मुम्बई में सीबीआई की विशेष अदालत में चल रहे सोहराबुद्दीन हत्याकांड की सुनवाई कर रहे जस्टिस बृजगोपाल हरकिशन लोया की हत्या से जुड़े सनसनीखेज समाचार को देश की दलाल मीडिया ने पूरे तीन साल तक दबाये रखा, जब तक की एक साहसी पत्रकार निरंजन टाकले ने गहरी पड़ताल के बाद उसे प्रकाशित नहीं कर दिया. निरंजन टाकले की गहरी पड़ताल को छोटी वेबसाईट पोर्टल ‘कारवां’ ने प्रकाशित किया.
इस खबर से प्रसारित होते हीं देश की तमाम मुख्यधारा की मीडिया को मानो काठ मार गया और इस खबर को दबाने की उसकी भरपूर कुचेष्टा लगातार जारी है. रवीश कुमार की लगातार रिर्पोटिंग के बाद भी अन्य मीडिया संस्थान ने चुप्पी साध लिया है और अन्य गैर-जरूरी मुद्दे को उठाकर जस्टिस लोया की हत्या से लोगों का ध्यान भटकाने का प्रयास कर रहा है.
सीबीआई के न्यायाधीश जस्टिस लोया की मौत से जुड़ी खबरें एक ओर जहां निःसंदेह उनकी हत्या की ओर ईशारा कर रहा है, वहीं भारतीय शासन सत्ता पर विराजमान भाजपा की हत्यारी और अपराधियों की सरकार को कठघरे में खड़ा करती है. इसके साथ ही यह भी दर्शाती है वर्तमान भाजपा की मोदी सरकार जो देश की सत्ता पर विराजमान हो गया है, देश के नाम एक भयावह संदेश प्रसारित करती है कि जो कोई न्याय का पक्ष लेगा, उसकी निर्मम हत्या कर दी जायेगी. आजादी के बाद से हत्या पर उतारू आर एस एस आज जब भाजपा के माध्यम से सत्ता पर काबिज हो गई है तब उसके कार्यकर्ता, नेता, विधायक, सांसद आदि हत्या करने के साथ-साथ आम जनता को डराने और धमकाने का घृणित प्रयास करता आ रहा है.
जस्टिस लोया की हत्या का पुख्ता सबूत आज देश के सामने है, उनकी हत्या से डरे परिवार की एक सदस्या उनकी बहन ने सवाल उठाये जब मुम्बई में पेशे से डॉक्टर उनकी बहन अनुराधा बियाणी और उनकी बेटी नूपुर बालाप्रसाद बियाणी ने अपने संदेह को जगजाहिर किया.
सुप्रीम कोर्ट ने सोहराबुद्दीन के केश को एक ही जस्टिस की निगरानी में किये जाने का आदेश दिया था, इसके बावजूद पहले सुनवाई कर रहे जस्टिस जेटी उत्पद को उस केश से बीच में ही हटाकर उनकी जगह लोया को लाया गया. लोया को पहले तो मुम्बई के तत्कालीन चीफ जस्टिस मोहित शाह के माध्यम से 100 करोड़ रूपये की रिश्वत देने की कोशिश की गई, जिस पर असफल होने पर 1 दिसम्बर, 2014 ई. को ही उनकी हत्या कर दी गई.
जस्टिस लोया को रिश्वत देने की कोशिश और उनकी हत्या कर दिये जाने के पीछे सीधे तौर पर भाजपा का वर्तमान अध्यक्ष और नृशंस हत्यारा व अपराधी अमित शाह और उनके गुर्गे शामिल हैं. मालूम हो कि अमित शाह ही शोहराबुद्दीन हत्याकांड मामले के मुख्य आरोपी थे. जिस केश की सुनवाई विश्वसनीयता के लिए गुजरात से हटाकर मुम्बई सीबीआई की अदालत में स्थानान्तरित किया गया था, जिसे जस्टिस जेटी उत्पत देख रहे थे. उनके द्वारा सख्त व न्यायोचित रूख अख्तियार किये जाने पर उन्हें तत्क्षण हटाकर जस्टिस लोया को लाया गया. उनको भी रिश्वत लेकर न्याय के विरोध में खड़ा न होने पर उनकी हत्या कर दी गई. उनकी हत्या के तुरंत बाद दलाल जज एम जी गोसावी द्वारा महज 30 दिन अन्दर अमित शाह को क्लिनचीट दे दिया गया.
जस्टिस लोया की रिश्वत न लेने पर हत्या कर दिये जाने की परिघटना न्याय-व्यवस्था की भी खरीद-बिक्री व धमकाने का एक पुख्ता सबूत है, जिसे विस्मृति के कागार में दफन किये जाने की भयानक कुचेष्टा भी जाहिर हो गई है.
यह परिघटना यह भी जाहिर करता है कि न्यायपालिका स्वतंत्र और मुक्त कतई नहीं है. वह देश की आम जनता के विश्वास पर कतई खड़ा नहीं है. आज न्यापालिका दलालों और गुंडों के मातहत है. जो कोई अपना स्वतंत्र छवि बरकरार रखना चाहते हैं, वे जस्टिस लोया की तरह मौत की घाट उतार दिये जायेंगे. इस परिघटना से सारा देश अचंभित है कि आखिर 2014 में सत्ता पर कौन आ गया है !!
जस्टिस लोया की हत्या यह सबित करती है कि देश की सत्ता पर काबिज भाजपा की यह मोदी सरकार लफ्फाजों, गुंडों और हत्यारों की सरकार है, जिसका एकमात्र उद्देश्य देश की जनता की जमा पूंजी का लूट-खसोट करना और देश की जनता को अज्ञानता व बदहाली के अंधकूप में धकेल देना.
इससे पहले कि बहुत देर हो जाये, बची-खुची न्यायप्रिय जनवादी ताकते खत्म हो जाये, देश की आम जनता को पहलकदमी अपने हाथों में लेकर देश की लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाना चाहिए.