‘‘भारत सरकार का यह कदम घोर अनैतिक है. मुद्रा वैसा ही वादा करती है जैसे सिनेमा का टिकट सीट की गारंटी देता है. इस तरह के संसाधन सरकारें नहीं लोग पैदा करते हैं. भारत ने जो किया वह लोगों की सम्पत्ति की बहुत बड़ी चोरी है. मोदी सरकार ने 89 फीसदी करेंसी को एक झटके में अवैध घोषित कर दिया. ये कदम देश की अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका देगा. लोगों को परेशानी होगी. दुनिया के सामने डरावनी नजीर पेश होगी. इंदिरा के समय में नसबंदी जैसा अनैतिक फैसला लिया गया था. सरकार को लगता है कि नोटबंदी से आतंकी गतिविधियां बंद हो जायेगी, लेकिन ऐसा नहीं है’’ – स्टीब फोर्ब्स, दुनिया की मशहूर पत्रिका फोर्ब्स के मुख्य संपादक.
मोदी सरकार ने अपने साढ़े तीन साल के कार्यकाल में देश में दो ही काम किया है: चुनाव प्रचार करना और नोटबंदी-जीएसटी जैसी व्यवस्था को जबर्दस्ती देश पर थोप कर औद्यौगिक घरानों के भारी कर्जौं को माफ करना.
भाजपा इस तथ्य से अच्छी तरह वाकिफ है कि सत्ता सबसे जरूरी चीज है, इसलिए भाजपा ने देश के सामने एक अभिनेता “गब्बर सिंह” के रूप में नरेंद्र मोदी को प्रस्तुत किया, जिसे लोगों ने प्रधानमंत्री बना दिया, जो तकरीबन हमेशा ही चुनावी मोड में रहते हैं. चाहे वे देश के अन्दर हो या देश के बाहर. वे अपना हर अभिनय अगामी चुनाव को केन्द्रित कर करते हैं, जो सत्ता को बनाये रखने के लिए सबसे आवश्यक कदम होता है. इसके लिए उन्होंने देश की तकरीबन तमाम मीडिया संस्थानों को खरीद कर अपना प्रवक्ता बना लिया है, जो दिन-रात भाजपा के गुण गाते रहते हैं. उनके विरोधियों को जलील करते रहते हैं. फर्जी सर्वे करवाते रहते हैं और देश की जनता को बुनियादी सवाल से महरूम रखने के लिए एक से बढ़कर एक शिगूफे छोड़ते रहते हैं.
सत्ता बनाये रखने और उसे हासिल करने के लिए भाजपा ने दूसरा जो जबर्दस्त कदम उठाया वह है चुनाव आयोग को ही अपना प्रवक्ता बना लेना. भाजपा यह जानती है कि देश की जनता को आसानी से भरमाया नहीं जा सकता. मीडिया का प्रचार भी अपनी विश्वसनीयता खो रहा है. तब उसने चुनाव आयोग को अपना माध्यम बनाया और ईवीएम को अपना हथियार बना लिया, जिससे वह मनचाहे फल हासिल कर सकते हैं. हम सभी ने ईवीएम को लेकर चुनाव आयोग की नीचता को दिन की सफेद रोशनी में देखा है, जिसमें ईवीएम के साथ छेड़छाड़ को कितनी ढ़िठाई से वे नकार रहे थे. अब जब देश भर में ईवीएम पूरी तरह से संदिग्ध हो चुकी है तब उसमें नया विकास करते हुए वीवीपैट मशीन को लाने की कवायद चुनाव आयोग कर रहा है. अब जब यह भी आशंका के अनुरूप यह पूरी तरह जगजाहिर हो चुका है कि वीवीपैट मशीन के साथ मनचाहे परिणाम हासिल किये जा सकते हैं, अब चुनाव आयोग की निर्रथकता भी पूरी तरह सामने आ गया है. देश चुनाव आयोग जैसी एक बेकार और नपुंसक संस्था को पिस्सुओं की तरह पाल रही है.
सत्ता पर कब्जा बनाये रखने के लिए मोदी सरकार ने जो तीसरा सबसे जबर्दस्त कदम उठाया, वह है सर्वोच्च न्यायालय में अपने दलालों को न्यायाधीश के पद पर बिराजमान करवाना. अमित शाह अपराध के लिए कोर्ट में बहस कर रहे वकीलों को न्यायाधीश के पद पर बिराजमान करा दिये, जिसका परिणाम इस रूप में सामने आया कि अब वे सर्वोच्च न्यायालय का भी इस्तेमाल अपने मनोकूूल कर सकते हैं. पिछले दिनों वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इस सवाल पर पूरे सिद्धत के साथ मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अदालत में उठाया, जब उन्होंने मुख्य न्यायाधीश को भ्रष्टाचार के एक मामले में आरोपित बताया था.
इसके अतिरिक्त देश की सर्वोच्च संस्थान राष्ट्रपति के पद पर एक भ्रष्ट दलाल को बिठा दिया, जिन्हें भाजपा की दलाली के आगे उस पद की गरिमा तक का ध्यान नहीं रहा. सारा देश अचंभित रह गया जब वे एक सूबे के मुख्यमंत्री के आगे नतमस्तक हो गए. उन्हें अपनी नहीं तो उस पद की गरिमा का तो ध्यान रखना ही चाहिए.
इन तीन सर्वोच्च निकायों को महत्वहीन या अपना दलाल बनाने के अपने प्रयास के अलावे सत्ता की तमाम जांच एजेंसियों को अपने हितों में बखूबी इस्तेमाल की खबरें तो आम बन गई है, जिसमें सीबीआई, ईडी, आयकर विभाग आदि जैसी संस्थायें प्रमुख हैं.
सत्ता पर काबिज रहने के इन उपक्रमों को भली-भांति साध लेने बाद मोदी सरकार के लिए चुनाव में मनचाहे परिणाम हासिल कर लेना कोई अचम्भा जैसा नहीं रहा है, और न ही कठिन कष्टप्रद चीज ही रही है, जिसमें आम जनता के हितों खातिर चिन्तित रहा जाये. इसका परिणाम यह हुआ कि मोदी सरकार आने वाली हर चुनावों में सत्ता बिमुख होने के डर से छुटकारा पा लिया.
सत्ता जाने के डर से मुक्ति प्रयास के साथ-साथ मोदी सरकार ने देश के भारी-भरकम काॅरपोरेट घरानों के भारी कर्जों से मुक्त कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप देश का बैंक रातों-रातों दिवालिया होने के कागार पर जा पहुंचा. बैंकों को दिवालिया होने से बचाने के लिए देश की बुनियादी मेहनतकश जनता की जमा रकम को हथियाने के लिए अचानक नोटबंदी का ऐलान कर दिया, जिससे दिवालिया होने के कागार पर पहुंचा बैंक तत्काल राहत का सांस लिया. इस तरह नोटबंदी के नाम पर 8.5 लाख करोड़ का अबतक की अनसुनी घोटाला को अंजाम दिया. इसमें सबसे पहले मोदी सरकार ने आरबीआई गवर्नर के पद पर एक बन्दरनुमा व्यक्ति उर्जित पटेल को बिठा दिया, और देश की अर्थव्यवस्था को सबसे गहरी चोट पहुंचाई, जिससे उबरने में देश को वर्षों लगेंगे.
8.5 लाख करोड़ के इस विशाल घपले को छुपाने के लिए कभी काला धन, तो कभी आतंकवाद जैसी कल्पित कहानी देश को सुनाया गया. 50 दिन के बाद 60 से ज्यादा दफा नियमों को बदलने के बाद भी सपनों का देश बनाने के दावे के नाम पर सैकड़ों लोगों की बलि ले ली, परन्तु नोटबंदी के एक साल के बाद देश सपनों का बनने के बजाय बेरोजगारों और दुःखियों का विशाल समुद्र बना गया.
औद्यौगिक घरानों की अर्थव्यवस्था को सुनिश्चित करने में तत्पर केन्द्र की मोदी सरकार ने देश के ऊपर एक और आपदा लाद दिया – जीएसटी. वगैर किसी पूर्व तैयारी के देश की जनता के ऊपर जिस आनन-फानन में 28 प्रतिशत जीएसटी के साथ एक देश-एक टैक्स के नाम पर जीएसटी के 5 स्लैब्स को अनिवार्य कर दिया, वह आम आदमी के समझ से परे हो गया. एक बार फिर देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई और देश आंसुओं के दलदल में बह चला.
केन्द्र की मोदी सरकार देश की अर्थव्यवस्था के साथ खुल्लमखुल्ला दुर्व्यवहार कर रही है. वह जिस आनन-फानन में अपनी बेतरतीब नीतियों को औद्यौगिक घरानों के हितों में लागू कर रही है, वह देश में एक विशाल खाई के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर रही है. इस विशाल खाई के एक तरफ अंबानी-अदानी जैसे 60 औद्योगिक घरानों की सम्पत्ति है तो दूसरी ओर करोड़ों की तादाद में बेरोजगार, भूखों और दमितों का समूह है. ये नंगे-भूखे लोग आखिर कब तक अपनी जान की कीमत पर 60 औद्यौगिक घरानों की हिफाजत करते रहेंगे, यह सवाल भविष्य के गर्भ में है.
S. Chatterjee
November 17, 2017 at 2:53 pm
सटीक विश्लेषण। दरअसल मृतप्राय पूंजीवाद का आख़िरी सहारा होता है। फासीवाद का नया संस्करण सांवैधानिक संस्थाओं पर कब्जा करके ही चलाया जा सकता है। वही हो रहा है, लेकिन, जनता देर सबेर सड़क पर उतरेगी। उस दिन इनका क्या हश्र होगा ये कल्पना नहीं कर पा रहे हैं।