रविश कुमार, मैग्सेसे अवार्ड विजेता अन्तर्राष्ट्रीय पत्रकार
यह आपका भ्रम है कि गोदी मीडिया से सूचना मिलती है और आप इसके लिए चैनल देखते हैं या अख़बार पढ़ते हैं. एक भ्रम और फैलाया जाता है कि सबकी अपनी-अपनी विचारधारा होती है. ऐसा कह कर गोदी मीडिया के ख़तरनाक मंसूबों पर पर्दा डाला जाता है. यह अलग विचारधारा का खेल नहीं है बल्कि इसके नाम पर दर्शक को दंगाई बनाने का खेल है.
असली मुद्दों को ग़ायब कर थीम आधारित मुद्दों पर महीनों कवरेज करना और जनता के एक हिस्से को लेकर जनता के दूसरे हिस्से में नफ़रत पैदा करना, यह अलग विचारधारा का खेल नहीं है. यह तमाम सूचनाओं को अलग तरीक़े से पेश करने का मामला भर नहीं है. अलग विचारधारा के नाम पर एक ही विचारधारा है. उसके भीतर भी अलग-अलग विचारधारा नहीं है.
एक ही विचारधारा है जिसका विचार से कोई संबंध नहीं है. जैसे चार दोस्त एक जैसी सोच के हो सकते हैं, मगर उनके भीतर भी सौ फ़र्क़ हो सकते हैं. यहां वो बात नहीं है. सबको उस एक मालिक के लिए एक सांप्रदायिक व्यवस्था बना कर रखनी है और सूचनाओं की खोज नहीं करती है. बल्कि उस पर पर्दा डालना है.
यह प्लाट ही दूसरा है. गोदी मीडिया सरकार के लिए तलवार है जिसकी दोनों धार से देखने वाला भी काटा जा रहा है और वो तो कट ही रहा जिसके बारे में नफ़रत फैलाई जा रही है.
मैं सब तक नहीं पहुंच सकता. सरकार राजनीतिक दल और आईटी सेल की पहुंच करोड़ों में है. वहां दूसरा कोई नहीं पहुंच सकता. सोशल मीडिया भी अपने तरीक़े से रोकता ही है. आपमें से जो भी देख रहा है बस इसे याद रखे. एक बार इसे देखिए और सोचिए. हंसी मज़ाक़ में नहीं कहा था कि टीवी मत देखिए. इस देश के लिए कुछ करने का सबसे आसान तरीक़ा बताया था.
बेशक कई लोगों ने टीवी देखना बंद कर दिया मगर वो काफ़ी तो नहीं है. गोदी मीडिया नई ईस्ट इंडिया कंपनी है. आप दर्शक नहीं है, उसके प्रोपेगैंडा के ग़ुलाम हैं.
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