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कंडोम में न्यायपालिका

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कंडोम में न्यायपालिका

भारत में न्याय और न्यापालिका एक भद्दा मजाक बन गया है. सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों ने प्रेस के सामने अपना दुखड़ा रोते हुए जब लोकतंत्र को खतरे में बताया था, तब इसके लगातार गिरते छवि को लेकर देश इतना आश्वस्त नहीं था, जितना कि अब देखा जा रहा है.

इन्हीं चार जजों में से एक जज रंजन गोगोई भारत के सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायधीश बनकर सत्ता की दलाली में जुट गये और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा का बेजा इस्तेमाल कर अपने अनाप-शनाप फैसले देकर भाजपा की डूबती नैया को पार लगा दिया. कहा जाता है कि रंजन गोगोई के मुख्य न्यायाधीश बनने पर उसे नियंत्रित करने के लिए भाजपा सरकार ने एक बलात्कार जैसे मुकदमें में फंसा कर रंजन गोगोई को दलाली करने पर मजबूर किया.

बहरहाल, भाजपा की दलाली करने के बाद न केवल बलात्कार के मुकदमे से भाजपा ने इसे बचाया बल्कि इसे उपकृत करते हुए भाजपा ने उसके रिटायमेंट के महज चंद महीनों बाद ही राज्य सभा का सदस्य बना दिया. अब यह भी चर्चा में आ रहा है कि इस दलाल जज गोगोई को भाजपा मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर देख रही है.

पूर्व न्यायधीश रंजन गोगोई ने भारतीय न्याय और न्यायपालिका की अपने मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहते हुए जितनी छीछालेदर किया है, शायद ही भारत के न्याय प्रक्रिया के 70 साल के इतिहास में किसी और ने किया हो. इसके बाद भी उसकी अंतरात्मा की आवाज एक टीवी न्यूज चैनल सुनाई दी, जिसमें उसने बातचीत के दौरान भारतीय न्यायपालिका और न्याय का बखिया उघेड़ कर रख दी.

टीवी इन्टरव्यू में रंजन गोगोई भारतीय न्याय व्यवस्था को खास्ताहाल बताते हुए कहते हैं कि अब कोई भी कोर्ट नहीं जाना चाहता, स्वयं वे भी नहीं. अगर आप अदालत जाते हैं तो आप अपने निजी मामलों को कोर्ट में सार्वजनिक करते हैं, पर आपको न्याय कभी नहीं मिल पाता. रंजन गोगोई सवाल उठाते हुए कहते हैं कि अदालत कौन जाता है ? आप अदालत जाते हैं और पछताते हैं. बड़े कॉरपोरेट ही अदालत जाते हैं क्योंकि वह बड़े जोखिम ले सकते हैं क्योंकि अदालत में न्याय पाना बेहद ही जोखिम भरा होता है.

रंजन गोगोई की बातें बिल्कुल ही सही है और इसका सामना देश के करोड़ों लोग हर दिन करते हैं. वे देखते हैं कि किस तरह न्यायालय में नोटों की थैलियां देखकर फैसले किये जाते हैं, जबकि गरीब असहाय व्यक्ति जेलों में वर्षों सड़ते रहते हैं. रुपयों पर बिकता न्याय आखिर किसे चाहिए ?

बहरहाल, मामला यही पर आकर रुक जाता तो बात खत्म हो जाती, परन्तु, मामला यहीं पर नहीं रुकता. न्यायालय में अब बलात्कार जैसा जघन्य और असमाजिक कुकर्म को भी कानूनन बनाया जाने लगा है क्योंकि संघी राष्ट्रवाद में बलात्कार एक सहज सामान्य दिनचर्चा का रुप है. यही कारण है कि भारतीय न्यायपालिका बकायदा बलात्कार को अपराध न मानने की दिशा में बढ़ चला है और संघी सरकार बलात्कारियों को पुरस्कृत करने में.

हाल ही में जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला ने पोक्सो एक्ट के तहत दो फैसले दिए थे, जिस पर जमकर विवाद हुआ है. मामला बॉम्बे हाईकोर्ट के नागपुर बेंच का है. जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला ने पोक्सो एक्ट पर दिए अपने फैसले मेंं कहा था कि कपड़े के ऊपर से लड़की के स्तन को दबाना पोक्सो एक्ट के तहत अपराध नहीं है. यह मामला 12 साल की बच्ची के यौन शोषण का है. वहीं दूसरे फैसले में कहा था बच्ची का हाथ पकड़कर पैंट की चेन खोलना पोक्सो के अंदर नहीं आता है.

उनके इस फैसले की उस समय भी काफी कड़ी आलोचना भी हुई थी. लेकिन अब यह मामला तब सुर्खियों में आ गया जब अहमदाबाद की एक महिला ने उनके फैसलों को लेकर विरोध जताने के लिए उनको कंडोम भेजे दिये हैं. महिला ने कंडोम के 150 पैकेट जस्टिस पुष्पा के पते पर भेजे हैं और ऐसा करने की वजह भी बताई है.

गुजरात के अहमदाबाद की रहने वाली देवश्री त्रिवेदी का कहना है कि उन्होंने जस्टिस पुष्पा के फैसले का विरोध जताने के लिए उनके घर और दफ्तर के पते पर कंडोम के 150 पैकेट भेजे हैं क्योंकि जस्टिस पुष्पा का मानना है कि अगर स्किन को नहीं छुआ है तो फिर यौन शोषण नहीं है. मैंने उनको कंडोम भेजकर बताया है कि इसका इस्तेमाल करने पर भी स्किन टच नहीं होता तो इसे क्या कहा जाएगा ?

देवश्री का कहना है कि मैंने एक चिट्ठी भी जस्टिस पुष्णा को लिखी है और उनके फैसले पर एतराज जताया है. उन्होंने जस्टिस गनेदीवाला को सस्पेंड करने की भी मांग की है.

भारतीय न्यायपालिका का यह विकृत चेहरा कितना भयानक है इसका पता इसी बात से चल जाता है कि बलात्कार पीड़िता पर ही मुकदमें दर्ज कर जेलों में डाल दिया जाता है, बलात्कार और हत्या के अभियुक्तों और उसके सर्मथकों की ताजपोशी की जाती है और नकारा न्यायतंत्र तमाशा बन जाता है.

भारतीय न्यायपालिका देश के ऊपर एक अतिरिक्त बोझ बन गया है, जो करोड़ो लोगों के खून पसीने की कमाई को निचोड़ने का तंत्र बना हुआ है. आज जरूरत है इस फर्जी न्यायतंत्र को फेंक कर एक नया विकल्प प्रस्तुत करने की, वरना यह न्यायपालिका कंडोम में समा जायेगा.

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