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डिलीवरी बॉय आपके बाप का नौकर नहीं है…

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डिलीवरी बॉय आपके बाप का नौकर नहीं है...

Shyam mira singhश्याम मीरा सिंह
Zomato से अनुरोध है कि जितनी सहानुभूति उसे अपने ग्राहक की है, उतनी ही सहानुभूति अपने कर्मचारी से भी दिखाए और इस पूरे मामले की लीगल जांच कराए. जब तक जांच पूरी न हो तब तक कामराज को न्यूनतम मज़दूरी देती रहे. जो भी दोषी हों, और जितने भी दोषी हों, ज़्यादा, कम, बहुत ज़्यादा, बहुत कम, वो सब सच बाहर आना चाहिए.

मैंने स्वयं 2 साल तक फूड डिलीवरी का कार्य किया है और मैं यह जानता हूं कि डिलीवरी बॉय को लोग अपना स्लेव ही मानते हैं. अगर आपको कुछ परेशानी हो तब भी वे लोग आपको पांचवीं या आठवीं मंजिल पर बुलाते हैं और वहां पहुंचकर भी वे आपसे थैंक यू तक भी नहीं कहते. फ़िर पानी की क्या बिसात ??? (सिर्फ़ कुछ लोगों को छोड़कर). और इसके बाद भी अगर रेस्टोरेंट की गलती होती है या उनके कारण देर होती है, तब भी वे आपको ही निशाना बनाते है. आप चाहे मर जाएं तेज़ गाड़ी चलाते हुए, मग़र उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता. कई बार तो फ़ोन भी नहीं उठाते, जिसके कारण परेशान होना पड़ता है, जिसके कारण हमारी कमाई पर भी असर पड़ता है. कई बार बेवज़ह इनकी डांट भी सुननी पड़ती है. और कई बार ये इतने इगोस्टिक हो जाते है कि ये हमें अपना ग़ुलाम ही मानने लगते है. ख़ैर कहने को बहुत कुछ है, पर इस बात पर विराम लगाना ही उचित है. बस कुछ लोग मिलते हैं 100 में से 2 लोग, जिन्होंने हमसे पानी का पूछा हो.

– ऋषभ दीपा चोलकर जी का निजी अनुभव

डिलीवरी बॉय कामराज को काम से निकाल दिया गया है. बंगलौर के कामराज धाराप्रवाह अंग्रेज़ी नहीं बोल सकते, पर दिल भर रो सकते हैं. कामराज जोमैटो के लिए 26 महीने से घर-घर खाना पहुंचा रहे हैं. अब तक उन्होंने क़रीब 5 हज़ार डिलीवरी की हैं, जिनमें उन्हें 5 में से 4.7 रेटिंग मिली है, जोकि सबसे अधिक रेटिंग में से एक है.

NDTV और बाक़ी जगह उनका इंटर्व्यू देखने से भी समझ आ जाएगा कि कामराज असभ्य और अपराधी क़िस्म के आदमी नहीं हैं बल्कि Well-behaved और Well-mannered है, पर सोशल मीडिया इंफलुएंसर की इकतरफ़ा कहानी के चलते कामराज को सस्पेंड कर दिया गया, जिसके बाद कामराज पर सिवाय फूट फूटकर रोने के कुछ नहीं बचा.

सोचने वाली बात है अगर इतनी ही नौकरियां कामराज के आसपास घूम रही होतीं तो अधेड़ उम्र में बीस-बीस रुपए के लिए घरों पर खाना नहीं पहुंचा रहे होते. कामराज को नौकरी से निकाल दिया गया क्योंकि एक इंफलुएंसर ने दुनिया को वीडियो बनाकर बताया कि डिलीवरी बॉय ने उनके मूंह पर हिट कर दिया है, जिससे उनकी नाक ज़ख़्मी हो गई.

पूरे देश ने एक तरफ की कहानी सुनी और कामराज हम सब की कहानियों में ‘बेहूदे’ हो गए. दूसरी साइड सुनने का वक्त किसी को नहीं. देर सबेर अब दूसरी साइड की कहानी सामने आ रही है, पर डिलीवरी बॉय की औक़ात ही क्या है ? उसकी कहानी सुनने का वक्त किसी को नहीं. कामराज रो रोकर कह रहे हैं कि उन्होंने ‘सोशल मीडिया इंफलुएंसर’ को हिट नहीं किया जबकि वे अपनी ही उंगली में पहनी एक अंगूठी से ज़ख़्मी हुई हैं.

पूरी कहानी ऐसे है कि कामराज खाना लाते समय रास्ते में फंस गए थे, और मैडम जी को सूचित करते रहे कि ‘जाम में फंस गए हैं, प्लीज़ कंपनी से शिकायत मत करना.’ घर पर खाना लेकर पहुंचे तो मैडम जी ने कहा कि ‘नियमानुसार लेट होने पर उन्हें free में खाना चाहिए.’ लेकिन पैसा कटना था उस आदमी की जेब से जो पांच पांच मंज़िल सीढ़ियों पर चढ़कर आपके लिए खाना पहुंचाते हैं इसलिए कि उन्हें बीस-तीस रुपए मिल सकें. पर मैडम जी को उसी के पैसों से पेट भरना था.

कामराज कहते रहे कि मैडम जी शिकायत मत करिए. शिकायत होती है तो उसी की जेब से पैसे कटते हैं. और अपराध भी क्या ? अपराध ये कि रास्ते में जाम में फंस गए, इसलिए टाईम पर खाना डिलीवर न कर सके ? यही गलती थी कामराज की, यही अपराध था उसका. मैडम जी लगातार कंपनी की चैट सपोर्ट से चैट करती रहीं, शिकायत करती रहीं. कामराज मनाते रहे कि मैडम जी शिकायत मत करिए, खाना इसलिए मुफ़्त नहीं दे सकता क्योंकि कैश ऑन डिलीवरी है.

मैडम जी ने अपने घर के आधे बंद गेट के अंदर खाने का पैकेज रख लिया. पैसे न मिलने पर कामराज ने खाने के उस पैकेज को उठाने की कोशिश की. एक तरफ़ मैडम जी, एक तरफ़ कामराज और बीच में दरवाज़ा. यहीं से शुरू हुई कहानी. कहानी जो मैडम जी ने अपनी वीडियो में नहीं सुनाई. ऐसा नहीं है कि कामराज ने ऊंची आवाज़ में बात न की होगी, ऐसा नहीं है कि कामराज ने ग़ुस्सा न किया होगा. किया होगा, इसकी पूरी संभावनाएं हो सकती हैं लेकिन संभावनाएं तो इसकी भी हो सकती हैं कि मैडम जी ने भी जिरह की हो. संभावनाएं तो ये भी हो सकती हैं कि मैडम जी ने भी उसे बेहूदगी से ट्रीट किया हो. हो तो ये भी सकता है कि मैडम जी ने डिलीवरी बॉय को आदमी मानने से ही इनकार कर दिया हो, क्योंकि उसकी औक़ात ही क्या है ? उसे तो फटकारा जा सकता है, उसे तो धिक्कारा भी जा सकता है !

इसी बहस में डिलीवरी बॉय ने मैडम जी से कहा कि ‘मैं आपका ग़ुलाम नहीं हूं.’ यही लाइन शायद डिलीवरी बॉय को नहीं कहनी थी. ग़ुलाम तो वो है. ग़ुलाम उसके वर्ग के करोड़ों लोग हैं जिनकी जगह शहरों के ऊंचे मकानों में रहने वाले मालिक के डॉगी जितनी नहीं है. बहस हुई. जिरह हुई. सही ग़लत, बुरे अच्छे की बहस के इतर. अभी डिलीवरी बॉय का भी वर्जन सुनते हैं.

डिलीवरी बॉय का कहना है कि ‘मैडम जी ने उसके लिए चप्पल उठाई. चप्पल मारते हुए आती मैडम जी से अपने बचाव में जब उसने मैडम जी के हाथ को धक्का देने की कोशिश की तो मैडम जी के हाथ की अंगूठी उनकी नाक में ज़ख़्म कर गई.’ जिसका अनुवाद अख़बारों और सोशल मीडिया में ऐसे हुआ कि अंग्रेज़ी बोलने वाली मैडम को देशी भाषा कन्नड़ वाले डिलीवरी बॉय ने हिट कर दिया है. हम सबने इस खबर पर आंखें नटेरीं, हैश टैग चलाए, ग़ुस्सा हुए, रोष किया और कामराज को नौकरी से निकाल दिया गया.

कामराज जिसकी अम्मा डायबिटीज़ की सिरियस स्टेज पर हैं. कामराज जो घर में कमाने वाला इकलौता है, जिसे इंस्टाग्राम पर क्रीम पाउडर बेचने के बदले पैसे नहीं मिलते, जो सोशल मीडिया पर गोरे रंग वाली फ़ेयर लवली नहीं बेच सकता, जो घर-घर खाना पहुंचा कर हर रोज़ कुछ कमाकर लाता है और घर लाकर बच्चों को खिलाता है, उसी कामराज की नौकरी चली गई.

पर सोचने वाली बात है अगर मैडम जी की स्टोरी में कामराज नहीं था या कामराज की कहानी नहीं थी, तो कम से कम उस जगह पर आप ही अपना कॉमनसेंस रख लेते और एक बार अपना प्रश्न बदलकर अपने आप से ये पूछ लेते कि ‘हो तो ये भी सकता है ? हो तो वो भी सकता है ?’ अगर ऐसा भी कर लेते तब भी आप पूरी कहानी का आधा सा हिस्सा जान जाते. पर कामराज की कहानी कौन सुने ? कौन उसके लिए लिखे ?

Zomato से अनुरोध है कि जितनी सहानुभूति उसे अपने ग्राहक की है, उतनी ही सहानुभूति अपने कर्मचारी से भी दिखाए और इस पूरे मामले की लीगल जांच कराए. जब तक जांच पूरी न हो तब तक कामराज को न्यूनतम मज़दूरी देती रहे. जो भी दोषी हों, और जितने भी दोषी हों, ज़्यादा, कम, बहुत ज़्यादा, बहुत कम, वो सब सच बाहर आना चाहिए.

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ROHIT SHARMA

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