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‘पद्मावती’ पर भाजपा-कांग्रेस का पद्मासन

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भारतीय इतिहास के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसका कोई मुकम्मल लिखित इतिहास नहीं है. संभवतः पहली बार अंग्रेजों ने भारत के इतिहास को वैज्ञानिक तरीके से खोजने और लिखने का सही तरीका अपनाया था. इसके परिणामस्वरूप भारत का एक मुकम्मल इतिहास बनाने में इतिहासकारों ने पुरातत्ववेताओं और विभिन्न लिखित साहित्यों के सहारे हकीकत को कल्पना से अलग करते हुए लिखा. अनेक पात्र जो वास्तव में एक कवि के कल्पना की ऊपज थी, को आज वास्तविक इतिहास बताया जा रहा है. यह इतिहास के साथ कल्पना की उड़ान का सबसे वीभत्स चेहरा है.

भारतीय इतिहास का लिखित स्त्रोत वास्तव में धुमक्कर यात्रियों और विदेशी रचनाकारों के विभिन्न काव्यों के आधार पर पुर्नलेखित की गई है. ताजा विवाद ‘पद्मावती’ नामक एक पात्र से जुड़ी हुई है, जिसे राजपूताना शौर्य के प्रतीक के तौर पर अपनाया जा रहा है. जिसमें उक्त पात्र का अपने साथ 1600 स्त्रियों सहित जलकर मर जाने की हृदयविदारक गाथा है, जो वास्तव में सती-प्रथा का सबसे कुरूप चेहरा है.

आज के दौर में पद्मावती के सामूहिक जलमरने की व्यथा को जब राजपूत अपना शौर्य मानते हैं, तब महारानी लक्ष्मी बाई के पराक्रम को क्या माना जायेगा, जिसमें उन्होंने अपनी पुत्र की सिंहासन की रक्षा करने के लिए अंग्रेेजों से लोहा लिया था और अंग्रेजों को अनेक युद्धों में पराजित भी किया था ? कलिंग की उन वीर स्त्रियों को किस निगाह से देखा जायेगा जब अशोक सम्राट का सामना करने के लिए पुरूष विहीन नारियों ने स्वयं अस्त्र उठा लिया था, और सम्राट अशोक का सामना रणभूमि में करने को उतर आयी थी ?

भारतीय इतिहास में हिन्दु राजाओं की यह बिडम्बना ही कही जायेगी कि वह स्त्रियों के अस्त्र उठाने को कभी सम्मान देना उचित नहीं समझा और उसके साथ एक ‘‘पवित्र वस्तु’’ की तरह व्यवहार किया, जिसका उपभोग के अलावा और कुछ भी स्थान नहीं दिया. स्त्री ही क्यों, समाज के एक बड़े तबके को अपना दास बनाकर केवल कुछ पदलोलुप-कायरों को देश की रक्षा का भार सौंप कर यह देश तकरीबन हर युद्धों में पराजय का मुख देखा. यही नहीं इन पदलोलुप कायरों ने युद्धों से बचने के लिए अपनी पुत्री, बहन और पत्नी तक को विदेशी हमलावरों के शयनागार में भेजकर अपने सामंती हूकूमतों को बरकरार रखा, और अपनी वीरता के शेखी हमेशा ही गरीब-असहाय-दास (शुद्रों-अछूतों) पर बर्बर अत्याचार करके बघारा. ऐसे शेखीबाज ‘वीर’ भारतीय इतिहास में अनगिनत भरे पड़े हैं, जिनके वंशज आज अपने पुरूखों पर शर्म करने के वजाय गर्व महसूस करते हैं.

रानी पद्मावती का भारतीय इतिहास में कहीं कोई जिक्र नहीं है. अगर इसे इतिहास की एक पात्र मान भी लिया जाये तब भी इसे दो सदी तक कोई सम्मान प्राप्त नहीं था, जब तक कि 237 साल बाद मालिक मुहम्मद जायसी ने अपनी रचनावली ‘पद्मावती’ को प्रकाशित नहीं कर दिया. रानी पद्मावती के होने का एक मात्र स्त्रोत जायसी की रचना ‘पद्मावत’ ही है. रानी पद्मावती के जमाने में इतिहास प्रसिद्ध विद्वान अमीर खुसरो भी थे. उन्होंने उस समय एक रचना ‘खजा इनउल फुतूह’ लिखी थी, जिसमें एक युद्ध एक जिक्र तो है पर रानी पद्मावती का कहीं कोई नाम नहीं है. अगर यह घटना या रानी पद्मावती मौजूद होती तो निःसंस्सदेह अमीर खुसरोे इसका जिक्र अपनी रचना में अवश्य करते.

राजपूताना इतिहास में भी इसका कोई वर्णन नहीं मिलता है. जो भी मिलता है वह मालिक मुहम्मद जायसी की रचनावली के बाद ही मिलता है, उलझे-बिखरे स्वरूप में. रानी पद्मावती की अपने साथ 1600 स्त्रियों के साथ जल मरने की घटना अगर सचमुच की है, तब भी यह भारतीय इतिहास की सबसे कायरतापूर्ण और शर्मनाक घटना है. यह भारतीय इतिहास पर सबसे बदनुमा दाग है, जिससे भारतीय स्त्रियों की असहायता और कायरता का परिचय मिलता है. भारतीय इतिहास की प्रेरणास्पद महिला कलिंग की वे स्त्रियां हैं, जो अपने देश आजादी को बरकारार रखने के लिए अपने पुरूषों को खोने के बाद भी रणभूमि में जाकर डट गई. भारतीय इतिहास की प्रेरणास्पद महिला झांसी की रानी लक्ष्मीबाई हैं, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लिया और लड़ते हुए शहीद हुई, न कि कायरता की मिशाल बनी पद्मावती.

आज का वक्त में जब संजय लीला भंसाली निर्मित फिल्म ‘‘पद्मावती’’ के बहाने राजस्थान के एक समुदाय के द्वारा इतिहास की पुनर्समीक्षा की जा रही है, तब इसका कारण ऐतिहासिक नहीं, देश की मोदी सरकार की विफलता और गुजरात में हो रहे चुनाव है. चूंकि भारतीय जनता पार्टी के पास गुजरात चुनाव में जनता के पास संदेश देने के लिए कोई जुमला ऐसा नहीं बचा जिसका जरा भी कोई साख बची हो, तब पद्मावती फिल्म के माध्यम से हिन्दुत्ववादी भावना भड़का कर वोट लेना ही उसके लिए मुफीद राजनीति बच गया है. यह आशंका अनायास नहीं है कि गुजरात चुनाव तक यह मुद्दा भारतीय राजनीति में छाया रहेगा, गुजरात चुनाव निपटते ही यह मुद्दा भी हल हो जायेगा. जैसे राम मंदिर का मुद्दा हर चुनाव के पहले छाता है और चुनाव खत्म होते ही अगले चुनाव तक टल जाता है.

केन्द्र की मौजूदा भाजपा शासित मोदी सरकार आज जब देश में केवल विवादों को जन्म दे रही है, इन विवादों की जनता की मूल समस्या रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा आदि से कोई लेना-देना नहीं है. वह केवल हिन्दुत्व भावना भड़काकर सत्ता पाना चाहती है और काॅरपोरेट घरानों की सेवा कर जनता के मेहनत की कमाई को लूट-खसोट करना ही एक मात्र उद्देश्य रह गया है. इसे देश की विशाल आबादी शुद्रों, दलितों, आदिवासियों, स्त्रियों, मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं है. यहां तक कि कुछ खास तबके को छोड़कर यह किसी का भी हित नहीं चाह रही है. यही कारण है कि इस चुनावी माहौल में केवल सत्ता बरकरार रखने के लिए ‘पद्मावति’ जैसे काल्पनिक पात्र के सहारे अपनी वैतरणी पार करने के लिए भाजपा इस मुद्दे को हवा दे रही है, यह हवा वह तब तक देती रहेगी जब तक कि गुजरात का चुनाव नहीं निपट जाता.

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One Comment

  1. Shyam lal Sahu

    November 21, 2017 at 2:50 pm

    बहुत सही विश्लेषण ! इस देश में इतिहास लेखन का पुराना कोई सबूत नहीं है और बहुत सी बातों को लेकर बहुत से मिथक भी हैं। दूसरी बात, जायसी ने जब पद्मावत लिखा तो उस समय देश में जो परिस्थितियाँ थीं, उन्हीं परिस्थितियों को उन्होंने अपने पद्मावत में कल्पना और मिथकों के सहारे महाकाव्य का रूप दिया होगा।

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