Home कविताएं जब हम कहते हैं घर में ही रहें

जब हम कहते हैं घर में ही रहें

0 second read
0
0
248

जब हम कहते हैं
घर में ही रहें
तो मान कर चलते हैं
कि इस दुनिया में
सबके पास और कुछ हो न हो
घर ज़रूर होगा ही
उनके पास भी
जो घर पालने की फ़िक्र में
घर छोड़कर
घर से बहुत दूर हैं
जो बंजारें हैं
भिखमंगें हैं
जो रोज़
दूसरे का कुआं खोदकर
अंजुरी भर पानी पाते हैं
जो फुटपाथ पर
प्लेटफार्म पर
नाले के किनारे
पेड़ के नीचे
पाइप के भीतर
रिक्शे की पिछली सीट पर
गांव के सिवान पर
पुल पर
स्काइवाक पर
बंद दुकान के बाहर
गुमटी की छांह में
सूखे नाले के भीतर
गीली पलकों के नीचे
सबके पास होगा ही
अपना एक घर
जहां वे सुरक्षित रह सकते हैं
संसर्गजन्य रोगों से
और जब घर है
तो बरतन भी होंगे
अनाज भी होगा
होगा ईंधन भी
और पानी भी
बार बार हाथ धोने के लिए
साबुन के साथ
ऐसे में किसको एतराज़
कि वह ना रहना चाहे
घर में
निकल पड़े सड़कों पर
भूखा प्यासा
नितांत पैदल

और इतनी बड़ी दुनिया में
कोई पूछने वाला भी न हो
कौन हो
कहां जा रहे हो
क्यों जा रहे हो
खाए हो कि नहीं
चुल्लू भर पानी को मुहताज

ये कौन लोग हैं
जो घर में नहीं रहना चाहते
इन्हें क्या डर नहीं लगता
मौत से
इन्हें लगे न लगे
पर कुछ लोगों को ज़रूर
डर तो है
इनके बीमार होने का
क्योंकि इनसे फैल सकती है
ख़तरनाक बीमारी
उन लोगों तक
जिनके पास अपना घर है
राशन कार्ड है
आधार कार्ड है
वोटर आईडी है
नौकरी धंधे हैं
मिल फैक्ट्रियां हैं
अकूत धन संपत्ति है
सत्ता है शक्ति है साधन है

इनकी फ़िक्र में
उनसे भी कहा जा रहा है
घर में रहिए
जिनके पास
धरती के बनने से लेकर
आज तक
कोई घर ही नहीं है।

  • हूबनाथ पांडेय

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध

    कई दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण ये शहर अब अपने पिंजरे में दुबके हुए किसी जानवर सा …
  • मेरे अंगों की नीलामी

    अब मैं अपनी शरीर के अंगों को बेच रही हूं एक एक कर. मेरी पसलियां तीन रुपयों में. मेरे प्रवा…
  • मेरा देश जल रहा…

    घर-आंगन में आग लग रही सुलग रहे वन-उपवन, दर दीवारें चटख रही हैं जलते छप्पर-छाजन. तन जलता है…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…