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लखनऊ में मांटेसरी शिक्षण पद्धति की प्रणेता दुर्गा देवी वोहरा

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लखनऊ में मांटेसरी शिक्षण पद्धति की प्रणेता दुर्गा देवी वोहरा

लखनऊ में मांटेसरी शिक्षण पद्धति की प्रणेता दुर्गा देवी वोहरा के द्वारा स्थापित लखनऊ मांटेसरी स्कूल आज भी लखनऊ मांटेसरी इंटर कालेज के नाम से लखनऊ के सदर क्षेत्र में मौजूद है, जिस पर भू माफियाओं की नजर है.

Ram Chandra Shuklaराम चन्द्र शुक्ल

दुर्गा देवी वोहरा साण्डर्स वध के बाद राजगुरू और भगत सिंह को लाहौर से अंग्रेजों की नाक के नीचे से निकालकर कलकत्ता ले गयी. दुर्गा देवी वोहरा महान क्रन्तिकारी भगवती चरण वोहरा की पत्नी थी. जब भगवती चरण वोहरा का बम फटने से देहांत हो गया, तब दुर्गा देवी वोहरा जी ने अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए पंजाब प्रांत के एक्स गर्वनर लॉर्ड हैली पर हमला करने की योजना बनाई.

दुर्गा जी ने उस पर 9 अक्टूबर, 1930 को बम फेंक भी दिया. हैली और उसके कई सहयोगी घायल हो गए लेकिन हैली घायल होकर भी बच गया. उसके बाद दुर्गा जी बचकर निकल गईं लेकिन जब मुंबई से पकड़ी गईं तो उन्हें तीन साल के लिए जेल भेज दिया गया. बताया तो ये भी जाता है कि चंद्रशेखर आजाद के पास आखिरी वक्त में जो माउजर था, वो भी दुर्गा जी ने ही उनको दिया था.

जब वो जेल से रिहा हुईं तो अंग्रेजो ने उनको परेशान करना शुरू कर दिया. परेशान होकर वो गाजियाबाद निकल गयी और फिर वहां से लखनऊ निकल गयी. वहां उन्होंने मांटेसरी स्कूल खोला और आजीवन उसमे पढ़ाती रही. जो जानकारी उपलब्ध है उसके अनुसार प्राथमिक शिक्षा हेतु मांटेसरी शिक्षण पद्धति का अध्ययन करने वे ब्रिटेन भी गयीं थी.

लखनऊ में मांटेसरी शिक्षण पद्धति की शुरुआत करने वाली वे पहली महिला थी. आज लखनऊ नगर के भीतर की सैकड़ों एकड़ भूमि हड़प कर सिटी मांटेसरी स्कूल चलाने वाला शिक्षा माफिया भले ही इस पद्धति की शिक्षा का प्रणेता खुद को कहलवाए, पर लखनऊ में मांटेसरी शिक्षण पद्धति की शुरुआत करने का श्रेय दुर्गा देवी वोहरा को ही दिया जाना चाहिए.

इसके बाद दुर्गा जी गुमनाम हो गयीं क्योंकि जिसआज़ादी की कल्पना उन्होंने और बाकी क्रान्तिकारियों ने की थी, वो आजादी तो भारत में बिल्कुल कहीं भी व कभी भी दिखाई नही दी. इसलिए वो गुमनाम हो गयी. 1956 में जब नेहरू ने उनको मदद का प्रस्ताव दिया तो उन्होंने इंकार कर दिया. उनके द्वारा स्थापित लखनऊ मांटेसरी स्कूल आज भी लखनऊ मांटेसरी इंटर कालेज के नाम से लखनऊ के सदर क्षेत्र में मौजूद है, जिस पर भू माफियाओं की नजर है.

14अक्टूबर 1999 में वो इस दुनिया से गुमनाम ही विदा हो गयी. एक दो अखबारों ने उनके बारे में छापा बस. आज आज़ादी के 73 साल के बाद भी न तो उस वीरांगना को इतिहास के पन्नों में जगह मिली और न ही वो किसी को याद रही, चाहे वो सरकार हो या मीडिया. एक स्मारक का नाम तक उनके नाम पर नही है तथा कहीं कोई मूर्ति नही है उनकी. सरकार तो भूली ही जनता भी भूल गयी.

महिलाओं को इस देश की जिन नारियों पर गौरव का बोध होना चाहिए, ऐसे नाम उंगलियों पर गिने जाने भर के हैं. रजिया बेगम, रानी चेनप्पा, झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, लक्ष्मी बाई की महिला सेना पति झलकारी बाई, ऊदा देवी, अवध की बेगम हजरत महल तथा दुर्गा देवी वोहरा इस देश की ऐसी वीरांगनाएं हैं, जिनके नाम इस देश के इतिहास में इनके कार्यों व बहादुरी के लिए दर्ज किया जाना चाहिए तथा इस देश की इन शक्तिशाली महिलाओं का अभिनंदन किया जाना चाहिए.

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