आपको पता है 4 दिन पहले दिल्ली के साकेत स्थित “मैक्स हॉस्पिटल” में क्या हुआ था ?
एक महिला को साकेत स्थित मैक्स हॉस्पिटल में जुड़वा नवजात बच्चे हुए. बच्चों की स्थिति ख़राब थी. पहले डॉक्टरों ने बच्चे को 3 महीने तक शीशा में रख कर इलाज करने की बात कही. इसके लिए 50 लाख रुपए माँगा तो उस ग़रीब महिला के रिश्तेदारों ने पैसे देने में असमर्थता जतायी.
तो हॉस्पिटल ने अगले दिन दोनों मासूम बच्चों को मृत घोषित कर कफ़न में लपेट कर एक “बॉक्स” में बंद कर दोनों मासूम बच्चों को महिला के घर वालों को दे दिया और हाथ में 1 लाख का बिल थमा दिया.
महिला के रिश्तेदार जब उन दोनों मासूम बच्चों का लाश ले कर दफ़नाने जा रहे थे, रास्ते में ही उस बॉक्स में हलचल हुआ और बच्चे के हिलने-डुलने की आवाज़ आयी.
आनन-फ़ानन बच्चे को एक छोटे अस्पताल “अग्रवाल हॉस्पिटल” में भर्ती कराया. आज वो बच्चा हंसी-ख़ुशी खेल रहा है, पर दूसरे बच्चे को बचाया नहीं जा सका.
अब सवाल उठता है कि भारत के सबसे बड़े और बेहतरीन अस्पतालों में से एक मैक्स अस्पताल ने ही कहीं उन दो में से एक बच्चे की हत्या तो नहीं किया ?
क्योंकि उस महिला के घर वालों ने जब पैसे देने में असमर्थता जतायी तो जल्दी भगाने के चक्कर में बच्चे को मृत घोषित कर “डेथ सर्टिफ़िकेट” देकर दोनों ज़िंदा बच्चे को हॉस्पिटल के बॉक्स में पैक कर निकाल दिया, जिसके कारण एक बच्चे की मौत दम घुटने से हो गयी होगी ?
आख़िर पैसे के लिए ये निजी अस्पताल वाले कैसे इतने गिर सकते है कि फूल जैसे मासूम को मरने के लिए तड़पता छोड़ मृत घोषित कर दिया ?
जैसे ही ये ख़बर दिल्ली के केजरीवाल सरकार को मालूम पड़ा तो केजरीवाल सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा कि ‘अस्पताल की थोड़ी सी भी ग़लती निकली तो पूरे मैक्स हॉस्पिटल का लाइसेन्स रद्द कर दिया जाएगा.’
यह सुनते ही पूरा हॉस्पिटल टीम आनन-फ़ानन में बच्चे के घरवालों से सम्पर्क कर उससे बात करना शुरू कर मामले में लीपा-पोती करने का कोशिश किया.
पर तब-तक केजरीवाल सरकार ने जांच समिति बना कर 3 दिन में प्राथमिक रिपोर्ट और 7 दिन में अंतरिम रिपोर्ट सौंपने का फ़रमान सुना दिया.
पहली बार किसी बड़े निजी अस्पताल में इतना ख़ौफ़ है.
ऐसे मौक़े पर अक्सर सरकारें बिक जाया करती है. मंत्री के स्विस बैंक खाते में पैसा जमा कर मामले को दबा दिया जाता है, पर केजरीवाल सरकार ईमानदार सरकार है, वो किसी से नहीं डरती है.
आपको याद होगा की आज से ठीक डेढ़ साल पहले ग़रीबों का इलाज नहीं करने के आरोप में केजरीवाल सरकार ने 700 करोड़ का फ़ाइन मारा था, जो आज तक भारत के इतिहास में कभी नहीं हुआ था.
शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में माफियाओं का राज ख़त्म करने के लिए ही केजरीवाल सरकार ने वर्ल्ड क्लास “मोहल्ला क्लीनिक” प्रोजेक्ट लाया, जिसके कारण स्वास्थ्य-शिक्षा माफ़िया ही नहीं बल्कि भाजपा-कांग्रेस भी केजरीवाल सरकार का दुश्मन हो गयी क्योंकि इन पार्टियों को चुनाव के लिए चंदा इसी लुटेरे निजी हॉस्पिटल, निजी स्कूल, बड़े व्यापारी और उद्योगपतियों से मिलता है, बाद में यही लोग जनता को लुटते हैं, परन्त्तु आम आदमी पार्टी को चंदा आम आदमी से मिलता है, इसलिए मफलर वाला यह आम आदमी पार्टी की सरकार आम आदमी के लिए काम करता है.
इसके विपरीत देश के तमाम भागों में आम आदमी इलाज के नाम पर हो रहे फर्जीवाड़ा में खुद को लुटा और मिटा देता है. शिकायत करने पर भी कोई कार्रवाई सरकार नहीं करती. जांच तो दूर की बात है, कई बार तो शिकायत दर्ज भी नहीं होने देती. बिहार के मधेपुरा की ललिता प्रकरण में निजी अस्पतालों की खुली लूट जगजाहिर हो चुकी है, जिसमें उसका पति और नाबालिग बेटा अस्पताल के लाखों रुपए की फीस जमा करने के लिए भीख मांगने पर मजबूर हो गए.
पाकिस्तान-चीन-हिंदू-मुस्लिम जुमले के आड़ में भाजपा-कांग्रेस को वोट देने वाले आज इस हालत के ज़िम्मेदार ख़ुद ही हैं. अफ़सोस जब तक वे इस बात को समझेंगे तब तक कुछ बचा नहीं रहेगा !
– रमेश पुजारी के सहयोग से