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पागल सावरकर और उसके पागल चेलों की अधूरी थ्योरी का हिन्दुस्तान होता तो क्या होता ?

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जो यूं होता तो क्या होता ?

बंटवारा, हिंदुस्तान का. रेडक्लिफ लाइन जमीन पर ही नहीं, आम हिंदुस्तानी के दिल पर चला हुआ वो चाकू है, जिसका घाव, मौजूदा हिन्दू-मुस्लिम डिबेट के बीच, रह-रह कर मवाद फेंक रहा है. दो बड़ी ख्वाहिशें हमारी है, इतिहास से. पहली कि काश, बंटवारा न हुआ होता, और दूसरी – काश, कांग्रेस न होती, गांधी नेहरु भी न होते तो धर्मनिरपेक्षता का नाटक न होता, 1947 में हिन्दू राष्ट्र घोषित हो गया होता. आइये दोनों ख्वाहिशों को उस दौर परिस्थितियों को सुपर-इंपोज करते हैं.

1937 के भारत का नक्शा देखिये. ये बर्मा से बलूचिस्तान तक फैला है. इसमें एक केंद्रीय सरकार है, वाइसराय इसके राष्ट्रपति की तरह हैं. इसके अधीन दो तरह के राज्य है.

1. एक तो वैसा ही, जो आज है. यानी केंद्र के नीचे एक गवर्नर और विधानसभा, यूनाइटेड प्रोविन्स ( लगभग उत्तर प्रदेश), सेंट्रल प्रोविन्स ( लगभग मध्यप्रदेश), बंगाल (बिहार, उड़ीसा, पच्छिम बंगाल और बंगलादेश), मद्रास वगैरह. ये ब्रिटिश सीधा शाशन करते थे. ये देश का 52-55% हिस्सा था. इसे एक गिनिए.

2. बाकी देशी रियासतें, जो सेना, संचार, विदेश छोड़, शेष मामलों में लगभग स्वतंत्र देश थे. बस एक ब्रिटिश रेजिडेंट रखना होता. यानी सबके पास अनुच्छेद 370 लागू था. ये कुल 563 देश थे. इसमें देश के 45-48% भूभाग था. इसे 563 गिनिए. कुल हुए 564 टुकड़े.

बर्मा को 1937 में अंग्रेजों ने भारत से अलग कर दिया था. असल में उन्होंने उसे अपने बाहुबल से जीता था. प्रशासनिक सुविधा से भारत से जोड़ रखा था, और प्रशासनिक सुविधा के लिए अलग भी कर दिया. जो बचा, वो 1947 का भारत है. 1947 वाला जो नक्शा अटैच है, उसमें यह आपको साफ समझ आएगा.

अब इस भारत को, आपकी ख़्वाहिश अनुसार अंग्रेज छोड़ जाते हैं. किसके हाथ ? भई, आपको कांग्रेस, नेहरू, गांधी, जिन्ना नहीं चाहिए, बचा कौन ? श्यामू, गोलू, गोडसे या सावरकर ?? चलिये ठीक. सावरकर के सिर पे ताज रख दिया. फोटो भी लगा दी, अब ?

वही होगा, जो मंजूरे सावरकर होगा. तो सावरकर ने कभी भी वेस्टमिंस्टर पद्धति के संसदीय लोकतंत्र की बात नहीं की है. उनका फलसफा उस दौर में बेहद सफल फासिज्म और नाजीज्म के इर्द-गिर्द घूमता है. फासिस्ट शाशन में मुसोलिनी डिक्टेटर था, और विक्टर इमानुअल राजा.
सावरकर या संघ के दिमाग में अंग्रेजों के आने के पहले चल रहे मराठा संघ के बरअक्स, बना हुआ सिस्टम था. उसके छत्रपति (किंग) होता और पेशवा (डिक्टेटर या पीएम) होता. यह ओलिगोर्की होतीं, याने कुछ एलीट का शासन, जो नौकरशाही के बूते देश चलाता.

तो सावरकर डिक्टेटर (पीएम या पेशवा ) होते, और कोई एक राजा (राष्ट्रपति या छत्रपति) होता. जाहिर है वो कोई शुद्ध रक्त का झंडू राजा चुनते. उनकी पसन्द नेपाल नरेश थे. इस केंद्रीय सरकार के अधीन पूरे देश का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष शाशन चलता (खिसियाओ मत, ऐसा लिखित में है).

संसद वंसद नहीं होती. होती तो डिक्टेटर ही सारे सांसद नियुक्त करता (हिटलर, मुसोलिनी से लेकर जनरल जिया ने भी यही किया). शायद सारे शाखाओं के जिला प्रभारी ही सांसद मनोनीत होते. यह व्यवस्था केंद्रीय शासित इलाकों में शायद बन जातीा, समस्या रजवाड़े थे.

पर सवाल ये है कि इस व्यवस्था में रजवाड़े क्यों जुड़ते ? जार्ज पंचम से छूटने के बाद वो काठमांडू वाले को महाराजाधिराज मानकर, उनके अधीन के क्यों रहते ? स्वतंत्र क्यों न रहते ?

सावरकर के पास प्लान था. उन्होंने लिखा – भारत एक राष्ट्रकुल रहेगा। याने कि, 563 रजवाड़े, ब्रिटिश शासित (अब सावरकर शासित) भारत वाले हिस्से के साथ मिलकर एक कॉमनवेल्थ बनाएगा। रजवाड़ा ऐसे तो स्वतंत्र रहेगा, मगर कॉमनवेल्थ सरकार, याने केंद्र सरकार, याने सावरकर सरकार के पास विदेश, सेना और संचार रहेगा। (खिसियाओ मत, लिखित में है). यानी, पूरे 563 रियासतों को अनुच्छेद 370 का लाभ देना. टूईं ??

चलिये, पहला ख्याली पुलाव पूरा हुआ. अखण्ड भारत बन गया. अभी दूसरा बाकी है. इस जमावड़े को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने का, कर दिया घोषित. सारे मुसलमान सेकेंड क्लास सिटीजन, हिन्दू सुप्रीम हो गया. हैप्पी ? पर आधे रजवाड़े तो नवाब थे. मुसलमान थे. कोई नवाब नहीं मानता तो सावरकर क्या करते ? अजी, फ़ौज कूदा देते. मुल्ले राजाओं को मार-मार कर होश ठिकाने लगा देते. जेल में डाल देते. है कि नहीं ?

इस ख्याली पुलाव में कई कंकड़ फंसे हैं.

सेना कोई 5 लाख थी. उसमें लगभग एक लाख ब्रिटिश थी. उनके जाने के बाद बचे चार लाख. उसमें सेकेंड क्लास सिटीजन याने मुस्लिम, पौने दो लाख थे. वो मुसलमान फौजी, हिन्दू राष्ट्र में सेकेंड क्लास सिटीजन बनने को नवाबों से लड़ते ?? भेरी स्मार्ट ..

कोई मुस्लिम रेजिमेंट नहीं थी. हर रेजिमेंट में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई थे. पहले तो कैंटोनमेंट में ही मारकाट मच जाती.

कम से कम 10-12 राजे रजवाड़े स्वतंत्र रहना चाहते थे. वो औरो को भी उकसाते. मुस्लिम नवाबों द्वारा हिन्दू राजा, हिन्दू राष्ट्र को सुप्रीम मानने का सवाल ही नहीं था, संघर्ष करते. आजादी घोषित कर देते. विदेशों से मान्यता के लिए प्रतिनिधि भेजने शुरू कर देते.

तो सेना का हाल वही होता जो सोवियत रूस टूटने के बाद हुआ. सैनिक हॉट कोमोडिटी हो गए. आजादी घोषित किये राज्यों ने उन्हें लालच दिया. बुला बुलाकर अपनी फ़ौज खड़ी करने लगे. ज्यादा साथी, ज्यादा हथियार साथ लाओ, ज्यादा बड़ा ओहदा पाओ.

रूसी सैनिक भी अपनी इलाकागत वफादारी, धर्म या ज्यादा वेतन के लिए भागकर उसे जॉइन करने लगे. पर वो 80 साल पुराना सोवियत रशिया था, बहुतेरे क्षेत्रों में राष्ट्रीयता प्रबल थी, तो करीब 70% इलाके बच गए.
मगर सावरकर का ये राष्ट्रकुल सह हिन्दू राष्ट्र, अभी नहीं बन पाई खिचड़ी है.

हर रजवाड़ा अपनी राह पकड़ता, कुछ संघ बनाकर भारत से लड़ते. कुछ आपस में भी लड़ते. ये छोटा-मोटा विश्वयुद्ध होता. यूएन फूएन सब कूदते. शान्ति कराई जाती. कोई रशियन ब्लॉक से जुड़ता, कोई अमेरिकन खेमे से. हथियार-बम सब सप्लाई होते. पैसे वाले रजवाड़े भारी पड़ते. अंततः खूनी युद्ध के बाद, रजवाड़े अलग हो जाते.

अपना एक (या दो-तीन अलग-अलग क्लस्टर में) ढीला ढाला राष्ट्रकुल बनाते, जिसका हेड उनके बीच बारी-बारी क्रम में बनता. 50% भारत का ये हाल होता. हाथ से गया. बाकी का भारत जो डायरेक्टली रूल्ड था, याने सिंध, सेंट्रल प्रोविन्स, पंजाब, मध्यप्रांत और बंगाल, क्या ये हिस्सा सावरकर शासित हिन्दू राष्ट्र में रहता ?

इन इलाकों में मुसलमानों और सिखों की जबरदस्त आबादी है. कालीन में बुने ताने-बाने की तरह बस्तियां, लेकिन जहां लोग दूसरे धर्म के कुंए का पानी तक नहीं पीते, भयंकर दंगे होते. आसपास के रजवाड़े भी, सावरकर (भारत) को कमजोर रखने के लिए आग भड़काते. टेरेटरी कब्जियाते.

धर्म और संस्कृति का अलग होना सिंध और पंजाब को हिन्दू राष्ट्र से अलग कर देता. बम्बई, सेंट्रल प्रोविन्स, बंगाल और यूपी भी जलते. मुसलमान यहां से सुरक्षित जगह जाने की कोशिश करते, कहां जाते ?

एक सेकुलर आदमी था इनके बीच, महत्वाकांक्षी. श्यामाप्रसाद मुखर्जी फ्रॉम बंगाल. मुस्लिम सीएम के वित्तमंत्री रहने में गुरेज न था. उन्होंने एक समय लार्ड मॉउन्टबेटन को चिट्ठी लिखकर पृथक बंगाल देश की मांग की थी तो इस ताकत के साथ वे बंगाल देश के पीएम होने का सपना देख रहे थे. जाहिर है उनका सावरकर से उतना ही प्रेम था, जितना वसुंधरा राजे को मोदी से है.

बंगाल एक बड़ा पृथक सेकुलर देश बन जाता. इसमें बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और बंगलादेश, असम के हिस्से शामिल होते. कोलकाता राजधानी. नार्थ ईस्ट शायद चीन के कब्जे में, या उसके असर में चला जाता. मद्रास वाले वैसे ही तमिलनाडु (तमिल देश) चाहते थे.

फाइनली, ताज पहने हुए सावरकर के पास यूपी और नागपुर, महाराष्ट्र, गुजरात तक फैला हुआ हिन्दू राष्ट्र होता. 1950 आते-आते यही भारत होता. कोई 8 करोड़ आबादी, अभी का चौथाई. उसकी सीमाएं पश्चिम में ‘राजपुताना कामनवेल्थ’, दक्षिण में हैदराबाद देश, पूर्व में बंगाल देश, उत्तर पश्चिम में पंजाब देश और उत्तर कश्मीर देश होता. नोटों पर सावरकर छपे होते, यही स्वर्ण मकुट पहने हुए. फॉदर ऑफ द नेशन.

ठीक इन्हीं समस्याओं के साथ नेहरू, गांधी, सरदार और कांग्रेस को जूझना पड़ा. दूरदर्शिता और धैर्य के साथ उन्होंने इन सब मसलों को किस तरह से सुलझाया, आप इतिहास की किताबों में पढ़ चुके हैं. और स्वीकारिये कि उनके सामने अगर हिन्दू-मुस्लिम के बीच नफरती फितरत न होती, कट्टर हिन्दू-कट्टर मुस्लिम न होते, एकता, प्रेम, समानता, धर्म निरपेक्षता, लोकतन्त्र का साझा सपना होता, तो छाती और मवाद फेंकता ये घाव लेकर न घूमते. अटक से कटक और अफगान से कन्याकुमारी तक अखंडित राष्ट्र होता. धर्मनिरपेक्षता, सहिष्णुता और बहुलता इसकी सीमेंट होती. और जो भारत आज आपका है, उसका सीमेंट भी यही है, जिसे आप रोज थोड़ा थोड़ा कुतर रहे हैं.

वही धार्मिक अफीम खाकर धर्मनिरपेक्षता को भूल चुके हैं. पागल सावरकर और उसके पागल चेलों की अधूरी थ्योरी पढ़कर सोचते हैं तो क्या होता ? मैं बताता हूं, कश्मीर समस्या नहीं होती. पंजाब समस्या नहीं होती, बंगाल में चुनाव न लड़ना पड़ता. आपके पड़ोस में मुसलमान समस्या नहीं होती क्योंकि असल मेें हमारे पास ये हिंदुस्तान समस्या ही नहीं होती.

  • मनीष सिंह

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One Comment

  1. तिलकराज सिंह पंवार

    December 28, 2021 at 3:20 pm

    Wese me toh bjp/rss ka hu lekin Hindu rashtra me koi logic nahi h… Or sare bade desh sekular hi hai toh hi unka astitva h… Super Article 👍👍👍 Jay Hind 🇮🇳

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