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मोदी के मगरमच्छी आंसू की नौटंकी

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मोदी के मगरमच्छी आंसू की नौटंकी

गुलाम नबी आजाद के लिए विदाई भाषण में रोने वाले पीएम मोदी का एक भी आंसू किसान आंदोलन में मरने वाले किसानों के लिए नहीं था.

आदमी तब रोता है जब हालात उसके हाथ से बाहर निकल जाते हैं और वो बेबस हो जाता है. वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता तो वो रो देता है. भारतीय संस्कृति में मनुष्य के रोने को बुरा नहीं समझा जाता या यह कह लीजिए कि किसी भी सभ्य समाज में भावुकता को इंसानियत की निशानी समझा जाता है.

मर्यादा पुरुषोत्तम राम वनवास के कारण नहीं रोए लेकिन जब सीता जी का छल से रावण ने हरण कर लिया तो सीता जी के वियोग में भगवान राम खूब रोये. यह पति का अपनी पत्नी के प्रति प्यार और प्रेमी का अपनी प्रेयसी से बिछड़ने की तड़प थी. राम जी बेबस होकर रो रहे थे क्यूंंकि उन्हें यह भी पता नहीं था कि सीता जी कहांं चली गयी. जब उन्हें पता चला कि सीता जी समुंदर पार है और रावण ने धोखे से छल से उनका हरण कर लिया है, तब वो रोये नहीं बल्कि सीता जी को वापस लाने की मुहिम में लग गए और रावण को युद्ध में हराकर सीता जी वापस ले आए.

श्री कृष्ण सुदामा की दरिद्रता को देखकर रोए और इतना रोए कि आंंसुओ से सुदामा के पैर धो दिए. यह मित्रता का भाव था. श्री कृष्ण इसलिए रोये क्यूंंकि उन्हें एहसास हुआ कि वो एक आलीशान ज़िंदगी जी रहे हैं. मथुरा के राजा हैं और उनका मित्र सुदामा फटेहाल है. वो बेबस थे क्यूंंकि पुराने दिन वापस नहीं ला सकते थे लेकिन उन्होंने केवल रोकर काम नहीं चलाया. उन्होंने सुदामा को इतना धन दिया कि सुदामा की आगे की कई नस्लों में कोई दरिद्र नहीं रहा.

सम्राट अशोक कलिंगा की जीत के बाद रोये । वो लाखों लोगों की मौत पर रो रहे थे. उन्हें महसूस हुआ कि इतनी मारकाट से फ़ायदा क्या हुआ ? वो बेबस होकर रोये थे क्यूंंकि मरे हुए लोगों को ज़िंदा नहीं कर सकते थे. उन्होंने रोने के बाद प्रण किया कि आगे कोई युद्ध नहीं करेंगे और बाक़ी जीवन बुद्ध धर्म की शरण में गुज़ार दिया.

महात्मा गांधी चंपारण के किसानों की दरिद्रता देखकर रोये. वो अपनी बेबसी पर रोये कि इतने समय से यह किसान दुखी थे और वो इनसे बेख़बर थे. उन्होंने चम्पारण सत्याग्रह करके किसानों को दुःख से निजात दिलायी.

पंडित नेहरू नेताजी सुभाषचंद्र बोस की अचानक मृत्यु की खबर सुनकर बहुत रोये. वो रोये क्यूंंकि उन्हें आज़ादी क़रीब दिख रही थी और आज़ादी का आशिक़ सुभाष उस आज़ादी को अब देख नहीं पाएगा. नेहरू बेबस थे, नेताजी को वापस नहीं ला सकते थे लेकिन आजीवन नेताजी के परिवार के पालन-पोषण में समस्या ना हो इसके लिए बिना किसी को बताए पैसे भेजते रहे.

महात्मा गांधी की हत्या पर लौहपुरुष सरदार पटेल रोये. वो बेबस होकर रो रहे थे. उनके गृहमंत्री रहते गांधी जी की हत्या हो गयी, इसकी उन्हें पीड़ा थी. उन्होंने संघ पर प्रतिबंध लगाकर सुनिश्चित किया कि आगे से किसी की ऐसी हत्या ना हो.

संसद में योगी जी रोये, वो बेबस थे. उन्हें डर था कि सपा सरकार में उनका एंकाउंटर या हत्या हो जाएगी. उन्होंने ख़ुद को मज़बूत किया और आज प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और उनके शासन में एंकाउंटर का रिकार्ड बन चुका है.

राकेश टिकेत रोये, बेबस होकर रोये. इतने दिन की मेहनत से जो आंदोलन खड़ा किया था, उसे ख़त्म होता देख रहे थे. वो देख रहे थे कि उनके साथ जो किसान है वो उनकी गिरफ़्तारी के बाद बहुत पिटेंगे, यहांं गुंडई का नंगा नाच होगा..उन्होंने रोने के बाद स्टैंड लिया कि वो गिरफ़्तारी नहीं देंगे, चाहे कुछ हो जाये. उनके इस स्टैंड का ही परिणाम है कि आज किसान आंदोलन इस मुक़ाम पर है कि देश विदेश के बड़े-बड़े सिलेब्रिटी इसको इग्नोर नहीं कर पा रहे हैं और टिकेत अब आंदोलन के प्रमुख चेहरा बन गए हैं.

मोदी जी चार बार रोये लेकिन एक बार भी बेबस होकर नहीं रोये. एक बार भी उन्होंने रोने के बाद उन हालात को सुधारने में या ठीक करने में कोई कदम नहीं उठाया. पहली बार वो NDA के प्रधानमंत्री के प्रत्याशी बनने पर आडवाणी जी के लिए भावुक होकर रोये.

आडवाणी जी के प्रधानमंत्री बनने की इच्छा को पूरा देश जानता है. मोदी जी चाहते तो उनकी इच्छा पूरी कर सकते थे लेकिन नहीं की. प्रधानमंत्री पद ना सही, उन्हें राष्ट्रपति बनवा देते. किसी प्रदेश का राज्यपाल ही बना देते, कोई पद ना सही सम्मान ही दे देते, वो भी नहीं दिया.

मोदी जी दूसरी बार ज़ुकरबार्ग से बात करते हुए अपनी माताजी जी की निर्धनता, उनकी तकलीफ़ को याद करके रोये लेकिन उसके बाद भी अपनी माताजी को अपने साथ प्रधानमंत्री निवास में नहीं लाए. जिस मांं ने उन्हें बर्तन मांंझकर पाला पोसा, उस मांं को बुढ़ापे में अपने साथ ना रखकर मोदी जी देश और दुनिया को कौन सा संदेश दे रहे हैं ?

मोदी जी तीसरी बार नोटबंदी पर रोए थे. कुछ ही दिन पहले उनका नोटबंदी पर जापान में दिया गया ऐतिहासिक भाषण सब देख चुके थे. सबको अंदाज़ा था कि उन्हें लोगों की तकलीफ़ से कितनी तकलीफ़ है. फिर भी मोदी जी के हाथ में था कि नोटबंदी का फ़ैसला वापस लेकर जनता को राहत दे सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.

अब चौथी बार वो ग़ुलाम नबी आज़ाद के रिटायर होने पर भावुक होकर रोए हैं. ग़ुलाम नबी आज़ाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं. वो फिर से सांसद बन सकते हैं. मोदी जी चाहे तो उन्हें भाजपा से किसी भी प्रदेश की राज्य सभा सीट से भेज सकते हैं. भाजपा से ना भेजना चाहे तो राष्ट्रपति से नॉमिनेट करा सकते हैं, फिर इस पर भावुक होने की ज़रूरत क्या थी ?

मोदी जी का भावुक होना अच्छी बात है. भारत के लोग भावुकता प्रेमी हैं लेकिन मूर्ख नहीं है. वो भावुकता को भी समझते हैं और भावुकता की आड़ में की जाने वाली नौटंकी को भी. ग़ुलाम नबी आज़ाद का रिटायरमेंट भावुकता का विषय नहीं है. उत्तराखंड की तबाही भावुकता का विषय है, जिस तबाही को नज़र अन्दाज़ करके आप असम और बंगाल का चुनावी प्रचार कर रहे हैं.

किसान आंदोलन में किसानों की शहादत भावुकता का विषय है, जिन्हें आप श्रद्धांजलि देने तक से परहेज़ कर रहे हैं. लाखों किसान का सड़क पर सर्द रातों में बैठना भावुकता का विषय है, जिस पर आप बात करने तक को तैयार नहीं है. चीन का भारत की ज़मीन पर अतिक्रमण भावुकता का विषय है जिसे आप चुप होकर बर्दाश्त कर रहे हैं. मोदी जी, भावुक होना अच्छी बात है लेकिन विषय सही चुनना भी ज़रूरी है.

(लेखक अज्ञात)

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