देश की राजधानी दिल्ली के विहंगम प्रधान क्रिमिनल आवास की एक मनहूस सुबह.
पोर्श में एक-एक कर पांंच गाड़ियांं आकर रुकती हैं.
अंदर बड़े से हॉल में क्रिमिनल इन चीफ़ दबे हुए उत्तेजना में चहलक़दमी कर रहा है. वह ध्यान रख रहा है कि उसके लिए बने व्यक्तिगत टॉयलेट से बहुत दूर नहीं भटके. पिछले पांंच दिनों से सिंधु बॉर्डर की गतिविधियों के चलते पेचिश की शिकायत बढ़ी हुई है. मीटिंग के बीच अगर…
तभी सामने दरवाज़े से क्रिमिनल नंबर दो , तीन, चार और पांंच आते दिखते हैं. पता नहीं क्यों इतनी उत्तेजना में भी क्रिमिनल नंबर दो और तीन थोड़ा रिलैक्स लग रहे हैं.
क्रिमिनल इन चीफ़ ( चैन की सांंस छोड़ते हुए) –
‘आओ मेरे क्रिमिनल भाईओं. हम कलियुगी पंच पांडवों ( यानि क्रिमनलों) को एक दूसरे की साथ देने की बहुत ज़रूरत है.’
क्रिमिनल नंबर दो – ‘कोई चिंता की बात नहीं है चीफ़. मैंने उसी शर्मा से कहकर कोठा में ख़बर कर दी है. आप बस मुख्य कोठाधीश को कह कर कोरोना के बहाने सड़क ख़ाली करवाने का आदेश मेरे मंत्रालय को दिलवा दिजिए. पुलिस अपनी है.’
क्रिमिनल इन चीफ़ – ‘ये तो मेरे लिए बांए हाथ का खेल है. मुख्य कोठाधीश बहुत भला आदमी है. एक सेकेंड हैंड हार्ले डेविडसन में मान गया. पिछले वाला बड़ा हरामी था, राज्यसभा की कुर्सी के बगैर माना ही नहीं. साला था तो कांग्रेसी बाप का बेटा !’
क्रिमिनल नंबर तीन – ‘देखिए इस आंदोलन की जितनी निंदा की जाए उतनी कम है, लेकिन अगर किसान कोठे का आदेश न माने तो ? आप देढ करोड़ लोगों को अवमानना के आरोप में अंदर तो नहीं डाल सकते ! वैसे भी हाल में ही एक वक़ील ने कोठे की क़ीमत 1 रुपए आंकी है, कोई भिखारी भी दे देगा !’
कमरे में सन्नाटा छा गया. क्रिमिनल इन चीफ़ के पेट में अचानक ज़ोरों से मरोड़ उठा और वो टॉयलेट की तरफ़ तेज़ी से भागा.
दस मिनट बाद मीटिंग फिर शुरु हुई.
क्रिमिनल नंबर चार – ‘अगर इन बिलों को वापिस ही ले लिया जाए तो ?’
सारे क्रिमिनल एक स्वर में – ‘पागल हो गया है क्या ? वापिस कर लेंगे ! कैसे ? चलो बिल तो वापिस भी ले लें, फिर दोनों धन्ना सेठ हमारी हालत मरियल कुत्ते-सा नहीं कर देंगे ?’
क्रिमिनल इन चीफ़ की स्वगोक्ति –
‘कुत्ता तो मैं पैदाईश से हूंं और मरते दम तक रहूंंगा, लेकिन मुझ कुत्ते को शेर दिखाने पर जिन्होंने इतने खर्च किए उनको क्या जवाब दूंं ? नहीं-नहीं, वफ़ादारी कुत्ते के ख़ून में होबहै व्यापार की तरह.’
क्रिमिनल नंबर दो – ‘किस सोच में पड़ गए ?’
क्रिमिनल इन चीफ़ – ‘बुरे फंसे यार इस बार. कोई रास्ता नज़र नहीं आता. गोली चलवा नहीं सकता. इन किसानों के बच्चे ही अस्सी प्रतिशत हमारे फ़ौज में हैं. अगर पलट गए तो ? मीटिंग के नाम पर और चूतिया बना नहीं सकता. क्या करूंं ?’
क्रिमिनल नंबर दो के चेहरे पर एक शातिर मुस्कान खिल गई –
‘एक रास्ता है !’
‘क्या,’ सभी चीख पड़े !
‘अभी नहीं. अभी समय नहीं आया है. सोमवार की स्थिति देखकर बताऊंंगा !’
क्रिमिनल नंबर तीन मंद-मंद मुस्कुरा रहा था. किसी का अपदस्थ होना कई लोगों की प्रन्नोति की राह खोल देता है.
प्रधान क्रिमिनल के आवास पर शाम के साए लंबे हो रहे हैं. क्रिमिनल इन चीफ़ पांंचवी बार टॉयलेट गया है. कल रात से उसके दोनों बाप भी उसका फ़ोन नहीं उठा रहे हैं.
क्या इसे ही कुत्ते की मौत मरना कहते हैं ?
- सुब्रतो चटर्जी
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