Home कविताएं भयभीत है हुक्मरांं

भयभीत है हुक्मरांं

2 second read
0
0
677

एक नब्बे फीसद विकलांग इंसान से
एक अधेड़ हो चुकी स्त्री से
चंद निहत्थे लोगों से
सत्तर से भी ऊपर के एक वृद्ध से
सच की बांंह पकड़े एक नौजवान से
सत्तर साल के एक ‘महान’ जनतंत्र के
सत्ताधीशों को डर लग रहा है !

डर लग रहा है कि वृद्ध नज़रों में
उठे ज्वलंत सवाल
कहीं ढाह न दे जर्जर जनतंत्र की दीवाल
कि साड़ी बांधे वह स्त्री दौड़ती हुई
पार न कर जाए शासन की खड़ी की गई बाधा-दौड़
कि व्हील-चेयर पर बैठा वह आदमी
तोड़कर फलांग न जाए जेल का फाटक
और कि सच का दामन थामे वह नौजवान
कहीं तोड़ ही न डाले सत्ता की झूठ की पसलियांं !!

भयभीत हैं हुक्मरांं !
बेहद भयभीत हैं हुक्मरांं !!
रची जा रहीं हैं साज़िशें
ज्ञान की किताबों से डरते,
सच से घबराते
बेख़ौफ़ निगाहों की
खुली गवाहियों से खौफ़ खाते !!

कमाल है, इतनी सारी संगीनों को
इतना सारा भय – कलम से !!
जुगत भिड़ाने में व्यस्त हैं हुक्मरांं कि
कैसे गला घोंटकर
क्यों न क़त्ल ही कर दी जाए कलम
आहिस्ता-आहिस्ता, सदा के लिए
जेल की चारदीवारी में …
और कोई खरोंच भी न दिखे.

सोच में पड़े हैं हुक्मरांं
अकबका कर छीन ले रहे है कलम
तोड़ने को उद्धत …!
पटक दे रहे हैं कैमरे, ज़ब्त की जा रहीं हैं तस्वीरें !!
ऊंंची की जा रही हैं जेल की दीवारें…

उन्हें शायद पता नहीं कि जेल की दीवारों पर
न जाने कितनी बार
बिना कलम भी लिखी गई है – मुक्ति की इबारत
उंगलियों, निगाहों, पसीने और रक्त से !!

  • आदित्य कमल

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • औरत

    महिलाएं चूल्हे पर चावल रख रही हैं जिनके चेहरों की सारी सुन्दरता और आकर्षण गर्म चूल्हे से उ…
  • लाशों के भी नाखून बढ़ते हैं…

    1. संभव है संभव है कि तुम्हारे द्वारा की गई हत्या के जुर्म में मुझे फांसी पर लटका दिया जाए…
  • ख़ूबसूरत कौन- लड़की या लड़का ?

    अगर महिलायें गंजी हो जायें, तो बदसूरत लगती हैं… अगर महिलाओं की मुंछें आ जायें, तो बद…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

हिंसक होकर हम हिंसा से मुक्त कैसे हो सकते हैं !

मनुष्य हिंसा मुक्त दुनिया बनाना चाहता है. लेकिन मनुष्य का परिवार समाज, मजहब, राजनीति सब हि…