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जिस देश की मानसिकता में ही क्रूरता और हिंसा हो…

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जिस देश की मानसिकता में ही क्रूरता और हिंसा हो...

पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में एक महिला को बंधक बनाकर बाप-बेटे ने पहले उसके साथ गैंगरेप किया गया और फिर उसके प्राइवेट पार्ट में आग लगा दी. (खबर स्रोत, 26 फरवरी).

उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में अपनी बेटी से छेड़छाड़ की शिकायत करने वाले पीड़िता के पिता की 12 गोली मार हत्या कर दी गई. (खबर स्त्रोत, 2 मार्च)

अरे, जिस देश की मानसिकता में ही क्रूरता और हिंसा हो और बलात्कार के बाद यौनांगों में डंडे, कांच, रॉड और पत्थर डाल दिये जाते हों, आंतड़ियां बाहर खींच दी जाती हों, यहांं तक कि जेलों में बंद महिला कैदियों को प्रताड़ित करने के लिये प्रसाशक वर्ग (पुलिस और सेना भी) उनके साथ दुर्व्यवहार करता हो और उनके शरीर (गुप्तांगों) में मिर्च पाउडर डाला जाता हो और उनके मुंह में जबरन मलमूत्र ठूंसा जाता हो, स्तनों को निचोड़कर दूध आने या न आने का परीक्षण सेना द्वारा किया जाता हो, उस देश में अगर किसी ज्योति के साथ, किसी निर्भया के साथ, किसी विक्षिप्ता के साथ या फिर भगाणा जैसी घटनाओं में खाप पंचायतों द्वारा अथवा उन्नाव-सूरत जैसी घटनाओं में बच्चियों के साथ अथवा वर्तमान समय की हालिया घटना में सीतापुर में महिला के साथ जो क्रूरता हुई, वो निंदनीय तो हो सकती है परन्तु अनपेक्षित बिल्कुल नहीं है.

  • ये वो देश है जिसके सबसे बड़े धर्म (हिन्दू धर्म) के भगवान और देवताओं ने भी छल और बल का प्रयोग कर रमणियों के साथ बलात्कार किया और इसके चर्चे धर्मग्रंथों में कथाओं के रूप में सार्वजनिक रूप से (गाते हुए) मिल जायेंगे. यही नहीं गरुड़ पुराण में तो त्रास देने (पीड़ित करने) के क्रूरतम तरीके नर्क में पापफल के रूप में लिखे हुए हैं.
  • ये वो देश है जिसके दूसरे सबसे बड़े और सबसे ज्यादा अनुयायी वाले धर्म (इस्लाम) में तो इंसानी मादा को जीते जी मैथुन करने की मशीन समझा गया है और मरने के बाद भी मादा लाशों के साथ संभोग को जायज ठहराया गया है.
  • ये वो देश है जिसके धर्मग्रंथों में नारी के बारे में स्पष्ट रूप से लिखा है कि ‘नारी नर्क का द्वार है.’
  • ये वो देश है जिसके नागरिकों में औरतों के प्रति आम मानसिकता है कि ‘औरत पैर की जूती है.’
  • ये वो देश है जिसमें हजारों सालों से स्त्रियों के विषय में मिथक है कि ‘विष दे मगर विश्वास न दे.’
  • ये वो देश है जिसमे सैकड़ो साल पहले एक कथित धर्म के लेखक ने महिलाओं के बारे में लिखा था कि ‘ढोल गंवार पशु अर नारी, ते सब ताडन के अधिकारी.’
  • ये वो देश है जिसमें खुद विवाहित लुगाइयों का बिनब्याही लड़कियों के प्रति सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाने वाला वाक्य ‘देखो इसको, गज भर की जबान’ है.
  • ये वो देश है जिसमें तिरया के प्रति कई मुहावरे हैं, जिसमें सबसे प्रसिद्ध मुहावरा ‘तिरया चरित्र जाने न कोई पति मार के सती होई’ है.
  • ये वो देश है जिसमें अनेकानेक कुख्यात जनाना लोकोक्तियां है जैसे – ‘काणी के ब्याह में सौ जोखम’, ‘मर्दों के खेला में औरत का नाच.
  • ये वो देश है जिसमें ज्यादातर बच्चों (बालक और बालिकाओं दोनों) का शोषण होता है.
  • ये वो देश है जिसमें रिश्तों के ढोल पीटे जाते हैं लेकिन उन्हीं रिश्तों की मर्यादा तार-तार कर नव-ललनाओं से लेकर वृद्धाओं तक का बलात्कार होता है.
  • ये वो देश है जिसमें विवाह के पश्चात युवतियों की इच्छा का कोई महत्व नहीं. बस, मर्द की मर्दानगी उसके यौनांगों में ही सिमट जाती है.
  • ये वो देश है जिसका मर्दों की मर्दानगी यौनहिंसा को हमेशा आतुर रहती है.

आप शायद भूल गये हैं कि अमेज़ॉन कम्पनी ने स्त्रियोनि वाली ऐश-ट्रे की पूरी दुनिया के मुकाबले सबसे ज्यादा बिक्री इसी देश में की थी. (हालांंकि मैंने और मेरे जैसे चंद लोगों ने सोशल मीडिया पर इसके विरोध में मुहीम भी छेड़ी थी), मगर जिस देश में मर्दो को सिगरेट तक बुझाने के लिये ऐश-ट्रे में योनाकृति चाहिये. उस देश में जिसमें इतना सब रोज होता है. हर पल/हर क्षण होता है और आप सोचते है कि बलात्कार करके उसके यौनांगो में आग लगाना बहुत बड़ी बात है ?

मुझे आपके भोलेपन पर तरस आता है जब रेप और गैंगरेप बंद करवाने के नाम पर आप केंडल-मार्च निकालते हैं और महिलाओ के खिलाफ यौन-हिंसा बंद करने के नारे लगाते हैं. अरे ! ये सब करने वाले भी या तो आप ही हैं या फिर आपके मर्द बच्चे हैं. आपकी जागरूकता और मानसिकता दोनों ही सिर्फ मोमबत्ती लेकर प्रदर्शन करने तक ही सीमित है लेकिन मोमबत्ती जलाने से बदलाव नहीं आते बल्कि अपने और अपने बच्चों की मर्दवादी सोच बदलने से बदलाव आते हैं.

अगर आपको मेरी बात गलत लगती है तो मुझे कहना पड़ेगा कि आप दिमागी विकलांग हैं और आपको किसी मनोचिकित्सक के पास जाकर अपना इलाज करवाना चाहिये क्योंकि जब तक आपकी दिमागी विकलांगता (मर्दवादी सोच) खत्म नहीं होगी और सच में स्त्री को समानता से जीने नहीं देंगे, लड़के और लड़कियों के पालन पोषण में फर्क करना बंद नहीं करेंगे तब तक कोई बदलाव नहीं होने वाला है.

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ROHIT SHARMA

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