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किसान आंदोलन : मोदी सरकार नरसंहार की तैयारी कर रही है ?

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किसान आंदोलन : मोदी सरकार नरसंहार की तैयारी कर रही है ?

एक क्रिमिनल की सबसे बड़ी विशेषता होती है कि वह कभी भी माफी नहीं मांगता, और न ही अपने फैसले या कुफैसलों से पीछे पलटता है. चाहे उसकी गलतियों का स्तर किसी भी दर्जे का क्यों न हो. भले ही उसकी गलतियों या मूर्खता के कारण उसका पूरा गैंग ही क्यों न मिट जाये. केन्द्र की क्रिमिनल मोदी-शाह गैंग के पिछले छ: सालों का ट्रैक रिकॉर्ड को देखा जाये तो अपराधियों के इस विशेषता की झलक साफ दीख जायेगी.

कॉरपोरेट घरानों की नुमाइंदगी करते हुए मोदी-शाह का यह क्रिमिनल गैंग भारतीय जनता की अबतक की सबसे बड़ी अनसुनी लूट को सुनिश्चित करने के लिए जिस तरह किसान विरोधी तीन काले कानूनों को देश में लागू किया है, उसका अन्यत्र मिशाल मिलना संभव नहीं है. परन्तु, समस्या तब खड़ी हो गई जब डेढ़ करोड़ किसानों ने इस काले कानून के खिलाफ अबतक की सबसे बड़ी प्रतिरोध शक्ति बनकर मोदी-शाह गैंग की सांस में जाकर अटक गई है, और अपनी मांगों पर मजबूती से डट गई है.

इसी दरमियान यह भी खबरें आ रही है कि मोदी-शाह गैंग ने महत्वपूर्ण प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और दूसरे सत्ता शीर्ष पर बैठे क्रिमिनल लोगों की व्यक्तिगत सुरक्षा से सिख सुरक्षाकर्मियों को हटा दिया गया है. अगर यह खबर सही है तो यह तय है कि किसानों के पीछे न हटने की सूरत में मोदी-शाह गैंग किसान आंदोलन पर सीधे खूनी खेल खेलने का संकेत दे दिया है.

मोदी-शाह गैंग किसानों के इस महान आंदोलन को खून में डूबोकर खत्म करने की कोशिश के तौर पर ही इस महान किसान आन्दोलन को बदनाम करने के लिए कभी खालिस्तानी, कभी देशद्रोही, कभी आतंकवादी तो कभी गुमराह लोगों का असफल नामकरण देने की मुहिम को देखा जा रहा है.

मोदी-शाह गैंग की इस खूनी संभावना को रेखांकित करते हुए लोग सोशल मीडिया पर अपनी बात रख रहे हैं. इन्हीं में एक महत्वपूर्ण आवाज सुब्रतो चटर्जी लिखतेे हैैंं –

बड़ी-बड़ी प्रायोजित ख़बरें हमें छोटी-छोटी किंतु बहुत महत्वपूर्ण ख़बरें नहीं देखने देता. ये होती है शोर की ताक़त और हमारी विश्लेषण करने की शक्ति का अभाव.

आज जो सबसे ज़्यादा ट्रेंड होने वाली ख़बर रही, वह है कंगना का एक ट्वीट, जिसमें उसने किसानों के आंदोलन की तुलना शाहीनबाग के आंदोलन से कर दी. आप इससे असहमत होंगे, आक्रोशित होंगे, और अगर विकृति की हर संभव सीमा पार किए हुए भक्त होंगे, तो इसका समर्थन भी करेंगे. मज़ेदार बात ये है दोनों में से कोई भी पक्ष इस ट्वीट के असल कारण पर नहीं जाएंंगे क्योंकि शोर ने आपकी सोचने की शक्ति को हर लिया है.

एक दूसरी ख़बर आ रही है कि प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और दूसरे सत्ता शीर्ष पर बैठे क्रिमिनल लोगों की व्यक्तिगत सुरक्षा से सिख सुरक्षाकर्मियों को हटा दिया गया है. ये ख़बर अभी अपुष्ट है. इस कायर-हत्यारों को अपनी ग़लीज़ जिंदगी को बचाने की ज़्यादा फ़िक्र होती है, ये सच है इसलिए इस ख़बर पर विश्वास करने को मन करता है.

तीसरी ख़बर ये है कि 96 हज़ार ट्रैक्टर ट्रक के साथ क़रीब डेढ़ करोड़ किसान दिल्ली को हर तरफ़ से घेरे हुए हैं, जो सोमवार से दिल्ली की सप्लाई लाईन काटने की तैयारी में हैं, ताकि दिल्ली के मध्यमवर्गीय चोर, दोगले और दल्ले भी आंदोलन के समर्थन में सड़क पर आने को मजबूर हो जाएंं. दिल्ली के मध्यम वर्ग का नब्बे प्रतिशत यही है, यक़ीन मानिए. उदारीकरण के दौर के पहले के दिल्लीवासियों को जिन्होंने देखा है, वे मुझसे सहमत होंगे.

चलिए, देखते हैं कि क्या स्थिति सोमवार से बनने वाली दिखती है. एक, सरकार बिल्कुल पीछे नहीं हटेगी, किसान बिल पर एकाध मामूली संशोधन को छोड़ कर. दूसरे, किसान बिल्कुल अपनी मांंगों से पीछे नहीं हटेंगे, क्योंकि यह उनके लिए जीवन मरण का प्रश्न है. नतीजा – टकराव. और इस बार टकराव शायद सिर्फ़ विचारों का न रहे. जो अब तक नहीं हुआ वो अब हो सकता है – बलप्रयोग, जो फ़ासिस्ट क्रिमिनल सरकार का आख़िरी हथियार है.

अब इन संभावनाओं के मद्देनज़र पहले की दो ख़बरों की महत्ता को समझिए. शाहीनबाग हिंदू बनाम मुस्लिम बना दिया गया, किसान आंदोलन को सिख बनाम हिंदू बनाने की कोशिश है. गोलियांं सरकार की तरफ़ से चलेगी और इसीलिए बेअंत और सतवंत के डर से सिख सुरक्षाकर्मियों को हटाना लाज़िमी है. ऐसे में कंगना के कथन का अर्थ स्पष्ट हो जाता है. देश के सबसे बड़े नरसंहार की तैयारी चल रही है, आप मानें या न मानें. बस एक समस्या है, आप सिख बॉडीगार्ड तो मारे जाने के भय से हटा देंगे, लेकिन, रातोंरात आप सिख, जाट, राजपूत राइफ़ल को कैसे भंग और नि:शस्त्र कर देंगे ?

शायद वो दुर्भाग्यपूर्ण दिन हमें न देखना पड़े जब भारतीय सेना खुल कर राजनीति में हस्तक्षेप करे, लेकिन 2014 से अब तक अपने हरेक फ़ैसले से भाजपा और विकृत संघ ने भारत का पाकिस्तानीकरण करने की जो निर्लज्ज मुहिम चलाई है, क्या सैनिक शासन उसी मुहिम की तार्किक परिणती नहीं है ?

फ़िलहाल, तड़ीपार और बंदर के लिए हैदराबाद से बुरी ख़बर आ रही है. क्रिमिनल बुरी तरह से स्थानीय निकाय चुनाव हार चुके हैं. निजामियत मिटी नहीं. बेहतर है कि रविवार को मेरे मुहल्ले में पांंच साल के बच्चों का टेनिस बॉल क्रिकेट कॉमिटी के पदाधिकारियों का चुनाव होने वाला है, भाजपा की पूरी टीम को मैं आज से ही प्रचार में जुट जाते देखना चाहता हूंं.

सोमवार से लेकर साल के अंत होने तक सारा खेल है. विश्वास है कि नए साल में न क्रिमिनल इन चीफ़ बचेगा, न उसके गुर्गों. देश को पैसे की ताक़त दिखाने वाले को अब जनता अपनी ताक़त दिखाएगी.

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