ये खबर इंडियन एक्सप्रेस की है, जिसमें कहा गया है कि सोशल मीडिया पर ‘एंटी नेशनल’, ‘रैडिकल’, और गैर कानूनी कंटेंट के खिलाफ रिपोर्ट करने के लिए वॉलंटियर्स की टीम बनाई जाएगी. कोई भी व्यक्ति गृह मंत्रालय की इस योजना के लिए खुद को रजिस्टर कर सकता है. इसकी पायलट टेस्टिंग जम्मू कश्मीर और त्रिपुरा से की जाएगी, फिर फीडबैक के आधार पर पूरे भारत पर लागू किया जाएगा.
बीजेपी आईटी सेल वाले ट्रोलिंग तो पहले ही करते थे, अब उनकी रिपोर्ट के आधार पर किसी भी पोस्ट के आधार पर किसी के भी ऊपर मुकदमा दर्ज हो सकता है, ऐसा मुकदमा जिसमें UAPA भी शामिल है. बीजेपी का यह कार्यक्रम उसी तरह ‘जनता बनाम जनता’ है, जैसे छत्तीसगढ़ में ‘आंदोलनकारी’ आदिवासियों के खिलाफ ‘गैर आंदोलनकारी’ आदिवासी जमात को हथियारबंद किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुडूम को असंवैधानिक बताते हुए कहा था जनता को जनता के खिलाफ खड़ा करना गैर कानूनी है लेकिन यहां भी वही किया जा रहा है.वास्तव में यह ‘साईबर सलवा जुडूम’ है. जनता को जनता के खिलाफ खड़ा करना फासीवादियों की खास योजना और पहचान है. इसके माध्यम से ही वे जनविरोधी पूंजीवादी योजनाओं को आसानी से अमली जामा पहनाते हैं. गृह मंत्रालय की इस असंवैधानिक योजना का पुरजोर विरोध होना चाहिए.
बिल्कुल ठीक ऐसे ही जर्मनी में हिटलर ने अपने विरोधियों को गेस्टापो नाम की एक सीक्रेट पुलिस संस्था बना कर उन्हें बेरहमी से ख़त्म कर दिया था. सन 1933 में जब नाजी सत्ता में आये, तो हिटलर के विश्वस्त साथी, जनरल हरमन गांरीग ने गेस्टापो की संरचना की एवं उनकी कमान संभाली. उन्होंने हेनरिक हिमलर एवं हैडरिक के साथ इस पुलिस बल को पुनर्गठित किया और उसको यह अधिकार दिया गया कि सत्ता के विरोधियों की जासूसी एवं जांच करने के साथ-साथ उन पर नागरिक प्रतिबंधों को भी लगाया जा सके. इसके अंतर्गत गिरफ्तारी का आदेश था और कोई भी इसके खिलाफ किसी न्यायालय में अपील नहीं कर सकता था. हज़ारों की संख्या में बामपन्थी, बुद्धिजीवी, ट्रेड यूनियनवादी, पादरी एवं यहूदियों को गिरफ्तार कर आइसोलेशन में डाल दिया गया. इस पुलिसिया आतंक के वातावरण में जर्मनी के लोगों ने सत्ता से प्रश्न पूछना ही बंद कर दिया तथा उनके चारों ओर जो कुछ भी अवैधानिक घट रहा था, उसकी ओर से उन्होंने आंखे मूंद ली. जनता सत्य कहने का साहस नहीं जुटा पायी.
गेस्टापो का प्रधान कार्यालय बर्लिन में था. पुलिस को किसी भी व्यक्ति को मात्र शक के संदेह पर गिरफ्तार करने का अधिकार भी प्राप्त हो गया. पुलिस ने पादरियों को सख्त निर्देश दिया कि वो नाजियों की आलोचना न करें एवं शिक्षा प्रणाली को नाजीवाद से जोड़ कर इसके नेता को देवता की तरह पूजने का पाठ पढ़ाये. उन्हें देश के बाहर एवं भीतर अपने दुश्मनों को चिन्हित करना था. इसके लिए वह बाहरी दुश्मन के तौर पर फ़्रांस और इंग्लैंड को अपना दुश्मन समझा और उन्होंने उनके प्रति जनता में घृणा के भाव को पनपने का मौका दिया. हिटलर एवं उनके जनरल मानते थे कि सभी प्रजातांत्रिक देशों में जो समस्याए है उनके मूल में साम्यवाद है. इस तरह से विचारधारा के रूप में उन्होंने साम्यवाद को चिन्हित किया.
चूंकि साम्यवाद का प्रवर्तक एक यहूदी था एवं प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी के सेना का नेतृत्व यहूदी डेनडफ और हिडन बर्ग ने किया था, जिसमे जर्मनी की बुरी हार हुई थी, उनका पूरी जिम्मेदारी यहूदियों पर डाल दिया गया और उन्हें जर्मनी के घोर शत्रु के रूप में चिन्हित कर लिया गया. उनका मत था कि यहूदियों का पूर्ण विनाश ही देश को आगे बढ़ा सकता है. इसके लिए उसने यहूदी युवकों को स्कूल तथा कॉलेज में दाखिला बंद करा दिया. वहां के अख़बारों के मालिक यहूदी ही थे. उन अख़बारों को भी बंद करा दिया गया.
यहूदी विरोध का चरमोत्कर्ष 15 सितम्बर, 1935 में हुआ जब न्यूरेम्बर्ग कानून पारित हुआ. इसके द्वारा यहूदी अथवा यहूदी मूल वाले व्यक्ति को जर्मन नागरिकता प्राप्त करने तथा एक विशुद्ध जर्मनों के बीच शादी-विवाह होने पर रोक लगा दी. उन्हें इस बात पर भी मजबूर किया गया कि जब कभी वे बाहर गलियों में निकले तो अपने पोशाक पर डेविड के स्टार का पीला तारा लगाये. उन्हें घीटों में रहने को बाध्य किया गया. इस तरह से गेस्टापो ने अपने दुश्मन को चिन्हित कर एक व्यापक योजना के तहत उनका खात्मा कर दिया. जर्मनी में पुलिस बल के इसी यह राजनीतिक प्रयोग ने हिटलर को तानाशाह बनाने में काफी सहयोग किया.
क्या न माना जाय कि अब 80 साल बाद क्या भारत मे भी यही कोशिश हो रही जब प्रधानमंत्री आंदोलनकारियो को आंदोलनजीवि कह कर खुलेआम सन्सद में 200 किसानों की जानो की खिल्ली उड़ा रहे हैं ? पुलिस साइड में खड़ी होकर स्वयम सेवकों से पथराव लाठीचार्ज आगजनी करवा रही है. लाल किले तक पे अतिवादी समूहों को भड़कावे की कार्यवाही की छूट दी जाती है.
इसी बीच खबर आती है कि एक नई मारल पुलिसिंग जो साइबर वालेंटियर बनाने के नाम देश की संप्रभुता के खिलाफ, महिलाओं और बच्चों से दुर्व्यवहार और कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने वालों की अब खैर नहीं के नाम पर शुरू की जा सकती है. आज सभी समाचार माध्यमों में जब अपुष्ट-सी छपी खबरों के मुताबिक भारत सरकार ने इसे रोकने के लिए खास तैयारी की है. जिसके अनुसार सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट पर नजर रखने और उसे रोकने में मदद के नाम के लिए सरकार ने आम लोगों को साइबर अपराध स्वयंसेवक के तौर पर खुद को रजिस्टर कराने को कहा है.
कहने को तो केंद्रीय मंत्रालय की इस पहल को इंडियन साइबर क्राइम को-आर्डिनेशन सेंटर (आई4सी) का नाम दिया गया है. आतंकवाद से प्रभावित जम्मू-कश्मीर में पिछले सप्ताह इसकी शुरुआत की गई, जहां पुलिस ने एक सर्कुलर जारी कर लोगों से स्वयंसेवक के तौर पर रजिस्टर कराने के लिए कहा है. स्वयंसेवकों से भारत की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ, देश की रक्षा, राज्य की रक्षा, मित्र देशों के खिलाफ पोस्ट, सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाली बातें या और बाल यौन उत्पीड़न वाली सामग्री के खिलाफ नजर रखने को कहा गया है.
कल इसका दायरा कहा तक फैलाया जाएगा ? इसकी परिभाषा क्या होगी ? वैसे भी बिना किसी स्पष्ट कानूनी ढांचे के अभी भी सरकार UAPA के तहत अभी भी ऐसे किसी भी आरोप में किसी को भी गिरफ्तार कर ही सकती है.
पुलिस-प्रशासन के संपर्क में होंगे स्वयंसेवक
साइबर विशेषज्ञ की श्रेणी के तहत स्वयंसेवक खास तरह के साइबर अपराध, फॉरेंसिक, नेटवर्क फॉरेंसिक, मालवेयर विश्लेषण, क्रिप्टोग्राफी जैसे विषयों पर मदद करेंगे. पहली श्रेणी में रजिस्ट्रेशन के लिए पहले से वेरीफिकेशन की जरूरत नहीं होगी लेकिन दो अन्य श्रेणियों में स्वयंसेवक बनने के लिए संबंधित राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा केवाईसी शर्तों के तहत जुड़ना होगा. स्वयंसेवकों को अपना पूरा नाम, पिता का नाम, मोबाइल नंबर, ई-मेल एड्रेस, घर का पता देना होगा. रजिस्ट्रेशन होने के बाद स्वयंसेवकों की डिटेल तक साइबर अपराध पर नोडल अधिकारी और केंद्रशासित क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक (अपराध शाखा) की पहुंच होगी.
वेतन देने का प्रावधान नहीं
गृह मंत्रालय के एक दस्तावेज में कहा गया है, ‘आई4सी के तहत एक ऐसी व्यवस्था तैयार करनी है जिससे अकादमिक, उद्योग, जनता और सरकार के लोग साइबर अपराध का पता लगाने, जांच और अभियान की प्रक्रिया में साथ आए.’ गृह मंत्रालय के दस्तावेज में स्पष्ट कर दिया गया है कि यह कार्यक्रम पूरी तरह स्वेच्छा पर निर्भर है और इसके लिए कोई वित्तीय लाभ नहीं मिलेगा और स्वयंसेवी किसी बिजनेस फायदे के लिए इसका इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे.
फेक न्यूज से हिंसा में हालांकि गोदी मीडिया ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है औऱ सोशल मीडिया पर भ्रामक और भड़काऊ सामग्री में बड़ी तेजी देखी जा रही है. दिल्ली में हिंसक घटना हो या देश के दूर-दराज इलाके में बच्चा चोर के नाम पर लोगों को भड़काने की बात, इन सबमें फर्जी सूचनाओं से बड़ा घाटा देखा गया है. फर्जी और भड़काऊ पोस्ट के बहकावे में आकर आम लोग हिंसक हो जाते हैं और बड़ी घटनाएं देखने को मिलती हैं.
सोशल मीडिया ही नही न्यूज चैनल मीडिया भी गलत सूचना फैलाने का बड़ा औजार बन कर उभरा है, जिसका दुरुपयोग असामाजिक तत्व बड़ी आसानी से करते हैं. इन भड़काऊ पोस्ट की मार सरकारी मशीनरी पर ज्यादा देखी जा रही है, खासकर पुलिस प्रशासन पर. सभी प्रकार के एहतियाती कदम उठाए जाने के बाद भी मिनटों में अशांति फैल जाती है. इसे रोकने के लिए सरकार कई तरह के प्रयास कर रही दिखाई जाती है मगर करती धरती कुछ भी नही. दिन प्रति दिन साइबर अपराध में भी तेजी देखी जा रही है.
देश से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक संगठित गिरोह काम कर रहा है. लोगों की जरूरी सूचनाएं चुराना, सिस्टम हैक करना, फोन कर जानकारी मांगना, सोशल मीडिया के माध्यम से मैसेज भेजकर उगाही करना या नशा और आतंकवाद के क्षेत्र में निर्दोष लोगों को फंसाना, अब आम बात हो गई है. दिखाने को तो इसके खिलाफ सरकार का एक पूरा सिस्टम काम करता है लेकिन एक हल्की चूक भी सरकारी मशीनरी और आम लोगों पर भारी पड़ जाती है. इससे बचने के लिए सरकार कई कदम उठा रही है, जिसमें एक स्वयंसेवक बनाना भी है.
इस प्रकार की अनपढ़ व्यवस्था में जहां स्वयम सेवी पुलिस के अपने ही खतरे है, जो किसी के भी फ्रिज में बीफ निकाल लाती है, किसी को भी तालिबान शंभु रैगर बन कर काट के मार के फेक सकती है, CAA, NRC जैसे बनावटी मुद्दो को बढा-चढ़ा कर मौजूदा महंगाई जैसी मूल समस्याओं से जन समुदाय का ध्यान भटकाना अतीत में गेस्टापो की एक ऐसी ही हकीकत थी, जिनको हम विश्व इतिहास में हिटलर काल पढ़ कर जान सकते हैं.
- हेमन्त मालवीय
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