294 उम्मीदवारों में अगर 150 उम्मीदवार भाड़े पर लाये गए हैं, तो देश को भी हैरत हो रही है कि बंगाल में भाजपा आरएसएस ने आखिर काम क्या किया ? जैसे-जैसे समय गुजर रहा है, नकली रंग रोगन उतर रहा है. मुझे तो अब डर है कि ममता बनर्जी को कहीं पिछली बार से भी अधिक सीट न मिल जाये.
भाजपा की खस्ताहाल स्थिति को देखते हुए ममता विरोधी वोट जो लेफ्ट से छिटककर 2019 लोकसभा चुनावों में भाजपा की झोली में गिर गए थे, वे वापस आ सकते हैं. क्योंकि जिन्होंने उन्हें तृणमूल राज में सताया था, वे तो भगवा रंग में वोट मांग रहे हैं. 10 साल की सत्ता विरोधी लहर का फायदा लेफ्ट को मिलना था, लेकिन उसे बड़ी तेजी से भाजपा ने हथिया लिया क्योंकि उसके पास फायर के खिलाफ फायर करने की डबल क्षमता थी.
इससे एक बात बेहद स्पष्ट समझ आती है. यह त्रिपुरा में भी देखने को मिला था. वाम दलों के नेता 60-70-80 पार हैं, जिनके पास लड़ाकू तेवर सत्ता समायोजन में बहुत पहले ही खत्म हो चुका था इसलिए हर मुद्दे पर लड़ाई लड़ते हुए भी उसे औपचारिक खानापूर्ति से अधिक कहीं किसी को नजर आता था. जमीनी कार्यकर्ताओं और समर्थकों को तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय वसूली भाइयों से खुद को बचाने के लिए ही भाजपा की शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
आज जब अधिकतर भ्रष्टाचार में लिप्त तृणमूल महारथी भाजपा में जा चुके हैं, तो ममता के पास चुनाव जीतने पर पार्टी को बदलने का अवसर है. यह बहुत बड़ी जीत होगी. अभी से ममता के प्रति केंद्र सरकार के विकल्प तक की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है.
तमाम प्रचार, एईडी, सीबीआई के बावजूद जमकर मुकाबले में खड़े होने वाले लोगों के सामने भाजपा के मोम की तरह पिघलकर गिर जाना बंगाल में देखा जा सकता है. असम, केरल तमिलनाडु में सब कुछ चुपके से सफाई अभियान चल रहा है.
2 मई के बाद देश का किसान जो फैसला सुनाएगा उसे 130 करोड़ को मानना चाहिए और वह फैसला हम सबकी किस्मत को एक बार फिर से बदलने के लिए होगा.
- रविन्द्र पटवाल
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