Home गेस्ट ब्लॉग लेनिन के जन्मदिन पर : एक प्रचारक की टिप्पणियांं

लेनिन के जन्मदिन पर : एक प्रचारक की टिप्पणियांं

21 second read
0
0
631

22 जनवरी सर्वहारा के तीसरे महान शिक्षक लेनिन की जन्मतिथि है. लेनिन दुनिया के पांच महान शिक्षकों में से एक है, जिन्होंने पूरी दुनिया पर अपनी छाप छोड़ी और प्रथम समाजवादी राज्य की स्थापना कर दुनिया में एक मिशाल कायम की. भारत के महान क्रांतिकारी अमर शहीद भगत सिंह अपने जीवन के अंतिम क्षणों में लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और आज भारत में ऐसे भी लोग जीवित हैं और सत्ता पर काबिज हैं जो लेनिन की प्रतिमा को तोड़ रहे हैं. आये दिन लेनिन का स्वागत गालियों से करते हैं. कल तक ये लोग अंग्रेजों की चाकरी यानी जासूसी कर क्रांतिकारियों को फांसी पर पहुंचाने में अंग्रेजों की सहायता करते थे और आज खुद क्रांतिकारियों को फांसी और जेलों में सड़ा रहे हैं.

ऐसे में देश ही नहीं बल्कि दुनिया के हर नागरिकों को लेनिन की महान रचनाओं को पढ़ना चाहिए, ताकि फासिस्ट दुश्प्रचारों और क्रांति की वास्तविकताओं को समझने का मौका मिल सके. यहां हम लेनिन के जन्मदिन के मौके पर लेनिन की एक छोटी सी रचना को यहां प्रस्तुत कर रहे हैं – सम्पादक

लेनिन के जन्मदिन पर : एक प्रचारक की टिप्पणियांं

लेनिनलेनिन

ऊंंचे पहाड़ पर चढ़ने के बारे में; हताशा से हानि; व्यापार की उपयोगिता, मेनशेविको के प्रति रवैया, इत्यादि[1]


रचना काल: फरवरी, 1922 के अन्त में लिखित
प्रथम प्रकाशन: प्रावदा अंक 87 में 16 अप्रैल 1924 को प्रकाशित, पाण्डुलिपि के अनुसार प्रकाशित
स्रोत: लेनिन, कलेक्टेड वकर्स, द्वितीय अंग्रेजी संसकरण, मास्को, 1965, खण्ड 33, पृष्ठ 204-211, अंग्रेजी अनुवाद: डेविड और जार्ज हेना से हिन्दी में अनूदित


I

उदाहरण के द्वारा

आईये हम खुद की कल्पना एक ऐसे मनुष्य की तरह के रूप में करें जो एक बहुत ही ऊंंचे, तीखी ढलान वाले और अब तक अनन्वेषित पहाड़ पर चढ़ रहा है. यह भी कल्पना करें कि उसने बेमिसाल कठिनाइयों और खतरों का सामना किया है और अपने किसी भी पूर्ववर्ती पर्वतारोही के मुकाबले बहुत अधिक ऊंंचाई तक पहुंंच चुका है लेकिन अभी भी वह शिखर तक नही पहुंंच पाया है. वह खुद को एक ऐसी स्थिति में पाता है जिसमें उसके आगे बढ़ने के लिए जो रास्ता चुना है उस पर बढ़ते रहना न केवल कठिन और खतरनाक है बल्कि निश्चित तौर पर असम्भव है. वह वापस लौटने, नीचे उतरने और ऐसा दूसरा रास्ता ढूंंढ़ने को मजबूर होता है जो सम्भवतः अधिक लम्बा हो लेकिन उसे शिखर तक पहुंंचा सके. उस ऊंंचाई से उतरना जिस तक कि इससे पहले कोई न पहुंंचा हो, हमारे इस काल्पनिक पर्वतारोही के लिए सम्भवतः चढ़ने से भी अधिक खतरनाक और कठिन है क्योंकि उसमें फिसलने का खतरा है; पांंव टिकाने की जगह ढूंंढ़ना आसान नहीं है; और उसमें वह उल्लास नहीं है जो किसी को सीधे लक्ष्य की दिशा में ऊपर बढ़ने जाने (पर) महसूस होता है, वगैरह, वगैरह. उसे खुद को एक रस्सी से बांंध लेना होता है, घण्टों अपने पर्वतीय उपकरणों के साथ इस बात के लिए जूझना पड़ता है कि पांंव टिकाने की एक जगह या रस्सी को मजबूती से बांंधने के लिए एक खूंंटा-नुमा ऊभार काटा जा सके, उसे कछुए की रफ्तार से चलना पड़ता है, नीचे की तरफ, अपने लक्ष्य से क्रमशः दूर होते हुए उतार पर और उसे यह पता नहीं है कि यह अत्यधिक खतरनाक और पीड़ादायी नीचे उतरने का क्रम कब समाप्त होगा और क्या इससे अधिक सुरक्षित कोई रास्ता है जिससे कोई अधिक बेधड़क तरीके से, अधिक तेजी से और अधिक सीधे रास्ते से चोटी तक पहुंंच सकता हो.

ऐसा सोचना शायद ही स्वाभाविक हो कि एक ऐसा व्यक्ति जो ऐसे अभूतपूर्व ऊंंचाई तक चढ़ चुका हो और खुद को ऐसी परिस्थितियों में पाये उसको हताशा के क्षणों से न गुजरना पड़े. अधिक सम्भावना यही है कि ऐसे क्षण अधिकाधिक हों, अधिक निरन्तरता से आये और उन्हें बर्दाश्त करना अधिक से अधिक मुश्किल होता जाय. यदि वह नीचे के उन लोगों की आवाज को सुन रहा हो, जो एक दू्रबीन के माध्यम से एक सुरक्षित दूरी से उसके खतरनाक उतराई को देख रहे हों जिसे वह संज्ञा भी नहीं दी जा सकती है जिसे ‘स्मेना वेख’[2] के लोग ‘ब्रेक लगाकर उतरना’ कहते हैं क्योंकि ब्रेक में ही यह पूर्वधारणा निहित है कि यह एक अच्छी तरह डिजाइन की हुई और सुपरीक्षित वाहन का हिस्सा है और एक अच्छी तरह बना हुआ सड़क और पूर्वपरीक्षित उपकरण मौजूद है. लेकिन इस मामले में न तो कोई वाहन है, न सड़क है और ऐसा कुछ भी नहीं है जिसका पहले परीक्षण किया गया हो.

नीचे से आ रही आवाजों में दुर्भावनापूर्ण हर्ष की गूञ्ज है. वे उसे छुपाते नहीं है; वे उल्लासपूर्वक हंसते हैं. ‘वह एक मिनट में ही गिर जाऐगा. उस पागल के लिए यही उचित है. दूसरे लोग अपने दुर्भावनापूर्ण हर्ष को छुपाते हैं और आम तौर पर जुडास गोलोव्लीयोव[3] की तरह बर्ताव करते हैं. वे विलाप करते हैं और दु:ख के साथ अपनी आंंखों को स्वर्ण की ओर उठाते हैं, मानो कह रहे हो कि यह देख कर हमें अपार दु:ख होता है कि हमारा डर सही साबित हुआ है ! लेकिन हम लोगों ने, जिन्होंने अपना पूरा जीवन इस पर्वत पर चढ़ने की एक बुद्धिसम्मत योजना बनाने पर खर्च किया है, क्या यह मांंग नहीं की थी कि चढ़ाई को तब तक के लिए स्थगित कर दिया जाय जब तक कि हमारी योजना मुकम्मिल न हो जाय. और अगर हमने इस मार्ग को अपनाये जाने का अतना प्रबल रूप से विरोध किया था जिसे यह पागल अब छोड़ रहा है (देखो, देखो वह पीछे मुड़ रहा है ! वह उतर रहा है ! उसे एक कदम रखने के लिए घण्टों की तैयारी करनी पड़ रही है. लेकिन जब हमने बार-बार इस बात की मांंग की थी कि सब्र और सावधानी से काम लिए जाय तो हमें भरपूर गालियांं दी गयीं.) यदि हम इस पागल की इतनी शिद्दत के साथ निन्दा की है और हर किसी को उसकी नकल करने या उसकी मदद करने के खिलाफ चेतावनी दी है तो हमने ऐसा केवल इस पर्वत को फतह करने की महान योजना के प्रति हमारी निष्ठा के लिए किया है और इसलिए किया है कि इस महान योजना को आमतौर पर बदनाम हो जाने से रोका जा सके.’ खुशी की बात यह है कि हमने जिन परिस्थितियों का वर्णन किया है उसमें हमारे काल्पनिक यात्री को पर्वतारोहण की धारणा के ‘सच्चे मित्रों’ की आवाजें सुनायी नहीं दे सकती; क्योंकि यदि उसे वे सुनायी दे जाए तो सम्भव है कि उसे मितली आ जाय. और मितली से, जैसा कि कहा जाता है, साफ दिमाग और मजबूत कदम बनाये रखने में दिक्कत होती है, खास तौर पर ऊंंचाई में.

II

उपमा के बिना

सादृष्य कोई प्रमाण नहीं होता. हर उपमा की सीमाएंं होती हैं. ये निर्विवाद और सामान्य सत्य हैं; लेकिन हर सादृष्य की सीमाओं को देखने के लिए उन्हें याद करना नुकसानदेह नहीं होना चाहिए.

क्रान्ति के माध्यम से रुसी सर्वहारा वर्ग ने जिन ऊंंचाइयों को छूआ है वे गगनचुम्बी हंक यदि उनकी तुलना न केवल 1789 और 1793 से की जाय, बल्कि 1871 से भी की जाय. हमें उनका लेखा जोखा, अवश्य ही, जितना भी अधिक सम्भव हो उतनी ही निष्पक्षता से, स्पष्टता के साथ और सटीक तौर पर लेना चाहिए, उन सभी का जो हमने किया है या जो हम नहीं कर सके हैं. यदि यह ऐसा करें तो हम तो अपने दिमाग साफ रख पायेंगे. और हमें चक्कर आने, विभ्रम और हताशा की शिकायत नहीं होगी.

हमने बुर्जुआ जनवादी क्रान्ति को उससे अधिक पूर्णता के साथ सम्पन्न किया जितना कि इससे पहले दुनिया में कहीं भी कभी भी किया गया हो. यह एक महान उपलब्धि है और कोई हमें इससे वंचित नहीं कर सकता.

हमने सर्वधिक प्रतिक्रियावादी साम्राज्यवादी युद्ध से निकलने के कार्य को क्रान्तिकारी ढंग से सम्पन्न किया. यह भी एक ऐसी उपलब्धि है जिससे दुनिया की कोई ताकत हमें वंचित नहीं कर सकती; यह उपलब्धि और अधिक मूल्यवान इस कारण के चलते भी है कि यदि पूंंजीवाद का अस्तित्व बना रहता है तो निकट भविष्य में ही प्रतिक्रियावादी साम्राज्यवादी नरसंहारों का घटित होना अपरिहार्य है; और बीसवीं शताब्दी के लोग उस ‘बासले धोषणापत्र’ के एक द्वितीय संस्करण से संतुष्ट होने वाले नहीं है; जिसके द्वारा गद्दारों, दूसरे और ढ़ाइवें अन्तरराष्ट्रीय के नायकों ने 1912 और 1914- 18 में खुद को और मजदूरों को बेबकूफ बनाया.

हमने एक सोवियत किस्म के राज्य का निर्माण किया है और इसके माध्यम से हमने विश्व इतिहास के एक नवीन युग का सूत्रपात किया है, जो सर्वहारा वर्ग के राजनीतिक शासन का युग है और जो पूंंजीवादी शासन के युग का स्थानापन्न बनने वाली है. कोई हमें इससे भी वंचित नहीं कर सकता. हालांकि सोवियत किस्म के राज्य को अभी भी अनेक देशों के मेहनतकश वर्गों के व्यावहारिक अनुभव के द्वारा अनुपूरित किया जाना है.

लेकिन हमने अभी समाजवादी अर्थव्यवस्था की नींंवों को गढ़ने का काम भी पूरा नहीं किया है और मरणासन्न पूंंजीवाद की दुशमनाना ताकत अभी भी हमें इससे वंचित कर सकती है. हमें इस बात को स्पष्टता से समझना चाहिए और बेबाकी से स्वीकार करना चाहिए क्योंकि विभ्रम (और सर चकराने, खास कर ऊंंचाई पर) से अधिक खतरनाक कुछ नहीं होता. और इस बात को स्वीकार करने में कुछ भी भयंकर नहीं है, कुछ भी ऐसा नहीं है जो थोड़ी भी हताशा के किए जायज जमीन मुहैया करता हो — क्योंकि हमने सदैव मार्क्सवाद के इस प्रारम्भिक सत्य पर जोर दिया है और उसे दुहराया है — कि समाजवाद की विजय के लिए कई विकसित देशों के सर्वहारा वर्ग का संयुक्त प्रयास जरूरी है. हम एक पिछड़े हुए देश में अभी भी अकेले हैं, एक ऐसे देश में जो दुसरों से अधिक तबाह हुआ है लेकिन हमने पर्याप्त सफलताएंं भी हासिल की हैं — इससे भी अधिक हमने क्रान्तिकारी सर्वहारा वर्ग की सेना को अक्षुण बनाए रखा है; हमने इसकी दांंव-पेंच की क्षमता को सुरक्षित रखा है; हमने अपने दिमाग को साफ बनाये रखा है और सन्तुलित रूप से इसका आंंकलन कर सकते हैं कि कब कहांं और कितना पीछे हटा जाय (जिससे कि बाद में आगे की ओर छलांंग लगायी जा सके) : कहांं, कब और कैसे उन कामों को शुरु किया जाए जो अधूरे रह गये हैं. वे कम्युनिस्ट अभिशप्त है जो यह सोचते हैं कि समाजवादी अर्थव्यवस्था के बुनियाद को पूरा करने का काम (खास कर एक छोटी किसानी वाले देश में) जैसे एक युगनिर्माणकारी कार्यभार को बिना गलतियांं किए, बिना पीछे हटे, और जो अधूरा छूट गया हो या गलत ढ़ंग से अंजाम दिया गया हो, उनमें अनेकानेक बदलाव किए बिना पूरा किया जा सकता है. वे कम्युनिस्ट जिन्हें कोई विभ्रम नहीं है, जो हताशा के आगे झुकते नहीं हैं, और जो एक अत्यन्त ही कठिन कार्यभार को पूरा करने के लिए ‘शुरूआत से शुरू करने’ के लिए अपनी ताकत और लचीलेपन को सुरक्षित रखते हैं, अभिशप्त नहीं हैं और अधिक सम्भावना यही है कि वे खत्म न हों.

और इससे भी कम इस बात की इजाजत है कि न्यूनतम अंशों में भी हताशा के लिए गुञ्जाइश छोडी जाय, ऐसा करने का और कम आधार इसलिए भी है कि हमारे देश में व्याप्त तबाही, गरीबी, पिछड़ेपन और भुखमरी के बावजूद, उस अर्थशास्त्र में जो समाजवाद का मार्ग निर्मित करती है, हमने तरक्की करना शुरु कर दिया है, हमारे साथ ही साथ, पूरी दुनिया में, ऐसे देश जो हमसे अधिक उन्नत और हजार गुना अधिक सम्पन्न एवं सैन्य मामलों में ताकतवर हैं, अभी भी बदतरी की राह पर हैं, अपने महिमामण्डित, सुपरिचित, पूंंजीवादी आर्थिक क्षेत्र में, जिसमें उन्होंने सदियों से काम किया है.

III

लोमड़ी पकड़ना; लेवी और सेर्राती

नीचे दिए गये तरीके को लोमड़ियांं पकड़ने का सबसे विश्वसनीय तरीका कहा जाता है. जिन लोमड़ियों का पीछा किया जा रहा हो उन्हें कुछ दूरी पर एक ऐसी रस्सी से घेर दिया जाता है जिसे हिमाच्छादित जमीन से कुछ ऊंंचाई पर जमाया गया हो और उसमें छोटी-छोटी लाल झण्डियांं बांंध दी जातीं हैं. इस प्रत्यक्षतः कित्रिम मानवीय उपकरण से डरकर लोमड़ियांं तभी और वहीं प्रकट होतीं हैं जहांं झण्डियों के इस बाड़े में कोई जगह खुली छोड़ी जाती है; और शिकारी उसके लिए उसी खुली छोड़ दी गयी जगह पर इंतजार करता होता है. कोई यही सोचेगा की सावधानी उस जानवर की सबसे खास फितरत होगी जिसका हर कोई शिकार करता हो. लेकिन जैसा की इस मामले में भी सामने आता है ‘आवश्यकता से अधिक खींचा गया गुण’ भी एक दोष है. लोमड़ी सिर्फ इसीलिए पकड़ा जाता है कि वह अति-सावधान होता है.

कम्युनिस्ट अन्तरराष्ट्रीय के तीसरे कांग्रेस में अति-सावधानी के चलते ही मुझसे हुई एक गलती को मुझे जरूर स्वीकार करना चाहिए. उस कांग्रेस में मैं अधिकतम दक्षिण सिरे पर था. मैं इस बाबत सुनिश्चित था कि यही एकमात्र ग्रहणयोग्य सही अवस्थिति थी, जबकि प्रतिनिधियों का एक बड़े (और प्रभावशाली) समूह ने, जिसका नेतृत्व जर्मन, हंगेरियाई और इतालवी कामरेड कर रहे थे, असाधारण रूप से ‘वाम’ और गलत ढंग से वामपन्थी अवस्थिति ले रखी थी, और बहुत अधिक मौकों पर, उन परिस्थितियों का संजीदगी से आंंकलन करने की जगह जो तात्कालिक और सीधे क्रान्तिकारी कार्रवाई के लिहाज से बहुत अधिक अनुकूल नहीं थी, वे पूरे जोशोखरोश के साथ छोटी लाल झण्डियांं हिलाने में मशगूल थे. सावधानी की भावना और वामपन्थ की ओर इस निस्सन्देह भटकाव को रोकने के लिए, जो कि कम्युनिस्ट अन्तरराष्ट्रीय के सम्पूर्ण रण-कौशल को एक फर्जी दिशा दे देता, मैंने लेवी के समर्थन में जो कुछ भी मुमकिन था वह किया. मैंने यह तर्क दिया कि शायद उसका दिमाग फिर गया हो (मैं इससे इनकार नहीं करता कि उसका दिमाग फिर चुका था) क्योंकि वह वामपन्थियों की गलतियों से बेहद डरा हुआ था, और मैंने यह दलील दी कि ऐसा कम्युनिस्टों के साथ ऐसा अक्सर हुआ है कि उनका दिमाग फिरने के बाद फिर ‘वापस’ अपनी जगह पर आ गया हो. वामपन्थियों के दबाव में यह स्वीकार करते हुए भी कि लेवी एक मेनशेविक था, मैंने कहा कि इस तथ्य को स्वीकार करने मात्र से सवाल ख़त्म नहीं हो जाता है. मसलन, रूस में मेनशेविकों और बोलशेविकों के बीच संघर्षों के पन्द्रह वर्षोंं का पूरा इतिहास (1903-17) साबित करता है और जैसा कि तीन रूसी क्रान्तियांं भी सिद्ध करती हैं कि आम तौर पर मेनशेविक पूरी तरह गलत थे और वे, दरअसल, मजदूर वर्ग के आन्दोलन में पूंंजीपति वर्ग के एजेण्ट थे. यह तथ्य निर्विवाद है. लेकिन यह निर्विवाद तथ्य अन्य तथ्यों को निरस्त नहीं करता कि बाज़ अलग-अलग मामलों में मेनशेविक सही थे और बोलशेविक गलत थे, जैसे मिसाल के तौर पर 1907 में स्तोलिपिन ड्यूमा के बहिष्कार के सवाल पर.

कम्युनिस्ट अन्तरराष्ट्रीय के तीसरे कांग्रेस के आठ महीने गुजर चुके हैं. स्वाभाविक तौर पर वाम के साथ हमारा विवाद अब पुराना पड़ चुका है; घटनाक्रम ने इसे हल कर दिया है. यह साबित हो चुका है कि लेवी के मामले में मैं गलत था, क्योंकि उसने निर्णायक रूप से यह दिखा दिया है कि उसने मेनशेविक रास्ता एक दुर्घटना के तौर पर नहीं लिया था, अस्थायी तौर पर नहीं लिया था, वामपन्थियों के खतरनाक गलतियों का मुकबला करते हुए ‘अधिक दूर चले जाने’ के चलते नहीं लिया था बल्कि अपनी प्रकृति के चलते ही जानबूझ कर और स्थायी रूप से लिया था. इस बात को इमानदारी से स्वीकार करने के बजाय कि कम्युनिस्ट अन्तरराष्ट्रीय के तीसरे कांग्रेस के बाद उसके लिए पार्टी में पुनर्प्रवेश के लिए अपील करना जरूरी है, जैसा कि हर उस आदमी को करना चाहिए था जिसका दिमाग वामपन्थियों द्वारा की जा रही गलतियों से चिढ़ कर फिर गया हो, लेवी पार्टी के साथ धूर्ततापूर्ण चालबाजियों के खेल में लग गया उसके पहिये में फच्चर फंसाने लगा, यानी, वह वास्तव में पूंंजीपति वर्ग के उन एजेण्टों, दूसरे और ढाईवें अन्तरराष्ट्रीय की सेवा करने लगा. निश्चित तौर पर जर्मन कम्युनिस्ट सही थे जब हाल ही में उन्होंने इसका जवाब उन कुछ और महानुभावों को अपनी पार्टी से निकल बाहर करने के द्वारा दिया जो पॅाल लेवी को इस महान उद्यम में गुप्त रूप से मदद कर रहे थे.

कम्युनिस्ट अन्तरराष्ट्रीय के तीसरे कांग्रेस के बाद से जर्मन और इतालवी कम्युनिस्ट पार्टियों के विकास ने यह दर्शाया है कि उस कांग्रेस में वाम द्वारा की गयी गलातियों को चिह्नित कर लिया गया है और उन्हें सुधारा जा रहा है — थोड़ा-थोड़ा करके, धीरे-धीरे, लेकिन निरन्तरता के साथ; कम्युनिस्ट अन्तरराष्ट्रीय के तीसरे कांग्रेस के फैसलों को निष्ठापूर्वक लागू किया जा रहा है. एक पुराने किस्म की यूरोपीय संसदीय पार्टी को—जो दरअसल एक सुधारवादी पार्टी है और उसपर क्रान्तिकारी रंगों का सिर्फ हलका सा स्पर्श ही है—एक नयी किस्म की पार्टी में, एक असली क्रान्तिकारी, असली कम्युनिस्ट पार्टी में रूपान्तरित करने की प्रक्रिया अत्यधिक श्रमसाध्य है. यह बात, सम्भवतः, सबसे अधिक स्पष्टता के साथ फ़्रांस के अनुभव से प्रदर्शित हुई है. रोजमर्रा के जीवन में पार्टी-काम के किस्म को बदलने की, इसके नीरस प्रवाह से पार्टी को बाहर निकालने की प्रक्रिया; पार्टी को क्रान्तिकारी सर्वहारा वर्ग के हिरावल में परिवर्तित करने की प्रक्रिया, बिना इसे जनता से विच्छिन्न होने की इजाजत दिए, बल्कि, इसके विपरीत, इसे और नजदीकी से उनके साथ जोड़ कर, उन्हें क्रान्तिकारी चेतना से लैस कर और क्रान्तिकारी संघर्ष के लिए उत्साहित कर, बहुत कठिन, लेकिन उतनी ही जरूरी है. यदि यूरोपीय कम्युनिस्ट उन अन्तरालों (सम्भवतः बहुत छोटे) का लाभ नहीं उठाते हैं जो खासतौर पर तीक्ष्ण क्रान्तिकारी संघर्षों के—जैसा कि यूरोप और अमेरिका के अनेक पूँजीवादी देशों में 1921 और 1922 के शुरुआत में हुआ—बीच हासिल होता है, इस बात के लिए कि पार्टियों की सम्पूर्ण संरचना और उनके कामकाज में बुनियादी, आन्तरिक, गम्भीर पुनर्गठन लाया जाये तो वे गम्भीरतम अपराध कर रहे होंगे. सौभाग्य से इस डर की कोई वजह नहीं है. चुपचाप, निरन्तर और शान्ति के साथ, बहुत तेजी से नहीं लेकिन यूरोप और अमेरिका में असली कम्युनिस्ट पार्टी, सर्वहारा वर्ग के असली क्रान्तिकारी हिरावल के निर्माण का गम्भीर काम आरम्भ हो चुका है और आगे बढ़ रहा है.

लोमड़ी पकड़ने जैसे महत्वहीन चीज से हासिल किया गया राजनीतिक सबक भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है. एक ओर, अत्यधिक सावधानी से गलतियांं होतीं हैं. वहींं दूसरी ओर, यह बात भी नहीं भूलना चाहिए कि यदि हम महज ‘भावना’ में बह जाये या परिस्थिति का संजीदा ढंग से आंंकलन करने के बजाय छोटी लाल झण्डियांं हिलाने में मशगूल हो जायें, तो हम न सुधारे जाने योग्य गलतियांं कर सकते हैं, हम ऐसे वक्त पर कुर्बान को सकते हैं जबकि इसकी एकदम ही कोई जरूरत नहीं हो, बावजूद इसके कि कठिनाइयांं अपार हों.

रोजा लक्जमबर्ग के ठीक उन्ही लेखों को पुनर्प्रकाशित करने के माध्यम से जिनमें वे गलत थीं, पॅाल लेवी अब पूंंजीपति वर्ग—और, नतीजतन, इसके एजेण्ट, दूसरे और ढाईवें अन्तरराष्ट्रीय—की अनुकम्पा की छाया में आना चाहता है. इसका जवाब हम एक सुविदित रूसी नीतिकथा[4] की दो पंक्तियों को उद्धृत कर के देंगे : ‘गरुड़ कभी-कभार मुर्गियों से भी नीची उड़ान भर सकते हैं लेकिन मुर्गियांं कभी गरुड़ों की ऊंंचाई को छू नहीं सकतीं.’ रोजा लक्जमबर्ग पोलैंड के आजादी के मामले में गलती पर थीं; 1903 में मेनशेविज्म के अपने आंंकलन के मामले में वे गलती पर थीं; पूंंजी संचय के सिद्धान्त के मामले में वे गलती पर थीं; वे जुलाई 1914 में गलती पर थीं जब प्लेखानोव वन्देर्वेल्दे, काउत्स्की और दूसरों के साथ मिलकर उन्होंने मेनशेविकों और बोलशेविकों के बीच एकता की वकालत की थी; 1918 में जेल में उन्होंने जो लेखन किया उसमें वे गलती पर थीं (इसमें से अधिकांश गलतियों को उन्होंने 1918 के अन्त और 1919 के आरम्भ में सुधार लिया.) लेकिन इन गलतियों के बावजूद वे गरुड़ थीं और हमारे लिए वही बनी रहेंगी. और न केवल पूरी दुनिया के कम्युनिस्ट उनकी स्मृति को अपने ह्रदय में संजोये रखेंगे बल्कि उनकी जीवनी और उनकी सम्पूर्ण रचनायें (जिसके प्रकाशन में जर्मन कम्युनिस्ट असाधारण रूप से विलम्ब कर रहे हैं, जिसे, भयानक संघर्ष में वे जैसा जबरदस्त नुकसान उठा रहे हैं उसके मद्देनजर, आंशिक रूप से ही क्षम्य समझा जा सकता है) दुनिया भर के कम्युनिस्टों के अनेक पीढ़ियों के प्रशिक्षण लिए उपयोगी पाठ्य-पुस्तकों की भूमिका निभायेंगी. ‘4 अगस्त, 1914[5] के बाद से जर्मन सामाजिक-जनवाद एक बदबुदार लाश है’—यह वक्तव्य रोजा लक्जमबर्ग के नाम को अन्तरराष्ट्रीय मजदूर वर्ग के आन्दोलन के इतिहास में प्रसिद्ध करेगा. और, जाहिरा तौर पर, मजदूर-वर्गीय आन्दोलन के पिछवाड़े में भी, जहांं गोबर के ढेर पर पॅाल लेवी, श्वेइदेमान, काउत्स्की जैसी मुर्गियांं और उनकी पूरी बिरादरी महान कम्युनिस्टों द्वारा की गयी गलतियों पर कुड़कुड़ानी झाड़ेंगी. सबकी अपनी-अपनी फितरत है.

जहांं तक सेर्राती का सवाल है, वह एक सड़े अण्डे की तरह है जो जोर की आवाज और खास तौर पर कडुवी बदबू के साथ फूटता है. ‘उसके’ कांग्रेस के एक प्रस्ताव से, जो कम्युनिस्ट अन्तरराष्ट्रीय के कांग्रेस के फैसलों के प्रति अधीनता के लिए तैयार होने के घोषणा करती है, भ्रमित होने कि गुञ्जाइश क्या कम है, जो उसके बाद वह बूढ़े लाज्ज़ारी को कांग्रेस में भेजता है और अन्त में मजदूरों को घोड़ा बेचनेवालों की बेशर्मी के साथ धोखा देता है ? इतालवी कम्युनिस्ट जो इटली में क्रान्तिकारी सर्वहारा वर्ग की एक असली पार्टी को प्रशिक्षित कर रहे हैं, अब इटली की मेहनतकश जनता को राजनीतिक धोखाधड़ी और मेनशेविकवाद का वास्तविक सबक दिखा सकते हैं. इसका उपयोगी, निरोधक प्रभाव जल्दी ही महसूस नहीं होगा, न ही ऐसा अनेक ऐसे वास्तविक सबकों को दुहराये जाने के बिना होगा, लेकिन इसे महसूस किया जायेगा. इतालवी कम्युनिस्टों के विजय सुनिश्चित है यदि वे अपने को जनता से अलगाव में न डाल लें, यदि वे आम कार्यकर्ताओं के समक्ष सेर्राती की सभी धोखाधड़ियों का व्यावहारिक रूप से पर्दाफाश करने के कठिन काम में धैर्य न खोयें, यदि वे जब भी सेर्राती ‘अ’ बोले तो ‘ऋण अ’ बोलने के बहुत ही आसान और खतरनाक प्रलोभन के वशीभूत न हों, यदि वे निरन्तर जनता को एक क्रान्तिकारी विश्व दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रशिक्षित करें और उन्हें क्रान्तिकारी कारर्वाई के लिए तैयार करें, यदि वे इसी के साथ फासीवाद के व्यावहारिक और शानदार (हालांकि महंगे) वास्तविक सबकों का व्यावहारिक लाभ उठायें.

लेवी और सेर्राती अपने आप में लाक्षणिक नहीं हैं. वे लक्षण हैं निम्न-पूंंजीवादी जनवाद के चरम वामपन्थ के आधुनिक किस्म के, ‘विपरीत पक्ष’ के शिविर के, अन्तरराष्ट्रीय पूंंजीपतियों के शिविर के, उस शिविर के जो हमारे खिलाफ है. गोम्पर्स से सेर्राती तक ‘उनका’ पूरा शिविर हमारे पीछे हटाने पर, हमारे ‘नीचे उतरने’ पर दीदें फाड़ रहा है, हर्षोन्मत्त हो रहा है या फिर घड़ियाली आंंसू बहा रहा है. उन्हें दीदें फाडने दो, अपने विदूषकीय करतब करने दो. सबकी अपनी अपनी फितरत है. लेकिन हमें कोई भ्रम नहीं पालना चाहिए या हताशा के वशीभूत नहीं होना चाहिए. यदि हम अपनी गलतियों को स्वीकार करने से नहीं डरते, बार-बार उन्हें सुधरने की कोशिश करने से नहीं डरते—तो हम शिखर तक जरूर पहुँचेंगे. गोम्पर्स से सेर्राती तक के अन्तरराष्ट्रीय ब्लॅाक के मनोरथ की असफलता तय है.

टिप्पणियांं

1] यह लेख पूरा नहीं किया गया.

2] ‘स्मेना वेख’– यह प्राग से 1912 में प्रकाशित लेखों के संकलन का शीर्षक था, बाद में इसी नाम से अक्तूबर 1921 मार्च 1922 तक पेरिस से एक पत्रिका प्रकाशित हुई. यह श्वेत उत्प्रवासी बुधिजीवियों के बीच 1921 में पैदा हुए एक सामाजिक-राजनीतिक प्रवृत्ति के समर्थकों का मुखपत्र था और इसे उन पुराने, बुर्जुआ बुद्धिजीवी वर्ग के एक हिस्से का समर्थन हासिल था जिन्होंने विभिन्न कारणों से देश नहीं छोड़ा था.

सोवियत रूस में नयी आर्थिक नीति को लागू किये जाने के पश्चात पूंंजीवादी तत्वों में हुई किंचित बहाली ने इस प्रवृत्ति के सामाजिक बुनियाद का काम किया. इस प्रवृत्ति के मतावलम्बियों ने जब देखा कि विदेशी सैन्य दखलन्दाजी सोवियत शासन को उखाड़ने में सफल नहीं हुई वे सोवियत सरकार के साथ सहयोग की वकालत करने लगे, सोवियत राज्य के पूंंजीवादी पुनरुद्धार की आशा में. नयी आर्थिक नीति को उन्होंने सोवियत शासन का पूंंजीवादी पुनर्स्थापना की दिशा में हुई तरक्की माना. उनमें से कुछ निष्ठापूर्वक सोवियत सरकार के साथ सहयोग करने और देश के आर्थिक पुनर्जीवन को बढ़ावा देने के लिए तैयार थे. आगे चलकर उनमें से अधिकांश ने प्रति-क्रान्ति का साथ दिया.

लेनिन द्वारा इस प्रवृत्ति के गुणों का वर्णन इस खण्ड में किया है (देखें पृ.285-86).

3] जुडास गोलोव्लीयोव– एक जमीन मालिक और एम. वाई. सल्तिकोव-श्चेद्रिन के गोलोव्लीयोव परिवार का पात्र. उसके कट्टरता, पाखण्ड और संवेदनहीनता के लिए उसे जुड़ास का नाम मिला. जुडास गोलोव्लीयोव का नाम इन नकारात्मक गुणों का समानार्थक बन गया.

4] यहां इवान kriक्रिलोव की नीतिकथा गरुड़ और मुर्गियांं का जिक्र है.

5] 4 अगस्त, 1914 को राईसटैग में सामाजिक-जनवादी धड़े ने शाही सरकार को 50,000 लाख मार्क का युद्ध ऋण देने के पक्ष में पूंंजीवादी प्रतिनिधियों के साथ मतदान किया, और इस तरह विल्हेल्म द्वितीय की साम्राज्यवादी नीतियों का अनुमोदन किया.

Read Also –

लेनिन की कलम से : समाजवाद और धर्म
महिलाओं के प्रश्न पर लेनिन से एक साक्षात्कार : क्लारा जे़टकिन
महान समाजवादी विश्वद्रष्टा लेनिन के स्टेचू को ढा़हने का निहितार्थ
महिला, समाजवाद और सेक्स
स्तालिन : साम्राज्यवादी दुष्प्रचार का प्रतिकार

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…