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ऐसी क्या जल्दी है

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ऐसी क्या जल्दी है

खेत हरा भरा रहे
नलकूपों में
पानी की जगह
खून नहीं पानी बहता रहे

ट्रैक्टर खेत जोते
जंग जीतने की तोप न बने

हंसिया हथौड़ा हल
डर के हथियार नहीं
शांति अशांति के हर कठिन काल में
कृषि उपकरण बना रहे
प्रचारक शैतानों के हाथ
भूतहा डर की अफवाह न बने

मगर मुश्किल यह है कि
जो कुत्ता उसे काट खाया है
रैबीजग्रस्त है

लेकिन साथ ही अच्छी बात यह है कि
टीकाकरण जोरों पर है

हो न हो, वह
किसी जालसाज के जाल में है

उसकी मानसिक स्थिति
अब ऐसी हो गई है कि
उसे हर रस्सी सांप नजर आती है
जवान चेहरा मवाली लगने लगा है

यह कैसे संभव है कि
कोई असली किसान
अंग्रेजी में बतिया ले

बहुत दिन हुए चश्मे का पावर बदले

नाका पर नियुक्त जासूस
पता नहीं कहां रहते हैं
समय पर कोई सूचना नहीं मिलती
चमकते जूतों बेल्ट वाले कड़क कोमोडोर को
क्या कहें जो मूछों पर ताव देते
अपनी बहादुरी के किस्से कहते नहीं थकते

चुनाव चिन्ह जो हो
पर्चम के रंग जैसे हों
यकीन की पात्रता नि:स्संदेह
संदेह पैदा करती है

विश्व बैंक से लिया सारा कर्ज
खर्च हो गया
पुलिस अदालत…
साहित्यकार पत्रकारों की
गैरजरूरी खरीद में
जबकि बहुत सी जरूरी चीजों की
खरीद अभी बाकी है

चिडियाघरों में पला बढ़ा
न जाने कितने नमूदार जानवर हैं
जो उस पर जान छिड़कते हैं
कोई शांति वन में गोली चला देता है
कोई लाल किला पर
निशान साहेब फहरा देता है

ऐसी क्या जल्दी है

स्थिति कुछ बदल गई है
निग्रों गुलामों की
अब कोई जरुरत नहीं रही
गिरमिटिया गुलामों से
लदा जहाज बेहतर है
वापस अपने बंदरगाह ले जाओ
तुम्हारी मर्जी
जहां चाहो उन्हें छोड़ आओ

  • राम प्रसाद यादव

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ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

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