केन्द्र की अपराधिक मोदी सरकार ने दिल्ली बॉर्डर पर पिछले पांच महीनों से अपनी मांगों के समर्थन में डटे हुए किसानों को डराने के लिए अब नया पैतरेबाजी कर रहा है. उसने यह अफवाह फैलाया है कि किसान आंदोलनकारियों को भगाने के लिए ‘ऑपरेशन क्लीन’ जैसा कोई अभियान चलाने वाला है, और सेना की सहायता से आंदोलनकारी किसानों को खदेड़ा जायेगा. इसके लिए बकायदा हवाई जहाज से हवाई सर्वे भी किया गया है.
नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली केन्द्र की हत्यारी और अपराधिक सरकार ऐसा दिखा रही है मानो अब वह किसान आंदोलनकारियों पर हमलावर होने जा रही है. पर सावरकर के राजनीतिक वंशज, भगत सिंह के राजनीतिक वंशजों के खिलाफ यह दुस्साहस कभी नहीं करेगा, यह हम सब अच्छी तरह जानते और समझते हैं. तब क्या होगा ? होगा यह है कि सावरकर के राजनीतिक वंशज भगत सिंह के राजनीतिक वंशजों को डराने के वजाय वह देश के अन्य हिस्सों की अपेक्षाकृत पिछडी जनता को डराने की कोशिश कर रहा है, जो अपनी मौत पर केवल टकटकी ही लगा सकता है.
इस ऑपरेशन क्लीन जैसे अभियान चलाने के पीछे जो कुतर्क दिया जा रहा है, वह है कोरोना जैसे राजनीतिक बीमारी का भयादोहन. ऐसा लगता है मानो कोरोना के अतिरिक्त अन्य किसी भी बीमारियों का बजूद ही नहीं है और लोग केवल कोरोना से ही मर रहा है. गेल इंडिया के वरिष्ठ मैनेजर अजय कबीर इसकी शानदार व्याख्या अपने सोशल मीडिया पेज पर करते हैं. आज उन्होंने लिखा है –
रोज़ लगभग तीस हज़ार लोग मरते हैं बिना कोरोना के. कल कोरोना से 1411 लोगों की मृत्यु हुई. शवदाह गृह पर इतना बर्डेन बढ़ गया ? यह एकमात्र उदाहरण है, भय का माहौल बनाने का, ऐसे बहुत हैं. इसका कैस्केडिंग इफ़ेक्ट भी हैं. लोग ज़रा-सा लक्षण आने पर, भर-भर के टेस्ट कराने पहुंच रहे हैं. ज़रा-सी दिक़्क़त आने पर, बेड के लिए जुगाड़ लगाना शुरू कर देते हैं. बड़का लोग तो शायद हॉस्पिटल में पर्मनेंट एक सुइट बुक ही किए बैठे होंगे.
कल कुल 1411 मृत्यु कोरोना से हुई, और कल ही बाक़ी बीमारियों से जो मौतें हुई वह निम्नलिखित हैं :
- हृदय रोग : 4219
- सीओपीडी : 2630
- कैन्सर : 2136
- हृदय घात : 2011
- डायरिया : 2087
- लोअर रेस्प्रिटॉरी संक्रमण : 2000
- टीबी : 1232
- नीओनेटल डिसॉर्डर : 1178
अपने आस-पास के दायरे में, जब कोई व्यक्ति अन्य बीमारी से मरता है तो उसकी सूचना बहुत छोटे दायरे में सिमट जाती है, लेकिन जब कोविड से मरता है तो उसकी सूचना का दायरा और तीव्रता बड़ी हो जाती है. याद करो आपके दोस्तों में कितनों के दोनों पेरेंट्स अभी जीवित हैं या नहीं ? नहीं याद, इसलिए की उनमें कोई कोविड से नहीं मरे. एक बात और, हमारी तरफ़ तो शवदाह गृह गांवों में हैं नहीं, सब लोग अपने खेतों में जला देते हैं तो बर्डेन जैसा कुछ वहां है ही नहीं.
कोविद को कंटेन करने लिए उठाए गए हर जनविरोधी कदमों का विरोध होना चाहिए था, क्योंकि इससे जनता और पूरे अर्थतंत्र को भीसड़ मुसीबत से गुजरना पड़ा. मज़दूरों का रोज़गार जाता है. उन्हें सैंकड़ों किलोमीटर भूखे पैदल चलना पड़ा, दुकानें बंद हुई, सब कुछ ठप पड़ गया. हेल्थ सेक्टर जो पहले ही पंगु था पूरी तरह लड़खड़ा गया है, बहुत सारे प्राइवट हॉस्पिटल बंद हैं. सबसे बड़ी बात अन्य बीमारियों का इलाज कराना लोगों के लिए बहुत मुश्किल हो गया है. इस बीमारी से सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम अन्य बीमारी की त्रासदी से कहीं अधिक है.
जो समस्या जितनी बड़ी है, उतना ही उसको लेना चाहिए. ऐसा न हो कि इस एक समस्या को इतना बड़ा बनाकर दिखा दिया जाए कि बाक़ी बीमारियों वाले असहाय हो जाएं और हर विरोध करने वाले को कुचलने का हथियार उन्हें मिल जाए.
डरिए नहीं, घबराइए नहीं. मेडिकल एक्स्पर्ट की सलाह के हिसाब से चलिए. एक व्यक्तिगत बात, मैं और वाइफ़ दोनों ही कोविड पॉज़िटिव होकर होम आयसलेशन में हैं और लगभग सामान्य हैं.
अजय कबीर के उपरोक्त बयान व तथ्य यह बताने का पुख्ता सबूत है कि कोरोना एक राजनीतिक महामारी है, जिसका लक्ष्य देश की बहुतायत आबादी को अनपढ़ और डरपोक बनाये रखना है, ताकि शोषण-दोहन की प्रक्रिया और तेज, और निर्मम बनाई जा सके. चंद पूंजीपतियों के निजी पूंजी का विशाल साम्राज्य खड़ा किया जा सके और विरोधियों को ठिकाने लगाया जा सके. कोरोना का यह कृत्रिम आतंक सबसे मुफीद हथियार बन गया है.
किसान आंदोलनकारियों का लगातार तेज होते आंदोलन का स्थायित्व शासक वर्ग और औद्योगिक घरानों के माथे पर चिंता की लकीर है क्योंकि किसान आंदोलनकारी किसी भी शासकीय बहकावे में नहीं आ रहे हैं, और न ही डर रहे हैं. किसान आंदोलनकारी अपनी मांगों को माने वगैर किसी भी हालत में पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं. किसान आंदोलनकारियों ने संयुक्त किसान मोर्चा की ओर अपने मुद्दों को साफ करते हुए एक प्रेस नोट जारी करते हुए दर्शन पाल कहते हैैं –
- किसानों को मोर्चे से हटाने की खबरें झूठी, लड़ते रहेंगे किसान
- धरनास्थलों पर वैक्सीनेशन सेंटर बनाये सरकार
- सरकार तुरंत कृषि क़ानून वापस ले व MSP की कानूनी गारंटी दे
किसान नेता दर्शन पाल कहते हैं –
किसानों के बीच भय का माहौल बनाने के उद्देश्य से अनेक प्रकार की झूठी खबरें फैलाई जा रही है, जिसमें किसानों के धरने जबर्दस्ती उठाये जाने की बातें है. दिल्ली की सीमाओं पर और देश के अन्य हिस्सों में डटे किसान पहले भी बातचीत के पक्ष में है. यह हास्यास्पद लगता है जब भाजपा किसी चुनावी रैली करती है तो उसे कोरोना का भय नहीँ दिखता है वहीं जहां उनके विरोध में कोई कार्यक्रम होते है, वहां बहुत सख्ती से निपटने के दावे किए जाते है. झूठी खबरें फैलाकर किसानों के अंदर डर का माहौल बनाने का प्रयास किया जा रहा है जिसे किसान बर्दाश्त नहीं करेंगे व मुंहतोड़ जवाब भी देंगे. हम किसानों से भी अपील करते है कि वे संयम के साथ शांतमयी धरना जारी रखे, वहीं अन्य किसान कटाई का काम खत्म होते ही दिल्ली मोर्चों पर पहुंचे.
किसानों ने हर मौसम व हर हालात में खुद को व आंदोलन को मजबूत रखा है. हम किसानों से अपील करते है कि कोरोना सम्बधी ज़रूरी निर्देशों की पालना करते हुए मास्क पहनने जैसी सावधानी बरतकर रखें, साथ ही हम सरकार से अनुरोध करते है कि धरना स्थानों पर वैक्सीन सेंटर बनाकर व अन्य सुविधाएं प्रदान कर अपनी जिम्मेदारी निभाये.
किसान नेताओ पर हमले की साजिश की खबरें आ रही है. हम इस तरह के प्रयासों की न सिर्फ निंदा करते हैं बल्कि इसका हम डटकर विरोध करेंगे. सरकार तार्किक स्तर पर हर संवाद हार रही है इसलिए हिंसक गतिविधियों के सहारे किसान आंदोलन को खत्म कराने की कोशिश कर रही है.
दर्शन पाल आगे कहते हैं कि किसानों की लंबी मांग रही है कि सभी किसानों को, सभी फसलों पर MSP की कानूनी गारंटी मिलनी चाहिए. तीन खेती कानून MSP के साथ साथ खाद्य सुरक्षा व अन्य सुविधाओं पर भी हमला करते है. सरकार के साथ लगातार बातचीत में यह समझाया जा चुका है कि यह कानून किस प्रकार गलत है. सरकार ने गलती मानते हुए कोई भी संशोधन करने का प्रस्ताव दिया था. किसानों की मांग रही है कि तीनों खेती कानून रद्द हो व MSP पर कानून बने.
सरकार इन मांगों से हमेशा भाग रही है. हर मोड़ पर सरकार द्वारा मीडिया के सहयोग से नया मुद्दा खड़ा किया जाता रहा है. कानूनों के रद्द करने सम्बन्धी व MSP के कानून सम्बधी तर्क बहुत कम दिए जा रहे है. संयुक्त किसान मोर्चा सरकार के इन तमाम प्रयासों के बावजूद उन मांगों को दोहराता है. हम सरकार से मांग करते है कि तुरंत कृषि कानूनों को रद्द करना व MSP पर कानून बनना देश हित, किसान हित में है. किसान आंदोलन में किसानों के अलावा समाज के अन्य लोगों ने अपना आंदोलन मानते हुए नि:स्वार्थ भाव से इसे मजबूत किया है.
वहीं दर्शन पाल एक पत्रकार की दुर्घटना में हुई आकस्मिक मौत पर हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हुए कहते हैं कि इस आंदोलन को लगातार कवर कर रहे पत्रकार शशांक पाठक की आज अपने घर लौटते वक्त सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी. संयुक्त किसान मोर्चा शशांक पाठक को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता है परिवार को सांत्वना प्रेषित करता है. पत्रकार शशांक की किसान खेती पर समझ व जनता तक निष्पक्ष खबर पहुंचाने की शैली सभी लोगो को बेहतर जीवन जीने के लिए प्रेरित करेगी.
किसान आंदोलन को नजदीक से देख रहे विद्वान राम चन्द्र शुक्ल कहते हैं – तीन किसान विरोधी काले कानूनों को खत्म कराए बिना तथा चौथा कानून एमएसपी की गारंटी का कानून संसद से पारित कराए बिना दिल्ली की सीमाओं पर पिछले लगभग 05 महीनों से चल रहा किसानों का आन्दोलन खत्म होने वाला नहीं है. सत्ता के अहंकार में चूर वर्तमान दक्षिणपंथी शासक इस बात को समझने में अब तक नाकाम रहे हैं कि किसान इन काले कानूनों के लागू हो जाने के बाद सर्वहारा वर्गों में शामिल हो जाएंगे और सर्वहारा वर्गों के पास खोने के लिए कुछ नहीं होता है.
इस प्रकरण में सबसे दिलचस्प और खतरनाक मोड़ तब आया जब छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ के 23 कमांडो को मौत की घाट उतारने वाले भारत के सबसे सशक्त और हथियारबंद आंदोलन चला कर अंबानी-अदानी जैसे कॉरपोरेट घरानों का नौकर भारत सरकार को ध्वस्त कर देश की सत्ता पर काबिज होने का लक्ष्य रखने वाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) के प्रवक्ता बकायदा प्रेस बयान जारी कर किसान आंदोलनकारियों की मांगों का सशक्त समर्थन किया.
ऐसे में अगर अंबानी-अदानी का पालतू यह मोदी सरकार किसान आंदोलनकारियों के खिलाफ किसी भी प्रकार का सैन्य हमला करती है तो नि:संदेह भारत की इस पालतू नरेन्द्र मोदी सरकार को इसकी भारी कीमत अदा करनी होगी. संभावना तो यह भी हो सकती है कि देश गृहयुद्ध की आग में जलने लगे, जिसमें यह पालतू मोदी सरकार और उसका मालिक अंबानी-अदानी जलकर भस्म हो जाये. सवाल है क्या अंबानी-अदानी का पालतू नरेन्द्र मोदी इतना जोखिम उठाने के लिए तैयार है ? अगर हां, तो केन्द्र की नरेन्द्र मोदी की सरकार को जरूर ऑपरेशन क्लीन अभियान चलाकर किसान आंदोलनकारियों पर सैन्य हमले शुरू कर देना चाहिए.
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