Home कविताएं पूंजी मृत श्रम है

पूंजी मृत श्रम है

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जिस गेहूं के आटे की
रोटी आप खाते हैं,
उसे कौन पैदा करता है ?
जो दाल, सब्जी, दूध व
फल खाकर आप जिंदा हैं,
उसे कौन पैदा करता है ?

जिस घर में आप रहते हैं
उसे कौन बनाता है ?
जो कपड़े आप पहनते हैं
उनका निर्माता कौन है ?
जिस धन या पूंजी से यह सब कुछ
आप हासिल करते हैं
उसका उत्पादक कौन है ?

उत्तर ज्यादा मुश्किल नहीं है,
इन सबके पीछे देश के किसानों व
मेहनतकशों की मेहनत है.

अब आखिरी सवाल –
देश में किसानों व मेहनतकशों का
जीवन कैसा है ?

उत्तर बिलकुल सरल है-
देश व दुनिया भर के
मेहनतकशों व किसानों
की जिंदगी दुःखों व पीड़ा
से इसलिए परिपूर्ण है
क्योंकि,
उन्हें उनकी मेहनत का
पूरा मूल्य
कहीं नहीं मिलता,
कभी नहीं मिलता.

दुनिया भर में,
अपने विचारों से
बड़े परिवर्तन का
सूत्रपात करने वाले
कार्ल मार्क्स का कथन है-
‘पूंजी मृत श्रम है.’

  • रामचन्द्र शुक्ल (29-03-2018)

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