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भगत सिंह की विचारधारा ही शोषणमुक्त समाज बनायेगी

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भगत सिंह की विचारधारा ही शोषणमुक्त समाज बनायेगी

जर्मनी की राजधानी बर्लिन में 2 जून, 1931 को आयोजित ‘लीग अगेंस्ट इंपीरियलिज़्म’ की कार्यकारी समिति के एक राजनीतिक प्रस्ताव से यह निष्कर्ष निकाला गया, जो भारत के साथ काफी महत्वपूर्ण है. सबसे पहले, यह ‘लीग अगेंस्ट इंपीरियलिज्म’ नेहरु को उनके डोमिनियन स्टेटस को स्वीकार करने और भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की मांग को पूरा करने में विफल रहने के आधार पर निष्कासित करता है. यह सवाल आम तौर पर उन लोगों द्वारा चुप्पी में पारित किया गया था, जो सीपीएसयू की 20 वीं कांग्रेस की भावना में थे, नेहरू की राजनीति में प्रगतिशील विचार के तत्वों को अतिरंजित करना चाहते थे.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस मूल्यांकन का एक प्रमुख उदाहरण सोवियत सिद्धांतकार आर. उल्यानोव्स्की[1] है. जीडीआर के इतिहासकार होर्स्ट क्रूगर ने नेहरू को लीग अगेंस्ट इंपीरियलिज्म से निष्कासित करने के कारणों का उल्लेख किया था : गांधी-इरविन संधि के कारण 5 अप्रैल 1931 तक भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने और सविनय अवज्ञा अभियान को खत्म करने का वादा किया. क्रुगर साम्राज्यवाद के खिलाफ लीग के विषयवस्तु का वर्णन करने में साम्प्रदायिक होने के कारण विफल नहीं हुए.

दूसरे संकल्प में नेहरू के लोगों के लिए बुनियादी रूप से असहमति के संदर्भ में सुभाष चंद्र बोस के विचारों का मूल्यांकन करता है. इस लक्षण का वर्णन सीपीआई और सीपीआई (एम) की सुभाष चंद्र बोस के समकालीन सहानुभूतिपूर्ण समझ के विपरीत, हिटलर और तोजो के साथ सहयोग के बावजूद, स्पष्ट है.

तीसरा, यह संकल्प विशेष रुचि का है क्योंकि यह भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत के दो महीने बाद सामने आया. साम्राज्यवाद के विरुद्ध लीग ने ‘वीर भारतीय क्रांतिकारियों, भगत सिंह और उनके साथियों की स्मृति को सम्मानित किया, जिनकी ब्रिटिश साम्राज्यवाद द्वारा हत्या कर दी गई है, जबकि वे भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे.

लीग ने इस बात पर जोर दिया कि यह संघर्ष वीरता के व्यक्तिगत कृत्यों से भले ही विजयी नहीं हो सकता, लेकिन केवल कार्यकर्ताओं और किसानों, और क्रांतिकारी युवाओं की ‘सचेत सामूहिक कार्रवाई के माध्यम से जरूर विजयी हो सकता है. ‘शहीदों के लिए उच्च प्रशंसा को सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता के राजनीतिक मूल्यांकन के साथ जोड़ा गया था.

[International Secretariat of the League Against Imperialism, Berlin, June, 1931.]

एक वेबसाइट ‘लोकवाणी’ भगत सिंह के कि शहादत पर अपने एक लेख में लिखता है – 23 मार्च को भगत सिंह की शहादत पर भाजपा की आईटीसेल के एक नौजवान कार्यकर्ता का ट्वीट देखा, जिसमें उस नौजवान ने उन्हें नमन करते हुए #RSS #IndianArmy #bhagatsingh ये तीन हैशटैग लगा रखे थे.

शायद उस नौजवान को यह नहीं पता नहीं होगा कि आरएसएस और उसकी पार्टी भाजपा ने हमेशा ही भगत सिंह के विचारों का क़त्ल किया है. एक एजेंडा के तहत ही उस नौजवान को भी बाकी सभी नौजवानों की तरह भगत सिंह को पूजना सिखाया गया है, पढ़ना नहीं. इसी वजह से उसे आरएसएस के उन मायाजालों के बारे में नहीं मालूम जो संघ परिवार ने क्रांतिकारियों के खिलाफ बुने हैं.

आरएसएस के सरसंघचालक भगत सिंह के विचारों को दबाते थे

आरएसएस की स्थापना करने वाले डॉ. हेडगवार ने आज़ादी की लड़ाई के समय युवाओं को भगत सिंह के प्रभाव से बचाने के लिए खूब मेहनत की थी. उनके बाद दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर ने भी भगत सिंह के आंदोलन को कोसा था. संघ के पास ऐसे साहित्य की भरमार है जो युवाओं को भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के बताए राह पर चलने से रोकता है. संघ के तीसरे प्रमुख बालासाहब देवरस ने खुद एक ऐसे किस्से के बारे में लिखा है, जिसमें डॉ. हेडगेवार ने उन्हें और दूसरे युवाओं को भगत सिंह और उनके विचारों के प्रभाव से बचाने के लिए प्रपंच रचा था.

बिना देरी किए पहले किस्सा पढ़िए :

‘कॉलेज की पढ़ाई के समय हम (युवा) सामान्यत: भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के आदर्शों से प्रभावित थे. कई बार मन में आता कि भगत सिंह का अनुकरण करते हुए हमें भी कोई न कोई बहादुरी का काम करना चाहिए. हम आरएसएस की तरफ कम ही आकर्षित थे क्योंकि वर्तमान राजनीति, क्रांति जैसी जो बातें युवाओं को आकर्षित करती हैं, पर संघ में कम ही चर्चा की जाती है.

जब भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दी गई थी, तब हम कुछ दोस्त इतने उत्साहित थे कि हमने साथ में कसम ली थी कि हम भी कुछ खतरनाक करेंगे और ऐसा करने के लिए घर से भागने का फैसला भी ले लिया था. पर ऐसे डॉक्टर जी (हेडगेवार) को बताए बिना घर से भागना हमें ठीक नहीं लग रहा था, तो हमने डॉक्टर जी को अपने निर्णय से अवगत कराने की सोची और उन्हें यह बताने की जिम्मेदारी दोस्तों ने मुझे सौंपी.

हम साथ में डॉक्टर जी के पास पहुंचे और बहुत साहस के साथ मैंने अपने विचार उनके सामने रखने शुरू किए. ये जानने के बाद इस योजना को रद्द करने और हमें संघ के काम की श्रेष्ठता बताने के लिए डॉक्टर जी ने हमारे साथ एक मीटिंग की. ये मीटिंग सात दिनों तक हुई और ये रात में भी दस बजे से तीन बजे तक हुआ करती थी. डॉक्टर जी के शानदार विचारों और बहुमूल्य नेतृत्व ने हमारे विचारों और जीवन के आदर्शों में आधारभूत परिवर्तन किया.

उस दिन से हमने ऐसे बिना सोचे-समझे योजनाएं बनाना बंद कर दीं. हमारे जीवन को नई दिशा मिली थी और हमने अपना दिमाग संघ के कामों में लगा दिया (देखें- स्मृतिकण- परम पूज्य डॉ. हेडगेवार के जीवन की विभिन्न घटनाओं का संकलन, आरएसएस प्रकाशन विभाग, नागपुर, 1962, पेज- 47-48).

भगतसिंह ‘लेनिन अमर रहे’ के नारे लगाते हैं और भाजपा वाले लेनिन की मूर्ति गिराते हैं

साल 2018, त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद बीजेपी समर्थकों ने साउथ त्रिपुरा में बुलडोज़र से व्लादिमीर लेनिन की मूर्ति को तोड़ दिया. मूर्ति गिरने के बाद भाजपा के नेता लेनिन के विचारों को भी निशाना बनाने लगे. अब इन मूर्खों को यह कौन समझाए कि लेनिन दुनिया भर के क्रांतिकारियों के प्रेरणा स्त्रोत थे और भगत सिंह भी उनके विचारों को मानते थे. भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु पर चल रहे मुक़दमे की एक सुनवाई 21 जनवरी को थी. इसी दिन लेनिन की पुण्यतिथि भी होती है.

उस समय के अख़बारों की रिपोर्ट्स के मुताबिक़ भगत सिंह और उनके साथी 21 जनवरी, 1930 को अदालत में लाल रुमाल बांध कर हाजिर हुए थे. जैसे ही मजिस्ट्रेट ने अपना आसन ग्रहण किया उन्होंने ‘समाजवादी क्रान्ति जिन्दाबाद,’ ‘कम्युनिस्ट इंटरनेशनल जिन्दाबाद,’ ‘जनता जिन्दाबाद,’ ‘लेनिन का नाम अमर रहेगा,’ और ‘साम्राज्यवाद का नाश हो’ के नारे लगाये. इसके बाद भगत सिंह ने अदालत में तार का मजमून पढ़ा और मजिस्ट्रेट से इसे तीसरे इंटरनेशनल को भिजवाने का आग्रह किया.

तार का मजमून –

लेनिन दिवस के अवसर पर हम उन सभी को हार्दिक अभिनन्दन भेजते हैं जो महान लेनिन के आदर्शों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ भी कर रहे हैं. हम रूस द्वारा किये जा रहे महान प्रयोग की सफलता की कमाना करते हैं. सर्वहारा विजयी होगा. पूंजीवाद पराजित होगा. साम्राज्यवाद की मौत हो.

भगत सिंह (1931)

मोदी बनाम भगत सिंह

भगत सिंह ने कोर्ट में एक नारा लगाया था, ‘पूंजीवाद पराजित होगा.’ लेकिन हमारे प्रधानसेवक इसी नारे के उल्ट पूंजीपतियों की गोद में जाकर बैठ गए हैं. कभी उनका अरबों-खरबों का क़र्ज़ माफ़ करते हैं तो कभी बैंकों के कर्जदारों को देश से ही भगा देते हैं. मोदी और संघ परिवार धर्म और भगवान के नाम पर जनता को गुमराह करते हैं, उनको आपस में लड़ाते हैं, दंगे करवाते हैं और फिर वोटों की भीख भी मांगते हैं. इसी के उल्ट भगत सिंह ने कहा था-

इन ‘धर्मों’ ने हिन्दुस्तान का बेड़ा गर्क कर दिया है. और अभी पता नहीं कि यह धार्मिक दंगे भारतवर्ष का पीछा कब छोड़ेंगे. इन दंगों ने संसार की नज़रों में भारत को बदनाम कर दिया है, और हमने देखा है कि इस अन्धविश्वास के बहाव में सभी बह जाते हैं. इन दंगों के पीछे साम्प्रदायिक नेताओं और अख़बारों का हाथ है.

आज भी संघ-भाजपा जैसी साम्प्रदायिक शक्तियां और गोदी मीडिया भगतसिंह के विचारों पर पर्दा डालकर खुलेआम हिन्दू-मुस्लिम दंगे करवाकर उनके विचारों का क़त्ल कर रहे हैं. युवा भी अब भगतसिंह को पढ़ने की बजाय उन्हें पूजने में लगे हुए हैं. ऐसे में क्रांतिकारियों के खिलाफ फैलाए गए दुष्प्रचार के जाल से लोगों को निकालने के लिए भाजपा और संघ की खिलाफत करने की सख्त जरूरत है.

संदर्भ :

1. ‘Jawaharlal Nehru’, in Rostislav Ulanovsky, ‘National Liberation, Essays on Theory and Practice’, Progress Publishers, Moscow, 1978, p. 253.

2. Horst Kruger, ‘Jawaharlal Nehru and the League Against Imperialism’, NMML, New Delhi, 1975, pp. 25-27.

3. Loc.cit. p. 24.

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