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महान गणितज्ञ लियोनार्ड ऑयलर

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महान गणितज्ञ लियोनार्ड ऑयलर

आज महान गणितज्ञ लियोनार्ड ऑयलर का जन्मदिन है. लियोनार्ड ऑयलर एक स्विस गणितज्ञ थे. ये जोहैन बेर्नूली के शिष्य थे.

गणित के संकेतों को ऑयलर की देन अपूर्व है. इन्होंने संकेतों में अनेक संशोधन करके त्रिकोणमितीय सूत्रों को क्रमबद्ध किया. 1734 ई. में ऑयलर ने x के किसी फलन के लिए f (x), 1728 ई. में लघुगणकों के प्राकृत आधार के लिए e, 1750 ई. में अर्ध-परिमिति के लिए s, 1755 ई. में योग के लिए Σ और काल्पनिक ईकाई के लिए i संकेतों का प्रचलन किया.

1766 ई. में ये अंधे हो गए, परंतु मृत्यु पर्यंत (18 सितंबर 1783 ई.) शोधकार्य में संलग्न रहे. अक्सर बच्चे एक गेम खेलते हैं, जिसमें कोई साधारण-सी आकृति कागज़ पर बनानी होती है, लेकिन शर्त होती है कि आकृति बिना पेन्सिल उठाये बने. कुछ आकृतियां तो बन जाती हैं लेकिन बहुतों का बनाना असंभव होता है. कुछ ऐसी ही समस्या आई थी एक महान गणितज्ञ के सामने.

कोनिस्बर्ग कस्बे में बने सात पुलों पर आधारित पहेली थी कि एक स्थान से चलकर सभी पुलों को पार करते हुए वापस वहीँ पहुंचना था, किन्तु शर्त थी कि एक पुल से केवल एक ही बार गुज़रा जाए. इस पहेली को हल करते हुए उस गणितज्ञ ने गणित की एक नई शाखा ग्राफ थ्योरी (Graph Theory) को जन्म दिया, जो आज की कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है.

उस महान गणितज्ञ का का नाम था लेओन्हार्ड आयलर, जिनका जन्म हुआ था स्विट्जरलैंड में लेकिन बाद में उसके जीवन का अधिकतर भाग जर्मनी और रूस में बीता. आयलर ने विज्ञान के कई क्षेत्रों यांत्रिक भौतिकी (Mechanical Physics), द्रव गतिकी, प्रकाशिकी तथा खगोल विज्ञान में उत्कृष्ट कार्य किये. इसके साथ ही विश्व के महानतम गणितज्ञों (Greatest Mathematicians) में उसकी गिनती होती है.

आयलर की सत्ताईस वर्ष की आयु में एक घातक बीमारी में उनकी एक आंख जाती रही. बाद में उनकी दूसरी आंख में भी खराबी आ गई. दोनों आंखों से पूर्णतः अंधे होने के बावजूद उसकी गणितीय क्षमता पर कोई असर नहीं पड़ा. अपनी विलक्षण स्मृति और मानसिक गणना शक्ति के आधार पर अपने अंधेपन में भी उन्होंने अनेकों रिसर्च पेपर तैयार कर डाले.

वे गणनाएं बोलते जाते थे और उसका सहयोगी लिखता जाता था. आज गणित की कोई शाखा आयलर के कार्यों से अछूती नहीं है. गणित में चार संख्याएं बहुत महत्वपूर्ण हैं : 1 – पहली प्राकृत संख्या, पाई – एकांक व्यास के वृत्त की परिधि, e – प्राकृतिक लघुगुणक (log) का आधार तथा i – मूल काल्पनिक संख्या. आयलर ने एक समीकरण के द्बारा इन चारों के बीच सम्बन्ध स्थापित कर दिया. एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक ने इसे गणित की सर्वाधिक सुन्दर समीकरण कहा है.

आयलर ने चरघातांकी (Exponential) तथा लघुगुणक (Logarithm) श्रेणियों पर काफी कार्य किया. उसने ऋणात्मक तथा काल्पनिक संख्याओं का लघुगुणक परिभाषित किया, साथ ही त्रिकोन्मितीय फलनों (Sin, Cos, Tan…) का चरघातांकी तथा लघुगुणक से सम्बन्ध स्थापित किया.

संख्या सिद्धांत (Number Theory) पर कार्य करते हुए आयलर ने अभाज्य संख्याओं व परफेक्ट नंबर्स से सम्बंधित अनेक सूत्र ज्ञात किये. उन्होंने प्राकृतिक संख्याओं (1, 2, 3, …) तथा अभाज्य संख्याओं के बीच एक विलक्षण सम्बन्ध ज्ञात किया, जिसे जीटा फलन कहा जाता है.

आयलर का अधिकतर कार्य उच्च गणित से सम्बंधित है, जिसे आसानी से समझाया नहीं जा सकता. उन्होंने कैलकुलस की नई शाखाएं विकसित की, जिनमें अवकल समीकरण प्रमुख हैं. इन समीकरणों के बारे में एक वैज्ञानिक का कथन है कि सृष्टि के नियम अवकल समीकरणों के रूप में बने हैं.

उन्होंने गणित की एक अन्य शाखा कैलकुलस ऑफ़ वैरिएशन (Calculus of Variations) की बुनियाद डाली, जिसमें सीमान्त स्थितियों में किसी बिंदु का पथ ज्ञात किया जाता है. मिसाल के तौर पर यदि कोई गेंद किसी उच्च बिंदु से निम्न बिंदु तक न्यूनतम समय में पहुंचना चाहे तो उसे सायेक्लोइड नामक पथ पर चलना पड़ेगा.

दृढ पिंड की गतियों से सम्बंधित आयलर ने अनेक खोजें कीं. प्रकाश के सम्बन्ध में वह उस समय प्रचलित न्यूटन के कणिका सिद्धांत (Newton’s Particle Theory) के खिलाफ थे. उन्होने हाइगेन्स (Huygens Wave Theory) के तरंग सिद्धांत का समर्थन किया.

आयलर के कार्यों की विशालता इसी से समझी जा सकती है कि 1783 में उनकी मृत्यु के बाद अगले पचास वर्षों तक उनके अप्रकाशित कार्य छपते रहे.

  • सागर राणा

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