Home गेस्ट ब्लॉग मोदी बजट : विदेशियों की सरकार, विदेशियों के द्वारा, विदेशियों के लिए

मोदी बजट : विदेशियों की सरकार, विदेशियों के द्वारा, विदेशियों के लिए

6 second read
0
0
351

मोदी बजट : विदेशियों की सरकार, विदेशियों के द्वारा, विदेशियों के लिए

गिरीश मालवीय

मोदी सरकार ने इस बजट में बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(एफडीआई) की सीमा को बढ़ाकर 74 प्रतिशत करने का प्रस्ताव किया है. इस कदम का उद्देश्य विदेशी कंपनियों को निवेश के लिए आकर्षित करना बताया जा रहा है जबकि 2013 में जब मनमोहन सरकार ने बीमा विधेयक में बीमा क्षेत्र में एफडीआई को 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने को हरी झंडी दी तो बीजेपी ने इसका कड़ा विरोध किया था.

सितंबर 2012 में किए गए एक ट्वीट में मोदी ने कहा था, ‘असम और एफडीआई का मुद्दा बताता है कि हमारे प्रधानमंत्री ने हमारे लोकतंत्र की नई परिभाषा गढ़ दी है. विदेशियों की सरकार, विदेशियों के द्वारा, विदेशियों के लिए.’ अब यह पढ़कर हम हंसने के अलावा कर क्या सकते हैं !

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दावा किया था कि इस बार जो बजट पेश होगा, वैसा पिछले सौ साल में भी नहीं आया होगा. यह सदी का सबसे अच्छा बजट होगा, जो लोग इस उम्मीद में उनका एक घंटा 50 मिनट का बजट भाषण को सुनते रहे वह बेहद निराश हुए.

वास्तव में इस बजट में न मध्य वर्ग को कुछ मिला न, गरीबों को, कृषक भी इस बजट से निराश ही हुए. अगर किसी को फायदा मिलता नजर आया तो वह देश बड़े पूंजीपति वर्ग को और इसी के कारण कल सेंसेक्स में 2300 अंक की तेजी देखी गयी. पिछले 24 साल में बजट भाषण के दिन सेंसेक्स पहली बार इतना ऊपर चढ़ा है. कोरोना का सबसे अधिक प्रभाव देश के अनोर्गेनाइज्ड सेक्टर पर पड़ा है, उसे राहत पुहंचाने के लिए कोई भी उपाय नहीं किये गए.

बजट भाषण के कुछ देर बाद पता चला कि वित्त मंत्री ने पेट्रोल पर 2.5 रुपए और डीजल पर 4 रुपए प्रति लीटर कृषि सेस का प्रस्ताव रखा है, इसके लिए बेसिक एक्साइज ड्यूटी और स्पेशल एडिशनल एक्साइज ड्यूटी घटा दी गई. यानी जहां आप आम आदमी को फायदा दे सकते थे वहां भी चालबाजी कर दी गयी. यहां राज्यों के साथ भी धोखा हुआ है. चैदहवें वित्त आयोग ने केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी का जो फार्मूला दिया है, उसके मुताबिक राज्यों को करीब 40 फीसदी राशि देनी पड़ती है लेकिन जब कोई सेस लगाया जाता है तो उसमें राज्यों के साथ बंटवारा नहीं करना पड़ता है, यानी पूरी रकम केंद्र अपने पास ही रखेगा.

कोरोना की वजह से ही इस बार हेल्थ बजट में 137 प्रतिशत का इजाफा हुआ. हेल्थ बजट अब 2.23 लाख करोड़ रुपए का होगा, जिसके लिए पिछली बार 94 हजार करोड़ रुपए रखे गए थे लेकिन शाम होते-होते जब बजट से जुड़ी पूरी डिटेल सामने आयी तो पता लगा कि यह वृद्धि भी हवा हवाई है. इस साल के लिए यह पूरी रकम आवंटित नहीं हुई है बल्कि आने वाले 6 सालों के लिए यह व्यवस्था की गयी है. कोरोना वैक्सीन के जरूर 35 हजार करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है, लेकिन बाकी सब सिर्फ हेडलाइन मैनेजमेंट के लिए किया गया है.

आजकल किसान आंदोलन अपने पूरे शबाब पर चल रहा है इसलिए यह आशा की जा रही थी कि कृषि क्षेत्र के लिए जरूर बड़ी घोषणाएं की जाएगी. लेकिन यहां भी झोल है. सच्चाई यह है कि कृषि क्षेत्र का बजट भी घटा दिया गया है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को 2021-22 के लिए कृषि के लिए आवंटन घटाकर 1,42,711 करोड़ से 1,31,474 करोड़ कर दिया. यही नहीं शॉर्ट टर्म कॉर्प लोन में भी किसानों के लिए 2020-21 की तुलना में 2021-22 में इंट्रेस्ट सब्सिडी को घटा दिया गया है.

चीन से लगी सीमा पर पिछले छह महीने से तनाव देखा जा रहा है. ऐसे माहौल में यह कहा जा रहा था कि इस बार सेना के आधुनिकीकरण के ऊपर विशेष ध्यान दिया जाएगा, लेकिन यहां भी वित्तमंत्री ने निराश किया. 15वें वित्त आयोग ने 2021 से 26 में सेना के आधुनिकीरण के लिए 2.38 लाख करोड़ का नॉन लैप्सेबल फंड की सिफारिश की थी लेकिन वास्तविक रूप में रक्षा बजट में मात्र 1.5 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है. आधुनिकीकरण का तो कोई नाम भी नहीं लिया गया.

बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा 49 से बढ़कर 74 फीसदी कर दिया गया है जबकि मनमोहन काल मंे भाजपा ऐसे कदमों का कड़ा विरोध करती आयी थी.

इस बजट में वॉलंटरी व्हीकल स्क्रैपिंग पॉलिसी लाई गयी है ताकि पुरानी गाड़ियों को हटाया जा सके. पर्सनल व्हीकल 20 साल बाद और कमर्शियल व्हीकल 15 साल बाद स्क्रैप किए जाने की बात है. इसका सीधा असर ट्रांसपोर्ट सुविधाओं पर पड़ेगा और इसका बोझ अंत मे आम आदमी पर ही आएगा.

अब रही बात टैक्स सम्बंधित घोषणाओं की तो कोरोना काल में टैक्स पेयर्स को कुछ छूट मिलने की उम्मीद थी, मगर वे खाली हाथ रह गए. इस बजट में उनके लिए कुछ भी नहीं है. मिडिल क्लास और नौकरी-पेशा वालों के लिए न तो कोई अतिरिक्त टैक्स छूट दी गई और न ही टैक्स स्लैब में कोई बदलाव किया गया. कम सैलरी वाले टैक्सपेयर्स, मिडिल क्लास और छोटे-मोटे बिजनेस करने वालों को टैक्स को लेकर सबसे अधिक उम्मीदें थीं, मगर उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया. सिर्फ 75 साल से अधिक उम्र के टेक्स पेयर्स को थोड़ी राहत मिली है लेकिन उनकी संख्या नगण्य है. कुल मिलाकर बजट निराशाजनक हैं. यह बजट ऐसी कोई उम्मीद नहीं जगाता जो अर्थव्यवस्था की V शेप रिकवरी को थोड़ा भी सहारा दे.

Read Also –

भारत का बजट
राष्ट्रहित में इन और ऐसे सवालों के जवाब मिलने ही चाहिये
भारत के लोगों की कमाई घटी, खाना-ख़रीदना किया कम और कमज़ोर होगी अर्थव्यवस्था

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…