केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लाये गए कॉरपोरेट परस्त व कृषि, किसान और आम उपभोक्ता विरोधी कानून के खिलाफ देश के किसान अध्यादेश लाये जाने के समय से ही विरोध कर रहे हैं. कोरोना काल का फायदा उठाकर और गैर-लोकतांत्रिक तरीके से मोदी सरकार ने इसे कानून का रूप दे दिया तथा किसानों को आंदोलन में उतरने मजबूर किया. पिछले दो महीने से दिल्ली सीमाओं पर आंदोलन को मिलाकर सात महीने से जारी शांतिपूर्ण आंदोलन में सरकार एक तरफ तारीखें बढ़ाकर बात करने का ढोंग करते रहा और दूसरे तरफ किसान आंदोलन को बदनाम कर तोड़ने की पूरी ताकत लगाते रहे. जब यह आंदोलन अपने उभार पर वह भी शांतिपूर्ण तरीके से आगे बढ़ती गई तब जैसा कि संघी फासीवादी मोदी सरकार का तरीका है अपने उस दमनकारी नीतियों के तहत 26 जनवरी को किसानों के ट्रैक्टर परेड में अपने विभाजनकारी तत्वों और सरकारी मशीनरी के माध्यम से हिंसा पैदा कर शांतिपूर्ण आंदोलनकारी किसानों पर आपराधिक मामले दर्ज कर दिया है.
सरकार की उपरोक्त कृत्य का घोर निंदा करते हुए अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के सचिव तेजराम विद्रोही ने कहा कि ट्रैक्टर परेड में निकले हुए किसानों ने रास्ते भर कही भी कोई अनहोनी घटना नहीं की, कही पर भी सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया, महिलाओं बुजुर्गों के साथ कोई अव्यवहारिक कार्य नहीं किये, यहां तक कि लाल किले से किसान सीधे अपने आंदोलन क्षेत्र में वापस आये. इसके बावजूद 37 आंदोलनकारी किसान नेताओं पर दिल्ली पुलिस ने आपराधिक षड्यंत्र, डकैती, डकैती के दौरान घातक हथियार का प्रयोग और हत्या का प्रयास जैसी 13 गंभीर धाराएं लगाई हैं. जबकि वह व्यक्ति दिप सिद्धू जिसका भाजपा के संबंध है और जिन्होंने अपने साथ भीड़ लेकर लाल किला में प्रवेश किया जो लाल किला में हुए हिंसक घटना के मुख्य जिम्मेदार है, उस पर किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं किया गया है. क्या यह भारतीय जनता पार्टी के उस कथित पत्र के अनुरूप कार्य किया गया है, जैसा कि उसमें भाजपा कार्यकर्ताओं के ऊपर किसी भी प्रकार की कार्यवाही नही होने का भरोसा दिया गया था उसका पालन किया गया है.
यदि अभी भी भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार के भीतर जरा भी किसानों के प्रति संवेदना है तो लाल किले में उपद्रव मचाने वाले दिप सिद्धू और उनके साथ शामिल लोगों की जांच कर उन पर कार्यवाही करे, कृषि कानून वापस ले और किसान नेताओं पर बनाये गए आपराधिक मामलों को वापस ले.
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