प्रतिनिधि शामिल हुए.

बैठक में इस बीमारी का इलाज करने वाली पद्धति का नाम Infodemiology (इंफोडेमिलॉजी) रखने की स्वीकृति दी गई और इसे एक नया ‘विज्ञान’ कहा गया. और इसे चिकित्सा शास्त्र की एक स्वतंत्र शाखा के रूप में विकसित किया जाना तय किया गया.

उस बैठक के बाद से हमारे दिमागों को ठीक करने के लिए, हमें उनकी इच्छाओं के अनुरूप सोचने, आज्ञाकारी बनाने के लिए बड़े पैमाने पर इलाज जारी है. यह घोषित और आधिकारिक तौर पर किया जा रहा है. इस इलाज को मुख्य रूप से टेक कंपनियों के माध्यम से जमा किए गए हमारे निजी डेटा के आधार पर अंजाम दिया जा रहा है.

चूंकि अब यह चिकित्सा-शास्त्र की एक शाखा है, इसलिए शीघ्र ही इसे पढ़ाया जाएगा और इसके डिग्रीधारक तैयार किए जाएंगे. जैसा कि युवाल नोआ हरारी अपनी पुस्तकों में ध्यान दिलाते रहे हैं कि जीव-विज्ञान उस जगह पर पहुंच गया है, जहां यह संभव है कि चिकित्सा-विज्ञान की यह नई शाखा मनुष्य के मनोविकारों, जिसमें तर्क, विवेक और प्रतिरोध शामिल है, को दूर करने के लिए कुछ दवाएं प्रस्तावित करे.

शिक्षा से दूर हो रही आवाम और सीधे तौर पर मौत के घाट उतारी जा रही है और निर्लज्ज गद्दार यह मोदी सरकार अपनी निगाह केवल अपनी सत्ता की कुर्सी की हिफाजत में लगा रही है. देश को गुमराह कर रहा है. अपनी ही अवाम के साथ इतनी घातक, घिनौना षड्यंत्र केवल एक गद्दार ही कर सकता है.

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