भारतीय संविधान को केवल प्रतिकात्मक तौर पर अपने पैरों तले रौंदने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) आज इतना बड़ा वटवृक्ष बन चुका है कि वह आज अपने हजारों अनुषांगिक संगठनों की आड़ लेकर देश के संविधान को अपने पैरों तले रौंदने के अपने सपने को साकार करने की घोषणा करने की हिमाकत कर रहा है. वह सरेआम देश के संविधान द्वारा स्थापित धर्म-निरपेक्षता जैसी आधार को ध्वस्त करने के लिए अपने एक अनुषांगिक संगठन ‘अखिल भारतीय हिन्दू महासभा, मन्दिर मार्ग, नई दिल्ली-110001’ के माध्यम से पण्डित अशोक शर्मा के लेटर पैड पर देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, जो वास्तव में आरएसएस द्वारा संचालित एक कठपुतली मात्र है, को एक पत्र लिखता है, जिसका मुख्यवाक्य ही यही है कि – ‘राजनीति का हिन्दूकरण एवं हिन्दूओं का सैनिकीकरण और सैनिकों का आधुनिकीकरण राष्ट्र की सबसे बड़ी आवश्यकता है.’
आरएसएस के एक अनुषांगिक संगठन अखिल भारतीय हिन्दू महासभा द्वारा यह पत्र देश के गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या 25 जनवरी, 2021 के संध्या 7 बजे, पत्रांक – 1/21 के माध्यम से जो प्रेषित पत्र है, उसको हम यहां हू-ब-हू दे रहे हैं, जिससे भारतीय संविधान के प्रति बरसती घृणा, नफरत को यहां उबकाई के हद तक महसूस किया जा सकता है, जिसका हिंसक उद्घोष ‘अखण्ड हिन्दू राष्ट्राभिमानी अमर हुतात्मा पण्डित नाथूराम गोडसे अमर रहें’ है.
प्रतिष्ठा में,
परम आदरणीय श्री राम नाथ कोविंद जी माननीय प्रधान सेनापति भारतीय सेना एवम् महामहिम राष्ट्रपति जी
सादर ‘जय हिन्दू राष्ट्र’
ज्ञापन द्वारा – आदरणीय श्री के. बाला जी (भा0प्र0से0) प्रतिनिधि भारत सरकार एवं जिलाधिकारी, मेरठ
ज्ञापन विषय : भारतीय संविधान के धर्म निरपेक्ष स्वरूप को निरस्त करना.
आदरणीय जी,
राष्ट्रहित ही सर्वोपरि है कि कथन को दृष्टिगत कर याचना करते हैं कि सत्तर 71 वर्ष पूर्व आज ही के काले दिन तत्कालीन सत्तालोलुप राजनेताओं ने विधर्मियों व विदेशियों के घृणित षडयंत्र के सहभागी बन राष्ट्र को छद्म धर्मनिरपेक्ष संविधान प्रदान किया, जबकि उक्त समय तत्कालीन भारत माता के द्रोही राजनेताओं ने ही स्वीकारा था. इस धार्मिक आधार पर विभाजन के कटु सत्य को 71 वर्ष बाद संसद में माननीय गृहमंत्री जी व राष्ट्र के रक्षामंत्री ने भी सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर चुके हैं. उसी घृणित राष्ट्रद्रोही षडयंत्र के कारण मुसलमानों को विशुद्ध इस्लामी राज्य पाकिस्तान प्राप्त हुआ और हिन्दुओं को प्राप्त हिन्दू राष्ट्र हिन्दूस्थान (15 अगस्त, 1947) आज के गणतंत्र दिवस के छल प्रपंच में फंसकर, धर्म निरपेक्ष भारत विधर्मियों, विदेशियों, आतंकियों की सुरक्षित शरणस्थली बन गया. आज प्रतिदिन राष्ट्र की सीमाओं पर युद्ध हो रहा है, राष्ट्र के अंदर आतंकी गतिविधियों में प्रतिदिन निरपराध नागरिक विशेष रूप से सीमाओं पर निवास करने वाले राष्ट्रभक्त हिन्दू मारे जा रहे हैं और राष्ट्र की सीमाओं को हिन्दूविहीन किया जा रहा है. राष्ट्र एक और विभाजन के कगार पर खड़ा 15 अगस्त, 1947 की विभीषिकाओं को स्मरण कर भयाकांत है. राष्ट्र की सभी सीमाओं पर हो रहे उत्पात, राष्ट्र को गौरी, गजनी के काल का स्मरण करा रहे हैं. इन विषम परिस्थितियों में राष्ट्र में चारों ओर आदरणीय जी के सुरक्षा बल ही देशद्रोहियों से लोहा ले रहे हैं और अनगिनत वीर शिरोमणी सैनिक अपने प्राणों का बलिदान कर राष्ट्र को सुरक्षित रखने का भागीरथ प्रयास कर रहे हैं. राष्ट्र के धूर्त राजनेताओं के कारण राष्ट्र की न्यायिक, वैधानिक व्यवस्था पंगु होकर राष्ट्र की स्थिति भयावह हो गयी है और उसके बाद भी भारत सरकार द्वारा किये गये राष्ट्रहित के कार्यों पर आज भी राष्ट्रद्रोही नेता देश को टुकड़े-टुकड़े करने का कार्य कर रहे हैं. कभी तो यह नेता धारा 370 का विरोध करते हैं तो कभी CAA-NRC का विरोध कर अपनी गंदी मानसिकता को दर्शता है, जो कि सरासर गलत है. इस सभी देशद्रोही नेताओं को परिवार सहित राष्ट्र की सीमा से बाहर फेंक देना चाहिए.
अतः आज के काले दिन हम हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता आदरणीय जी से राष्ट्रहित में याचना करते हैं कि माननीय प्रधान सेनापति भारत के दायित्वों का वहन करते हुए भारत के वर्तमान संविधान को निरस्त कर, राष्ट्र को धर्म सापेक्ष रूप देकर हिन्दू राष्ट्र घोषित करें, क्योंकि इतिहास के भूत और वर्तमान व राष्ट्र के भविष्य का यह निर्णय इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में अंकित होगा, ऐसा आदरणीय जी से आशा है.
सादर धन्यवाद.
आरएसएस के अनुषांगिक संगठनों में से एक अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का घृणा परोसता यह पत्र यह साबित करता है कि आरएसएस, जो अब केन्द्र में अपने एक अन्य अनुषांगिक संगठन भाजपा के माध्यम से सत्ता पर काबिज है, की हिमाकत अब इस कदर बढ़ चुकी है कि वह सीधे देश के संविधान को चुनौती देने की वकालत कर रहा है. इससे भी भयानक सच यह है कि देश के संविधान द्वारा निर्मित तमाम संस्थायें अब व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका समेत मीडिया संस्थानों को पूरी तरह घुटनों पर ला खड़ा कर दिया है. ऐसे में केवल देश की जनता ही इस देश की आधी-अधूरी ही सही संविधान को बचा सकता है, जिसके लिए दिल्ली की सीमाओं पर मौजूद किसान आन्दोलन एक आखिरी उम्मीद के तौर पर बची है.
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