Home कविताएं ग्लोबल वार्मिंग

ग्लोबल वार्मिंग

0 second read
0
0
304

यह सड़क नहीं
रनवे है
हम यहां चलते नहीं
उड़ते हैं

धुंध की परवाह किसे है
जो पराली जला रहे हैं वे
या वे जो धुंध
बनाए रखना चाहते हैं
वे

{ 2 }

यार, क्यों फूटबॉल खेल रहे हो

हमारे नाम न जमीन है
न पेड़
न जैतून की ऐसी कोई डाली
गनीमत है हवा – धूप
अब तक मुफ्त है

गनीमत है
मैं ने फांसी नहीं लगाई
भारी मन फिर भी कलरवरत हूं

ठंड की कंपकंपी है
या डर की सिहरन
मौसम इतना निष्ठुर
तो कभी नहीं रहा
कि माइनस चौबीस डिग्री का
गोता लगा दे

{ 3 }

यह ज़हरीली हंसी किस की है

भेड़ों की तादाद बढ़ गई है
और ऊनों के
बाजार भाव गिर गए हैं

ग्लोबल वार्मिंग का असर
कुछ ज्यादा है
समूह सात के एजेंडे में
यह एक प्रमुख प्रोपेगैंडा है

{ 4 }

ऐसे हमारा सुझाव है

अब घर जाओ
खाना खाओ
और सो जाओ
सियाचिन की इस बर्फबारी में
एवलांच का जोखम क्यों उठा रहे हो

अंटार्कटिका की
अपूर्व मुर्दा शांति मेरे जीवन काल में
क्या कभी पिघलेगी भी
ऐसे मेरी मां कई प्रकाश वर्ष
मुझे जीने का वरदान
या यूं कहूं कि अभिशाप दे रखी है

फिर भी, मैं ऐसा नेगेटिव
क्यों सोचता रहता हूं

  • राम प्रसाद यादव

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध

    कई दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण ये शहर अब अपने पिंजरे में दुबके हुए किसी जानवर सा …
  • मेरे अंगों की नीलामी

    अब मैं अपनी शरीर के अंगों को बेच रही हूं एक एक कर. मेरी पसलियां तीन रुपयों में. मेरे प्रवा…
  • मेरा देश जल रहा…

    घर-आंगन में आग लग रही सुलग रहे वन-उपवन, दर दीवारें चटख रही हैं जलते छप्पर-छाजन. तन जलता है…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…