मुझे मालूम है
तुम मेरे दुश्मन नहीं हो
मेरी तरह फटेहाल
हुक्म के गुलाम हो
मैं अपने लिए लड़ता हूं
तुम उनके लिए
तुम्हारी गोली से मैं मरूं
या मेरी लैंड माइंस से तुम
उन्हें फर्क नहीं पड़ता
उनके बच्चों की पढाई नहीं रुकती
कारोबार
बदस्तूर चलता रहता है
लाभकारी मूल्य मिलता रहता है
मेरी लाश के साथ
वे अपनी बहादुरी की
तस्वीरें खिंचवाते हैं
और तुम्हारी लाशों को
छद्म संवेदनाओं की बाढ़ में बहा देते हैं
जब वे अपनी कामयाबी के
डंके पीट रहे होते हैं
हम मश्गूल होते हैं
आजादी और गणतंत्र के
पावन जश्न में
और उधर
न चंदन की
तस्करी रुकती है
न जंगलों का कटना
पहाड़ों का बिकना अबाध है
- राम प्रसाद यादव
[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]