Home गेस्ट ब्लॉग मेडिकल साइंस का सिद्धांत यानी जंगल कानून

मेडिकल साइंस का सिद्धांत यानी जंगल कानून

10 second read
0
2
570

मेडिकल साइंस का सिद्धांत यानी जंगल कानून

पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ

मेडिकल साइंस का सिद्धांत जंगल कानून या मत्स्य सिद्धांत की तरह है. अर्थात हर ताकतवर कमजोर को मारता है या हर बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है. और ये लूट और हत्या का धंधा सरेआम (सबके समझते-बुझते) चलता है, मगर मजाल है कि कोई इसके विषय में चूं भी बोले. अस्पतालों में खुलेआम लूट और हत्या का धंधा चल रहा है और बहुत बार तो मरीज के शरीर में से उनके अंग-प्रत्यंग भी बिना जानकारी के निकाल लिये जाते हैं. और सब कुछ समझते/जानते भी हर कोई लुटकर भी चुप रहता है.

कोरोना काल में अस्पतालों और दवा कम्पनियों की लूट सार्वजनिक रूप से स्पष्ट हो ही चुकी है. इस क्षेत्र की सबसे ज्यादा और लगातार होने वाली जो लूट है, वो है हार्ट ऑपरेशन.

मरीज बेचारा जाता गैस की समस्या की वजह से है, मगर उसे इस तरह डरा दिया जाता है कि वो ऑपरेशन करवाने को तुरंत राजी हो जाता है. जबकि हकीकत ये है कि मेडिकल साइंस में ब्लॉकेज का शल्य चिकित्सा पद्धति में कोई इलाज है ही नहीं. बेलून थेरेपी में नाड़ियों के अंदर गुब्बारा फोड़कर उन चिप-चिपे पित् से भरी नाड़ियों को कुछ समय के लिये चौड़ा कर दिया जाता है जबकि स्टंड डालने की प्रक्रिया में पित् से गली हुई नाड़ियों को उस स्थान से एक प्रकार से स्टंड लगाकर ऐसे टेप कर दिया जाता है जैसे पानी के नल फूटने पर हम उसे टेप करके पानी का बहाव रोकते है.

और ओपन हार्ट सर्जरी में तो शरीर के दूसरे हिस्से की वात वाली नाड़ियों को काटकर हार्ट में रहे एक्स्ट्रा वाल के साथ जोड़ दिया जाता है. इनमें से किसी भी तरीके में पित्त (कोलेस्ट्रॉल) का हृदय से न तो निदान होता है और न ही पित्त का आवेग खत्म होता है लेकिन ऐसे इलाजों के नाम पर आपका बिल ढाई-तीन लाख से लेकर 20-25 लाख तक का बना दिया जाता है, जिसमें डॉक्टर से लेकर अस्पताल तक और दवा बनाने वाले से लेकर दवा बेचने वाला तक सब मिलकर आपको लूटते हैं.

पित्त या कोलेस्ट्रॉल असल में है क्या ?

इसे यूं समझिये कि हम जो भी खाते-पीते हैं वो जब आंत में पहुंचता है, तब उस भोजन को पचाने/गलाने के लिये पित्ताशय या लीवर (यकृत के दांयी तरफ छोटी बॉल जैसा अंग) एक पीले रंग का लिजलिजा-सा कड़वा-चिकना और गर्म रस उत्सर्जित करता है, जिसमें कच्चे मांस जैसी बदबू होती है और यही रस भोजन गलाने/पचाने का काम करता है.

जब हम भोजन में पित्तप्रधान भोजन ग्रहण करते हैं तब आंत में पित्त की मात्रा ज्यादा हो जाती है, जिससे ये आंत से बाहर निकलकर पहले पित्ताशय में और उसके भर जाने पर खून के साथ हृदय की धमनियों में पहुंचकर इकट्ठा होने लगता है. यही कोलेस्ट्रॉल होता है (अभी तक ये शुद्ध रूप में होता है अतः इसे गुड कोलेस्ट्रॉल कहा जाता है), इसमें जलीय तत्व 85% होता है जो खून के साथ मिल जाता है और 12% अग्नि तत्व होता है जो रक्त का तापमान बढ़ाता है, जिससे रक्तचाप अस्थिर होता जाता है और गर्मी की वजह से ब्लडप्रेशर और धड़कने बढ़ने लगती है. जिसके निराकरण के लिये फेफड़े ज्यादा ऑक्सीजन सोखने लगते हैं. मगर ऐसा होने से शरीर के अन्य हिस्सों में ऑक्सीजन कम होने लगता है.

बचा हुआ 3% ठोस पित्त हार्ट की धमनियों में चिपक जाता है (यही बैड कोलेस्ट्रॉल होता है) और थोड़े समय में सड़ने लगता है, जिससे इसका वर्ण नीला/काला और स्वाद खट्टा होने लगता है. जब खून इन धमनियों से शुद्ध होने की प्रक्रिया में गुजरता है तो उसमें इसका अंश मिल जाता है जिससे खून में अम्लीयता बढ़ने लगती है और आपको एसिडिटी का अहसास अर्थात जलन होने लगती है.

चूंकि खून में अम्लीयता बढ़ी होती है अतः आपका पाचन तंत्र कमजोर होता जाता है, जिससे अपच, कब्ज होने लगता है, पेट का मोटापा बढ़ने लगता है. कई बार बढ़े पेट की वजह से वायु दाब भी बढ़ जाता है, जिसे आफरा आना कहा जाता है, जिसे गैस कहते हैं और यही गैस ह्रदय में जाकर हार्ट अटैक का कारण बनती है.

पित्त वृद्धि में बहुत अधिक थकावट, नींद में कमी, शरीर में तेज जलन, गर्मी लगना, ज्यादा पसीना आना, त्वचा का रंग गाढ़ा हो जाना, अंगों से दुर्गंध आना, मुंह, गला आदि का पकना, ज्यादा गुस्सा आना, बेहोशी या चक्कर आना, मुंह का कड़वा या खट्टापन, ठंडी चीजें ज्यादा खाने का मन करना, त्वचा, मल-मूत्र, नाखूनों और आंखों का रंग पीला पड़ना.

इसके न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक प्रभाव भी होते हैं, जिसमें बहुत जल्दी गुस्सा हो जाना, यादाश्त कमजोर होना, कठिनाइयों से मुकाबला ना कर पाना अर्थात उत्साह की कमी और मैथुन इच्छा में कमी इत्यादि इसके प्रमुख लक्षण हैं. ज्यादातर मामलों में ऐसे लोग नकारात्मक होते जाते हैं और उन्हें मानसिक रोग या तनाव की समस्या होने लगती है. कई बार ये पित्त छोटी आंत में जमा होने लगता है, जिससे पीलिया रोग या पेट का कैंसर जैसी बीमारियां भी हो सकती है.

पित्त बढ़ने के कारण

चटपटे, नमकीन, मसालेदार और तीखे खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन, शराब का सेवन, तिल का तेल, सरसों, दही, छाछ या खट्टा सिरका आदि का सेवन. सही समय पर खाना ना खाना या बिना भूख के ही बार-बार खाना, बहुत ज्यादा मेहनत करना, बहुत ज्यादा काम-वासना का आवेग, अंडा, मांस का सेवन.

पित्त निवारण के उपाय

बढ़े पित का इलाज आपके घर के किचन में मौजूद है. कड़वी, कसैली और मिष्ठान पदार्थ, घी, मक्‍खन, दूध, पतागोभी, खीरा, शिमला मिर्च और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन तथा सभी तरह की दालों के साथ-साथ तेजपत्ता, दलिया और भोजन में सलाद और भोजन के बाद हरी सौंफ के साथ मिश्री का सेवन.

पित्त को संतुलित करने का सबसे अच्‍छा तरीका मेडिटेशन या ध्‍यान भी है और योग की मदद से भी पित्त दोष को संतुलित किया जा सकता है. इसके अलावा चावल के माण्ड में चीनी मिलाकर और गर्म खीर पी सकते हैं क्योंकि ये भी पित्त का शमनक है. इसी तरह असली हींग (बाज़ारों में मिलने वाली अरारोट वाली पीली रेडीमेड हींग नहीं बल्कि बिना अरारोठ वाली ब्रॉउन हींग) वात/वायु का उपशमन करती है और धनिया और नमक दोनों कफ का नाश करते हैं.

पित्तवृद्धि के समय परहेज

मूली, काली मिर्च और कच्चे (हरे) टमाटर, तिल का तेल, सरसों का तेल, काजू, मूंगफली, पिस्ता, अखरोट और बिना छिले हुए बादाम, संतरे या टमाटर के ज्यूस, कॉफ़ी और शराब से परहेज करें.

अब सबसे खास बात

प्रकृति ने हमें जो दिल दिया है वो सिर्फ 20% ऑक्सीजन ग्रहण करके भी हमें स्वस्थ रख सकता है अर्थात अगर हार्ट की तीनों धमनियां 80% ब्लॉक हो जाये अथवा एक धमनी सौ प्रतिशत ब्लॉक हो और दो दूसरी 80-90% ब्लॉक हो तथा तीसरी 50% ब्लॉक हो तो भी आप सामान्य और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं. (हां, खेेल-कूूद में आपको थकान जल्दी हो सकती है) इसके लिये आपको बलून, स्टंड या ओपन हार्ट सर्जरी करवाने जरूरत नहीं होती.

इसके अलावा हमारे हार्ट में दोनों साइड में चार छोटी धमनियां और एक युरोशेप बड़ी धमनी एक्स्ट्रा होती है, जिसमें छोटी ब्लड सर्कुलेशन के लिये तथा बड़ी युरोशेप ऑक्सीजन के लिये होती है, मगर जानकारी के अभाव में और डर की वजह से आप डॉक्टर के झांसे में आकर लुटते चले जाते हैं और अपने शरीर, स्वास्थ्य और धन तीनों की बर्बादी करते हैं.

अगर आप अपनी जीवनशैली में बदलाव करते हैं तो गंभीर ब्लॉकेज को भी खत्म कर सकते हैं जबकि सर्जरी से ब्लॉकेज खत्म नहीं होता. हार्ट में जमे हुए पित्त (बैड कोलेस्ट्रॉल) को खत्म करने लिये आप ठंडे तेलों से शरीर की मसाज करे, ठंडे पानी से नियमित स्नान करे और तैराकी करे, रोजाना कुछ देर सूर्योदय से पहले घास पर नंगे पांव टहलें लेकिन धूप में टहलने से बचें.

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…