इन दो आंखों को ध्यान से देखिए. भय और बेहयाई का एक साथ एक बेहतरीन नमूना है. यह आंखें यह बताती है कि इस देश में एक विशाल गैंग का कब्जा हो चुका है, जो अपनी इच्छानुसार देश के लोकतंत्र को किसी भी दिशा में तोड़-मरोड़ सकता है. अर्नब इस विशाल गैंग का एक हिस्सा है, जो इस देश के लोकतांत्रिक चरित्र को खत्म करने पर आमदा है. पिछले 7 सालों में एक-एक कर इस लोकतंत्र के सारे के सारे संस्थानों को मनमाफिक ढ़ाला जा चुका है. अब यह गैंग इतना ताकतवर और आत्मविश्वास से भर चुका है कि वह किसी भी स्थिति से बेलाग बचकर बाहर आ जाने के प्रति पूर्णतः आश्वस्त है.
अर्नब इस ताकतवर और विशाल गैंग का एक हिस्सा है, जो देश में पत्रकारिता से जुड़ा है. पत्रकारिता से जुड़े लोकतंत्र का यह स्तम्भ आज हर दिन देश की आम आवाम के खिलाफ लड़ रहा है. लोगों के बीच झूठ और अफवाह फैला कर लोकतंत्र की बुनियाद को खोखला कर रहा है. अर्नब के ह्वाटसअप चैट के 3000 पन्नों का खुलासा यह बताने के लिए पर्याप्त है कि अर्नब गैंग का पूरा खुलासा करने के लिए अर्नब गैंग के हर गुनाहगारों को विवरण इसी तरह लाया जाना चाहिए, ताकि देश में इसकी पोल खुल सके और लोकतंत्र को खाने वाले गैंग का पर्दाफाश किया जा सके.
बहरहाल, यहां हम इस विशाल गैंग के एक हिस्से अर्नब गैंग को अन्तर्राष्टीय पत्रकार रविश के शब्दों में यहां देखते हैं –
अर्णब के दो आगे अर्णब, अर्णब पीछे दो अर्णब, बोलो कितने अर्णब ? आप किससे उम्मीद कर रहे हैं ? भारत का 99.999 प्रतिशत मीडिया गोदी मीडिया है. यह एक परिवार की तरह काम करता है. इस परिवार के संरक्षक का नाम आप जानते हैं. इस परिवार में सारे एंकर और चैनलों के मालिक अर्णब ही हैं. नाम सबके अलग हैं, मगर काम अर्णब का ही है. आप सोचिए कि एक अर्णब दूसरे अर्णब के बारे में कैसे बोलेगा ? इसलिए अर्णब, अर्णब के बारे में चुप ही रहेगा. भले इस कथित चैट में गोदी मीडिया की आपसी प्रतिस्पर्धा दिख रही है लेकिन आप ये तो देखिए कि गोदी मीडिया का संरक्षक कौन है ? क्या यह गोदी मीडिया दुस्साहस करेगा कि वह आपसी प्रतिस्पर्धा की लड़ाई में संरक्षक को सामने ले आए ? कभी नहीं करेगा. इसलिए वह अर्णब को बचाने के लिए चुप नहीं है बल्कि अपने संरक्षक को बचाने के लिए चुप है. जिस खेल को अर्णब के कथित चैट के ज़रिए उजागर किए जाने का दावा किया जा रहा है, वो कौन नहीं जानता. उस खेल में तो 99.999 प्रतिशत गोदी मीडिया लाभार्थी है, तो कोई कैसे अपने अर्णब होने के ख़िलाफ़ अर्णब की पोल खोल दे.
अर्णब सिर्फ़ एक न्यूज़ एंकर नहीं है. वह एक समाज है. अर्णब के झूठ को देखने और दिन रात गटकने वाला समाज अर्णब बन चुका है. उस समाज की सोच में अर्णब और अर्णब के संरक्षक के फ़र्क़ की सीमा रेख मिट चुकी है. उसके लिए संरक्षक ही अर्णब है और अर्णब ही संरक्षक है तो वह समाज अर्णब और संरक्षक के लिए चुप रहेगा. जबकि वही समाज रक्षा और सेना को लेकर फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद का नारा बुलंद करता है ताकि अपने भीतर की सांप्रदायिकता को एक नैतिक रंग दे सके. उसके लिए न देशभक्ति अहम है और न राष्ट्रवाद. दोनों में अंतर होता है. ख़ैर. इसलिए वह अर्णव के कथित चैट के बहाने राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर उठ रहे सवाल को लेकर सवाल नहीं करेगा. जवाब नहीं मांगेगा. चुप रहेगा क्योंकि अब जब तक वह जीवित है इसी तरह के झूठ और प्रपंच के साथ जीने-मरने के लिए अभिशप्त है.
मैं जानता हूं कि न्यूज़ चैनलों के ज़रिए भारत की जनता को दैनिक रुप से ग़ुलाम बनाने का अभ्यास कराया जाता है और जनता किस हद तक गुलाम बन चुकी है उसका दैनिक परीक्षण किया जाता है, तभी तो जनता ने साढ़े तीन महीने तक सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की ख़बर पर बतगंड़ी का महाकवरेज देखा था. इस समाज के बीच नैतिकता की कोई जगह नहीं बची है. यह समाज एक गिरोह और उसके सदस्यों की अनैतिकता का बचाव करने के लिए ज़िंदा है. तभी मैंने कहा था कि नागरिक या जनता के अधिकार की किसी भी लड़ाई का गोदी मीडिया के बहिष्कार या उससे लड़ाई के बग़ैर कोई मतलब नहीं है. जब 99.999 प्रतिशत मीडिया गोदी मीडिया हो जाए तो अब हर संघर्ष में इस बात का हिसाब होना चाहिए कि बग़ैर मीडिया के कैसे आंदोलन करना है, जो मीडिया के लिए आंदोलन करेगा उसकी मौत तय है. उसकी असफलता तय है. यह बात सिर्फ़ किसानों के लिए नहीं है बल्कि नौकरी और परीक्षा को लेकर आंदोलन करने वाले छात्रों के लिए भी है. उनके अपने भीतर इस स्वाभिमान को पैदा करना ही होगा कि वे अपने आंदोलन से मीडिया को बाहर कर दें. नहीं करेंगे कोई बात नहीं. उनकी मर्ज़ी. मैं लोड नहीं लेता.
कई लोगों ने मुझसे कहा कि आप अर्णव के चैट के बारे में क्यों नहीं प्रोग्राम कर रहे हैं ? मेरा जवाब पेशेवर है. एक कि मैंने चैट देखा नहीं क्योंकि अकेले काम करता हूं तो पढ़ने का वक़्त नहीं मिला. सोशल मीडिया में इतनी जगह उस चैट के बारे में काट-छांट कर पेश किया गया है. ऐसे मैं मेरा एक क़ायदा है. मैं थोड़ा रुकता हूं. ख़ुद पढ़ता हूं. देर से कर लेंगे कोई तूफ़ान नहीं आ जाएगा. इस दौरान मैं किसानों के मुद्दे को समझने में लगा था. मैंने किसी दूसरे विषय पर कोई प्रोग्राम किया भी नहीं था. सोचा तो यही था कि लगातार 50 एपिसोड करूंगा और किसी दूसरे विषय पर नहीं करूंगा. ज़ाहिर है उसमें व्यस्त रहा और हूं भी.
हम अर्णब नहीं है कि व्हाट्स एप का चैट आया और रिया चक्रवर्ती की ज़िंदगी के पीछे पड़ गए. मैंने कई लोगों से पूछा कि इसे औपचारिक रुप से कवर बने में निजता के कौन कौन से सवाल उठते हैं ? क्या किसी की निजता भंग होती है ? पुलिस ने कोर्ट में चार्जशीट जमा की है तो इसे लेकर किस तरह की नैतिक और क़ानूनी सावधानियां बरती जानी चाहिए ? हमने तो इतना सोचा है. अगर मेरे बारे में ऐसी कोई सूचना होती तो अर्णब सहित सारे अर्णब इस पर घंटों अभियान चला रहे होते. सारे मंत्री पुलिस के साथ मेरे घर आ गए होते. सूचना प्रसारण मंत्रालय की अफ़सर नोटिस जारी कर रही होती क्योंकि मैं अर्णब नहीं हूं.
अगर मैं अर्णब होता तो सब चुप रहते. आई-टी सेल चुप रहता. और सबसे बड़ी बात समाज का बड़ा तबका मेरे साथ खड़ा रहता. मेरी एक बात याद रखिएगा. भारत की सामाजिकता की बुनियाद में नैतिकता है ही नहीं. आगे कहने की ज़रूरत नहीं है. न्यूज़ चैनलों की ग़ुलामी झेल रहे इस समाज से ज़्यादा संवाद करना समय बर्बाद करना है. अब सवाल है कि अर्णब की मदद कैसे की जाए ? इसका एक समाधान है जो पेश कर रहा हूं –
या तो ओवैसी कहीं कुछ बयान दे दें, या मंदिर निर्माण के चंदे को लेकर कोई बोल दे कि चंदा नहीं देना है, इससे होगा कि गोदी मीडिया के सारे अर्णबों को हफ़्ते भर का मुद्दा मिल जाएगा. लोग वैसे भी चंदा देंगे और देते रहेंगे लेकिन टीवी के लिए इससे अच्छा मुद्दा कुछ और नहीं है. या फिर पाकिस्तान से कुछ जोड़ दिया जाए. पाकिस्पतान से जुड़ जाए तो सारे अर्णब बाहर आ जाएंगे. अपना बचाव करने लगेंगे. इस तरह के मुद्दे किसी न किसी संगठन के लोग बयान देकर उपलब्ध करा ही देंगे. अगर ऐसा हो गया तो सारे अर्णब खुश हो जाएंगे.
याद है न आपको अर्णव के लिए कैसे सारे मंत्री आ जाते थे. बीजेपी के सारे प्रवक्ता आ जाते थे. बोलने और अर्णव को बचाने. सारी सरकार खड़ी हो जाती थी. इस बार भी सब उसके साथ खड़े हैं. बस फ़र्क़ ये है कि बोल नहीं रहे हैं. ज़रूरी भी नहीं कि हर बार बोल कर साथ दिया जाए.
फ़िलहाल न्यूज़लौंड्री ने इस पर हिन्दी में एक रिपोर्ट की है. नवभारत टाइम्स और टाइम्स आप इंडिया में ख़बर छपी है। टाइम्स नाउ ने कवर किया है लेकिन उसमें चतुराई से AS का मतलब नहीं बताया जा रहा है. AS का मतलब बताते ही टाइम्स नाउ बंद कर दिया जाएगा. कैरवां ने भी इस पर रिपोर्टिंग की है मगर वो अंग्रेज़ी में है. इस लेख का उन्वान\शीर्षक श्री 420 फ़िल्म के एक गाने से प्रभावित है. तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर, बोलो कितने तीतर…
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अर्णब के व्हाट्स चैट पर बोलना था प्रधानमंत्री को, बोल रहे हैं राहुल गांधी, क्यों ? 16 जनवरी को व्हाट्सएप चैट की बातें वायरल होती हैं. किसी को पता नहीं कि चैट की तीन हज़ार पन्नों की फाइलें कहां से आई हैं. बताया जाता है कि मुंबई पुलिस टीआरपी के फर्ज़ीवाड़े को लेकर जांच कर रही थी. उसी क्रम में इस मामले में गिरफ्तार पार्थो दासगुप्ता से बातचीत में रिपब्लिक टीवी के मालिक और एंकर अर्णब गोस्वामी कई तरह की जानकारी होने के दावे करते हैं, जिनका संबंध राष्ट्रीय सुरक्षा से भी है और कैसे उन जानकारी के इस्तेमाल से रेटिंग में कथित तौर पर घपला किया जा सकता है, जिससे चैनल या अर्णब गोस्वामी को करोड़ों की कमाई हो सकती है.
सरकार ने इस मामले को संवेदनशीलता से नहीं लिया. कम से कम उसे अपने स्तर पर महाराष्ट्र की मुंबई पुलिस से इसकी पुष्टि करनी चाहिए थी कि बातचीत की सत्यता क्या है क्योंकि इस चर्चा से राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीतिक संबंध प्रभावित हो सकते हैं. आतंक के गंभीर मामलों में जांच करने वाली NIA भी पहल कर सकती थी और बुलाकर इस मामले में पूछताछ कर सकती थी. वैसे आपको बता दें कि ये चैट मुंबई पुलिस की टीआरपी जांच में शामिल की गई एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट का हिस्सा है. कोर्ट में दाखिल हुआ है. फिर भी सरकार अपने स्तर पर पता कर सकती थी लेकिन उसकी गहरी चुप्पी ने संदेह के बादलों को और भी गहरा कर दिया.
इस दौरान हम सभी की आलोचना होने लगी कि अर्णब गोस्वामी के कथित व्हाट्स एप चैट पर आप चुप क्यों हैं ? मैंने अपना कारण बताया था कि मैं ऐसी चीज़ों में जल्दबाज़ी पसंद नहीं करता. मैं रूका रहा कि आधिकारिक बयानों का इंतज़ार करना चाहिए. मुझे उम्मीद थी कि सरकार कुछ करेगी, बोलेगी. सरकार ने मुख्यधारा के कुछ अख़बार, वेबसाइट और एक दो न्यूज़ चैनलों पर इस मामले की चर्चा के बाद भी कुछ नहीं कहा. संज्ञान नहीं लिया. 19 जनवरी आ गया.
राहुल गांधी किसानों को लेकर एक पुस्तिका जारी करने प्रेस कांफ्रेंस में आते हैं. उनसे कई तरह से सवाल-जवाब होते हैं. एक सवाल इस व्हाट्स एप चैट को लेकर चुप्पी के बारे में होता है जिसके जवाब में राहुल गांधी पहले अंग्रेज़ी में और फिर हिन्दी में बोलते हैं. हिन्दी वाला हिस्सा शब्दश: यहां दे रहा हूं –
एक पत्रकार को डिफेंस का सेंसेटिव इंफो बालाकोट से पहले इंफो दी जा रही है. उसी पत्रकार ने पहले कहा कि पुलवामा के बाद कहा कि ये हमारे लिए अच्छा हुआ है. रिप्लेक्शन आफ प्रधानमंत्री. जो इनका माइंड सेट है वो इनका है कि हमारे चालीस लोग मर गए, अब हम चुनाव जीत जाएंगे. एक पत्रकार को डिफेंस का सेंसेटिव इंफो बालाकोट से पहले इंफो दी जा रही है. उसी पत्रकार ने पहले कहा कि पुलवामा के बाद कहा कि ये हमारे लिए अच्छा हुआ है. रिप्लेक्शन आफ प्रधानमंत्री. जो इनका माइंड सेट है वो इनका है कि हमारे चालीस लोग मर गए अब हम चुनाव जीत जाएंगे. आपने इंफ़ो दी, 4-5 लोगों के पास थी. ऐसे मिशन में सूचना पायलट को लास्ट में मिलती है. एयर चीफ, एनएसए, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री को दी. इन पांच में से किसी ने इस व्यक्ति को सूचना दी. क्रिमिनल ऐक्शन है. पता लगाना पड़ेगा किसने दी और उन दोनों को जेल में जाना पड़ेगा. मगर ये प्रोसेस शुरू नहीं हुई. क्यों ?प्रधानमंत्री ने सूचना दी होगी. तो वो तो होगी नहीं. शायद बाद में हो. प्रधानमंत्री को पता था. PM, डिफ़ेन्स मिनिस्टर, एनएसए को पता था. गृह मंत्री को पता था. रक्षा मंत्री को पता था. इन पांच में से किसने दिया ? सीधी-सी बात है.
राहुल गांधी स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि किसी देश पर हमले की सूचना आफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत आती है. इस फैसले की गोपनीयता सिर्फ पांच लोगों के पास थी. इन्हीं पांच लोगों में से एक के पास होगी. इन्हीं पांच में से किसी एक ने मिस्टर अर्णब गोस्वामी को सूचना दी थी, जो राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता है. आप जब इसे व्हाट्स एप चैट से साझा कर रहे हैं तो मुमकिन है कि दुश्मन देश हैक कर जान सकता था और भारत के लिए उल्टा हो सकता था. राहुल गांधी से पहले उनकी पार्टी के रणदीप सुरजेवाला, मनीष तिवारी, तृणमूल कांग्रेस की माहुओ मोइत्रा, राजद के मनोज झा और शिव सेना के संजय राउत ने सवाल उठाया था. सबके सवाल में संदेह के चिन्ह थे. वैसे इस चैट के सामने आते ही गहरी चुप्पी पसर गई थी. नेताओं से पहले प्रशांत भूषण ने ट्विट किया और उसी को आधार बना कर कई जगहों पर ख़बर की गई. किसी ने ठोस तरीके से हमला नहीं किया बल्कि ज़िक्र कर छोड़ दिया कि सरकार की नज़र में ये बात जाए और इसका कुछ खंडन या स्पष्टीकरण आए. नहीं आया.
कहने का मतलब है कि सरकार को पता था कि व्हाट्स एप चैट को लेकर चर्चा हो रही है. राहुल के बयान के बाद और ख़बरों के छपने के बाद भी पता है तो अब क्यों नहीं कुछ बोल रही है ? इतना कहा जा सकता था कि सरकार की नज़र में यह बात है और जांच हो रही है. संदेश गया कि सरकार इस इंतज़ार में है कि लोगों का ध्यान इससे भटक जाए. सरकार ने सामने से इसका सामना नहीं किया. सोशल मीडिया में वायरल होता रहा.
अब सवाल है कि क्या अर्णब गोस्वामी को हमसे से तीन दिन पहले बालाकोट हमले की सटीक जानकारी थी ? चैट की बातचीत की तारीख़ 23 फ़रवरी, 2019 की है और हमला 26 फ़रवरी, 2019 को होता है. तीन दिन पहले की बातचीत है लेकिन हम कैसे जान सकते हैं कि अर्णव को जानकारी तीन दिन पहले ही हुई थी ? क्या अर्णव को और पहले से जानकारी थी ? अर्णव ने पार्थो दासगुप्ता के अलावा किस किस को बताया था ? क्या इसका इस्तेमाल एक सरकार के लौटने की गारंटी के आधार पर मार्केट में पैसा लगाने वालों के बीच भी हुआ था ? कई तरह के सवाल हैं.
व्हाट्स चैट का जो हिस्सा वायरल है, उसका एक छोटा सा अंश दे रहा हूं. आप देख सकते हैं. मूल बातचीत अंग्रेज़ी में है, ये हिन्दी अनुवाद है.
अर्णब गोस्वामी : हां एक और बात, कुछ ब़ड़ा होने वाला है.
पार्थो दासगुप्ता : दाऊद ?
अर्णब गोस्वामी : नहीं सर, पाकिस्तान, इस बार कुछ बड़ा होने वाला है.
पार्थो दासगुप्ता : ‘ ऐेसे वक्त में उस बड़े आदमी के लिए अच्छा है, तब वो चुनाव जीत जाएंगे. स्ट्राइक ? या उससे भी कुछ बड़ा.
अर्णब गोस्वामी : सामान्य स्ट्राइक से काफी बड़ा. और साथ ही इस बार कश्मीर में भी कुछ बड़ा होगा. पाकिस्तान पर स्ट्राइक को लेकर सरकार को विश्वास है कि ऐसा स्ट्राइक होगा जिस से लोगों में जोश आ जाएगा. बिलकुल यही शब्द इस्तेमाल किए गए थे.
यह बेहद संगीन मामला है. सरकार को उसी वक्त एक्शन लेना चाहिए था और इस पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए थी. मैं खुद सरकार की प्रतिक्रिया का इंतज़ार करता रहा. ये क्या हो रहा है कि सुरक्षा के ऐसे संवेदनशील मामलों को बिना किसी चेक के पसरने दिया जा रहा है जबकि अनाप-शनाप फेसबुक पोस्ट करने वालों को पीट दिया जाता है और जेल में डाल दिया जाता है.
क्या चुनाव जीतने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को दांव पर लगाया जा सकता है ? मान लीजिए पाकिस्तान को यह सूचना किसी तरह से हाथ लग जाती क्योंकि यह पांच लोगों के अलावा बाहर जा चुकी थी. एक एंकर एक ऐसे व्यक्ति के साथ साझा कर रहा है जिससे वह लाभ पाकर करोड़ों कमाना चाहता है. अगर इस रुट से सूचना लीक होती औऱ पाकिस्तान दूसरी तरह से तैयारी कर लेता तो भारत को किस तरह का नुकसान होता, इसका सिर्फ अंदाज़ा लगाया जा सकता है. कितने जवानों की ज़िंदगी दांव पर लग जाती, इसका भी आप अंदाज़ा लगा सकते हैं. तभी तो ऐसी सूचना गोपनीय रखी जाती है. काम को पूरा करने के बाद देश को बताया जाता है. सुरक्षा मामलों का कोई भी जानकार इसे सही नहीं कह सकता है.
क्या अर्णब गोस्वामी पार्थो दासगुप्ता से गप्प हांक रहे थे ? क्या यह संयोग रहा होगा कि वो हमले की बात कह रहे हैं और तीन दिन बाद हमला होता है और चुनावी राजनीति की फिज़ा बदल जाती है ? लेकिन इसी चैट से यह भी सामने आया है कि कश्मीर में धारा 370 समाप्त किए जाने के फैसले की जानकारी उनके पास तीन दिन पहले से थी. अगर आप दोनों चैट को आमने-सामने रखकर देखें तो संयोग और गप्प हांकने की थ्योरी कमज़ोर साबित होती है. हम नहीं जानते कि बालाकोट स्ट्राक की जानकारी अर्णब के अलावा और किस किस एंकर को दी गई थी ? क्या उसी के हिसाब से न्यू़ज़ चैनलों को तोप बनाकर जनता की तरफ मोड़ दिया गया और जनता देशभक्ति और पाकिस्तान के नाम पर वाह वाह करती हुई अपने मुद्दों को पीछे रख लौट गई थी ?
राहुल गांधी कहते हैं कि इस मामले में कुछ नहीं होगा. उनकी बात सही है. ऐसी सूचना प्रधानमंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलहाकार, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री और वायुसेना प्रमुख के पास होती है. इनकी जांच कौन करेगा ? भारत जैसे देश में मुमकिन ही नहीं है. अमरीका या ब्रिटेन में आप फिर भी उम्मीद कर सकते हैं. ब्रिटेन में प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर के खिलाफ जांच कमेटी बैठी थी कि उन्होंने झूठ बोलकर ब्रिटेन की सेना को इराक युद्ध में झोंक दिया था. ब्लेयर दोषी पाए गए थे और उन्हे देश और सेना से माफी मांगनी पड़ी थी. आप इंटरनेट में चिल्कॉट कमेटी की रिपोर्ट के बारे में पढ़ सकते हैं. इसलिए इन पांचों से तो कोई पूछताछ होगी नहीं और अर्णब को इसलिए बचाया जाएगा क्योंकि इन पांचों में से किसी एक को बचाया जाएगा. प्रधानमंत्री को भी पद की गोपनीयता की शपथ दिलाई जाती है. क्या प्रधानंमत्री ने शपथ का उल्लंघन किया है ? यह साधारण मामला नहीं है.
जैसा कि मैंने कहा था कि अर्णब का मामला सिर्फ अर्णब का मामला नहीं है. गोदी मीडिया में सब अर्णब ही हैं. सबके संरक्षक एक ही हैं. कोई भी आपसी प्रतिस्पर्धा में अपने संरक्षक को मुसीबत में नहीं डालेगा इसलिए राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस के बाद जब प्रकाश जावड़ेकर बीजेपी मुख्यालय पहुंचे तो उनकी इस प्रेस कांफ्रेंस में राहुल के जवाब को लेकर या व्हाट्स एप चैट को लेकर गंभीर सवाल जवाब ही नहीं हुए. क्या बीजेपी कवर करने वाले पत्रकार इतना सहम चुके हैं ? समझा जा सकता है. आखिर कितने पत्रकार बात बात में नौकरी गंवा देंगे और सड़क पर आ जाएंगे ? यह सवाल तो अब पत्रकार से ज़्यादा जनता का है और जनता को नोट करना चाहिए कि बीजेपी कवर करने वाले पत्रकार बीजेपी से या केंद्र सरकार के मंत्री से सवाल नहीं पूछ सकते हैं. आईटी सेल को भी काठ मार गया है. वो मेरी एक गलती का पत्र वायरल कराने में लगा है. कमाल है. क्या देश ने तय कर लिया है कि आईटी-सेल दो और दो पांच कह देगा तो पांच ही मानेंगे, चार नहीं ?
तो क्या दूसरों को देशद्रोही बोलकर ललकारने वाला गोदी मीडिया या अर्णब गोस्वामी खुद देश के साथ समझौता कर सकते हैं ? और जब करेंगे तो उन्हें बचाया जाएगा ? इस देश में किसानों और पत्रकारों को NIA की तरफ से नोटिस भेजा जा रहा है और राष्ट्रीय सुरक्षा की सूचना बाज़ार के एक धंधेबाज़ सीईओ से साझा की जा रही है, उस पर चुप्पी है. राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर मुखर होकर बोलने वाले ऐसे फौजी अफसर भी चुप हैं, जो रिटायरमेंट के बाद अर्णब के शो में हर दूसरे दिन आ जाते हैं. उन्होंने भी नहीं मांग की कि इस मामले की जांच होनी चाहिए.
गोदी मीडिया इस मामले में चुप है क्योंकि वह उसी संरक्षक का हिस्सा है, जहां से सबको अर्णब बने रहने का प्रसाद मिलता है. जीवनदान मिलता है. क्या आप अपनी आंखों से देख पा रहे हैं कि आपके प्यारे वतन का कितना कुछ ध्वस्त किया जा चुका है ? क्या आपको लग रहा है कि गोदी मीडिया के दस एंकरों और सरकार के बीच गिरोह जैसा रिश्ता बन गया है ? आपने इस रिश्ते को मंज़ूर किया है. आपने सवाल नहीं उठाए हैं. फर्ज़ कीजिए. ऐसी जानकारी कोई बड़ा अधिकारी मेरे या किसी और के साथ चैट में साझा कर देता, तब इस देश में क्या हो रहा होता ? मैं आपको शर्मिंदा नहीं करना चाहता हूं. मैं जानता हूं कि जितनी बातें पिछले छह साल में कही हैं, वही बातें घट चुकी हैं. वही बातें घट रही हैं. वही बातें घटने वाली हैं.
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अर्णब गोस्वामी के व्हाट्स एप चैट में चर्चा भले बालाकोट हमले की पूर्व जानकारी को लेकर हो रही है लेकिन TRP का मामला भी कम गंभीर नहीं है. बल्कि अगर देखा जाए तो वहां पर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं. क्या अर्णब इतनी पहुंच रखने लगे हैं कि रेटिंग एजेंसी के चीफ़ को सूचना प्रसारण मंत्री से मिलाने और सरकार में ऊंचे पद दिलाने का आश्वासन दे रहे हैं ? अपनी बातचीत में वे पूछकर बताने की भी बात नहीं कर रहे बल्कि सीधा कह रहे हैं कि मंत्री मिलेंगे. सरकार के DISH TV के प्लेटफ़ार्म पर अर्णब के चैनल की मौजूदगी पर भी विवाद है. अर्णब पर सरकार के ख़ज़ाने में (चूना) लगाने के आरोप हैं, जिसकी रिपोर्ट कुछ समय पहले मीडिया में आ चुकी है. इस बारे में अर्णब पार्थो दासगुप्ता से कहते हैं कि मंत्री राठौड़ ने कहा है कि उनका फ़ाइल किनारे रख दी है. इस बातचीत से लगता है कि सरकार अर्णब गोस्वामी को कितना प्रश्रय देती है.
अर्णब गोस्वामी ने एक जवाब दिया है. उस जवाब में TRP वाले मामले पर कुछ नहीं है. बालाकोट हमले वाले चैट पर है. कह रहे हैं कि हमले की जानकारी आम थी. पहले से चर्चा चल रही थी और हज़ारों लेख छपे हैं कि पाकिस्तान के ख़िलाफ़ एक्शन होना चाहिए. अर्णब उस समय हो रही चर्चा की आड़ में (खुद को) बचा रहे हैं. उन्हें पता है कि युद्ध का माहौल गोदी मीडिया ही बना रहा था. बिल्कुल लोग जवाब की मांग करने लगे क्योंकि गंदी मीडिया में यही चल रहा था. लेकिन किसी को पता नहीं था कि हमला होने वाला है. चैट में अर्णब जो लिख रहे हैं वो महज़ पत्रकारीय अंदाज़ा या अटकल नहीं है. उसके तीन दिन बाद हमला होता है. भारत माता की जय बोल देने से दलील या तथ्य को सत्य का दर्जा नहीं मिल जाता है. झूठ बोलने के लिए भारत माता की जय का इस्तेमाल दु:खद है.
भारत माता की जय के पवित्र नारे को अर्णब गोस्वामी से बचाइये. भारत माता की जय, पवित्र नारा है. इस नारे को बोलते हुए जवान सीने पर गोलियां खा लेते हैं. इस नारे में भारत का विराट सामर्थ्य समाहित है. जब कोई झूठ और कपट से भारत माता की जय बोलता है तो इस नारे की पवित्रता को भंग करता है. फ़िल्मों में आपने देखा होगा. जब कोई डाकू टीका लगा कर ‘जय मां भवानी’ या ‘जय मां काली’ कहता है तो इससे वह संत नहीं हो जाता. वह डाकू ही रहता है.
फ़िल्म का दर्शक जानता है कि ‘जय मां भवानी’ डाकू अपने पाप को बचाने के लिए बोल रहा है. उस डाकू का पीछा करती पुलिस इसलिए घर नहीं लौट जाती है कि डाकू ‘जय मां भवानी’ बोल रहा है. ललाट पर टीका लगाता है और न ही मां भवानी भक्ती के बदले डाकू को अमरत्व देती हैं. उसी की हार होती है. जीत कर्तव्यपरायण पुलिस अफ़सर की होती है. अर्णब भारत माता की जय बोलें. किसी को मनाही नहीं है. जेल में भी पंद्रह अगस्त के कार्यक्रम होते हैं. गणतंत्र दिवस की परेड होती है. लेकिन वह यह न समझें कि भारत माता की जय बोल कर आरोपों से बच जायेंगे.
अर्णब गोस्वामी ने व्हाट्स एप चैट को लेकर एक बयान जारी किया. उसमें कहीं नहीं लिखा कि चैट फ़र्ज़ी है. बालाकोट हमले की जानकारी के मामले में वे पाकिस्तान को घुसा कर ढाल बना रहे हैं. क्या TRP मामले में भी पाकिस्तान है ? इस मामले में तो दूसरे चैनल भी अर्णब पर आरोप लगा रहे हैं. चैनलों की नियामक संस्था NBA ने भी कार्रवाई की बात की है. अब अगर ये ख़बर पाकिस्तान में छप जाए तो अर्णब ये डिबेट करेंगे कि पाकिस्तान को फ़ायदा हो रहा है ? जिन दूसरे चैनलों ने अर्णब पर आरोप लगाया है वे भी तो उसी नेशनल सिलेबस के पास आउट हैं जिसके अर्णब हैं. मैं इस नेशनल सिलेबस को अब ‘मोदी सिलेबस’ कहता हूं. इन चैनलों पर भी तो बिना बात के पाकिस्तान को घसीट कर डिबेट होता है और सवाल करने वालों को ललकारा जाता है ताकि मोदी जी को सियासी फ़ायदा हो. क्या अर्णब गोस्वामी इन चैनलों को भी कांग्रेस की तरह पाकिस्तान का एजेंट कहेंगे ?
अर्णब गोस्वामी के व्हाट्स एप चैट में ज़्यादा गंभीर मामला TRP को लेकर है. किस तरह से वे एक रेटिंग एजेंसी के भीतर घुसपैठ करते हैं, जो जानकारी गुप्त है उसे हासिल करते हैं. उस रेटिंग एजेंसी का CEO उनसे प्रधानमंत्री कार्यालय में मीडिया सलाहकार का पद दिलाने का कहता है. अर्णब उसे सूचना प्रसारण मंत्री से मिलाने की बात करते हैं. टेलीकॉम सेक्टर में सारी कंपनियों को बिज़नेस का एक समान अवसर मिले इसे देखने के लिए एक नियामक संस्था है TRAI, इसे लेकर भी दोनों बात कर रहे हैं. अर्णब और पार्थो कह रहे हैं कि TRAI मैनेज करना है. इसी सबको लेकर मुंबई पुलिस जांच कर रही है. लेकिन उसकी जांच कभी मंज़िल पर नहीं पहुंचेगी क्योंकि इस चैट में TRP को लेकर जिस तरह के अनैतिक खेल की बात हो रही है, उसमें तो कई सूचना प्रसारण मंत्री और प्रधानमंत्री का भी ज़िक्र आ रहा है. यही कारण है कि बाक़ी चैनल चुप हैं क्योंकि बोलेंगे तो इस घोटाले में मोदी सरकार का नाम बार बार आएगा और उनमें ऐसा करने की हिम्म्त नहीं है.
इसीलिए मैं कहता हुं कि गोदी मीडिया के ज़रिए भारत के लोकतंत्र की हत्या की जा चुकी है और आप इस हत्या के मूक दर्शक हैं. गवाह हैं, फिर भी चुप हैं. आप भी अर्णब की तरह भारत माता की जय बोलने का नैतिक अधिकार खो चुके हैं. किसी नेता या एंकर की कपट पर पर्दा डालने के लिए भारत माता की जय मत बोलिए. सत्य को सामने लाने के लिए भारत माता की जय बोलिए.
नोट : इस खबर को छिपाया जा रहा है. आप सारा काम छोड़ कर गांव-गांव में फैलाने में लग जाइये. ओला उबर में चल रहे हैं तो चालक को सुनाइये. ऑटो चालक को सुनाइये. किसी दुकानदार को सुनाइये. दरबान को सुनाइये. किसान को सुनाइये. सब्जीवाले को सुनाइये. इस वक्त आपका यही कर्तव्य है.
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मीडिया की भूमिका : सत्ता और पूंजी की दलाली या ग्रांउड जीरो से रिपोर्टिंग
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