भारत में आज भी लालू प्रसाद यादव ब्राह्मणवादी सामंती ताकतों के खिलाफ एक महानायक की भांति खड़े हैं. यही कारण है कि वह आज भी ब्राह्मणवादी सामंती ताकतों के षड्यंत्रों का शिकार होकर जेल में कैद हैं. जबकि ब्राह्मणवादी सामंती ताकतों का पैरोकार न तो जेल ही जाते हैं, और न ही जेल जाने के बाद भी वहां लम्बे समय तक रह ही पाते हैं. क्योंकि उसे बचाने के लिए ब्राह्मणवादी सामंती ताकतों का संरक्षक यह सुप्रीम कोर्ट भी नंगे होकर दौड़ पड़ता है. अर्नब गोस्वामी प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का विकृत ब्राह्मणवादी सामंती चेहरा बुरी तरह पर्दाफाश हो चुका है.
लालू प्रसाद यादव जेल में हैं. लालू प्रसाद यादव का जेल में होना इस बात की तस्दीक है कि देश में ब्राह्मणवादी राजसत्ता का कब्जा बरकरार है. लालू प्रसाद यादव को जेल भेजने का सबसे बड़ा कारण यही था कि ब्राह्मणवादी सामंती मिजाज वाले इस मुल्क में लालू प्रसाद यादव राजनीतिक सत्ता पर विराजमान वह पहला सख्शियत हैं, जिन्होंने ब्राह्मणवादी सामंती मिजाज पर करारा प्रहार किया था. और पूरी ताकत से ब्राह्मणवादी सामंतों के खिलाफ दलितों-पिछड़ों के मन में आत्मसम्मान का बीजारोपण किया था. जिस कारण ब्राह्मणवादियों ने उनपर तीखा प्रहार भी किया था, जिसमें लालू प्रसाद यादव के खिलाफ झूठे-अफवाहों को फैलाना एक मुख्य एजेंडा था.
बेहद अफसोस की बात है कि ब्राह्मणवादी सामंती ताकतों के खिलाफ खड़े लालू प्रसाद यादव जिन लोगों (दलितों-पिछड़ों) के लिए लड़े उन लोगों ने ही उनके खिलाफ जंग छेड़ दी और ब्राह्मणवादी कुप्रचार का शिकार होकर लालू प्रसाद यादव के खिलाफ खड़े हो गये.
लालू प्रसाद यादव जब अफसरशाही के खिलाफ लोगों को जागरूक कर रहे थे, तब भी इन ब्राह्मणवादी सामंती ताकतों ने इनके खिलाफ कुत्सा प्रचार किया था. बावजूद इसके लालू प्रसाद यादव का ही देन था कि आज इन ब्राह्मणवादी सामंती ताकतों के खिलाफ दलित-पिछड़े डट कर खड़े हो पाये हैं.
हलांकि लालू प्रसाद यादव की इस महान देन के पीछे दशकों से चली आ रही नक्सलवादी हथियारबंद आन्दोलन का इन ब्राह्मणवादी ताकतों को ध्वस्त कर देने का विशाल योगदान था, पर लालू प्रसाद यादव ने जमीन पर पनपती इस मनोकांक्षा को पहचानकर उसे राष्ट्रीय स्तर पर उठा दिया.
सामंती और अफसरशाही पर लालू का प्रतीकात्मक प्रहार
आईएएस अफसरों को थप्पड़ मारना, उससे खैनी लगाने को कहना आदि जैसे अनेक ऐसे कार्य थे, जिससे लोगों को पहली बार यह अहसास हुआ कि ये अफसरान उसके मालिक नहीं बल्कि उसके नौकर है. इसके बाद ही वह दौर आया जब लोगों ने सरकारी अफसरशाही और सामंती मिजाज के खिलाफ डट कर बोलना शुरू दिया. उसके पहले तो सामाजिक हालात यह था कि अफसरों को लोग ‘माई-बाप’ और ‘मालिक’ समझते थे, और उसे दुनिया में सबसे बड़ा ताकत समझते थे. जिसके खिलाफ बोलना अक्षम्य अपराध माना जाता था.
लालू प्रसाद यादव के इस सामाजिक सुधार को जब राजसत्ता के जरिये लागू कर रहे थे, तभी उनके खिलाफ ब्राह्मणवादी सामंती ताकतों की गोलबन्दी होनी शुरू हो गई थी. हालांकि अपने बाद के कार्यकाल में लालू प्रसाद यादव इससे थोड़े अलग जरूर हुए परन्तु तबतक सामंती ब्राह्मणवादी ताकतों की मजबूत गोलबन्दी पूरी हो चुकी थी और इन ताकतों ने लालू प्रसाद यादव के खिलाफ एक विशाल षड्यंत्र को अंजाम दिया और ‘चारा घोटाला’ जैसे छोटी-सी घोटाले को इतना विकराल चेहरा प्रदान कर दिया मानो भारत के इतिहास का यह सबसे बड़ा घोटाला हो, जिसके पहले न कुछ हुआ और जिसके बाद न कुछ होगा.
एपी दुराई की आत्मकथा
चारा घोटाले के मुख्य जांच अधिकारी रहे एपी दुराई ने अपनी आत्मकथा के अध्याय 26 का टाइटल दिया है सीबीआइ वर्सेज लालू प्रसाद यादव. इस सेक्शन के पेज संख्या 230,231 और 232 में लिखा है कि सीबीआई ने अपने द्वारा दायर 49 मुकदमो में से 7 में लालू प्रसाद यादव को मुजरिम बनाया है. उन्होंने लिखा है कि लालू प्रसाद यादव एवं कुछ आईएएस को फंसाने का गम्भीर षड़यंत्र किया गया. देश की न्यायिक व्यवस्था में ऐसा होना ठीक नही है. मीडिया ने भी लालू प्रसाद यादव को बिना मुजरिम सिद्ध हुए खुद ही ट्रायल कर उन्हें अपराधी घोषित कर दिया.
जांच अधिकारी रहे एपी दुराई ने किताब में लिखा है कि ‘मैं समझता हूं कि लालू प्रसाद यादव का अहीर, पिछड़ा होना ही उन्हें अपराधी घोषित करने के लिए काफी था. सीबीआई द्वारा लालू को क्रश करने की योजना को मूर्त रूप दिया गया, क्योंकि लालू इस देश की हजारो वर्ष पुरानी सनातन एवं जड़ हो चुकी व्यवस्था को चुनौती दे दिए थे. लालू ने रामरथ रोक दिया था. लालू ने आरक्षण के लिए पुरजोर जोर लगा दिया था. लालू प्रसाद यादव ने मण्डल कमीशन को लागू करवाने के लिए अपनी पूरी पूंजी/ताकत झोंक डाली.
लालू ने रामजेठमलानी को मण्डल कमीशन के केस का वकील हायर कर सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर लड़ाई लड़ने का कार्य किया. लालू ने बिहार में शोषितों को भी जीवंतता दी. दमित-पीड़ित लोग अब लालू के कारण बोलने लगे. आईपीएस अधिकारी एपी दुराई की यह स्वीकारोक्ति इस देश के बहुजन, शोषित, दमित समाज को हजार वर्षों से अपराधी, नकारा, असुर, राक्षस आदि घोषित करने की निकृष्ट परम्परा को उद्घाटित करता है.
एपी दुराई साहब ने जो कुछ भी अपनी किताब में खुद की आत्मकथा में लिखा है वह वंचित समाज की ऐसी व्यथा कथा है जो शायद ही सुनने को मिले. यह देश और इस देश का तथाकथित बुद्धिजीवी जो सदैव ही परजीवी रहा है. कमरों/अर्जकों/उत्पादकों की कमाई का, वह सर्वदा ही श्रम करने वालो को हिकारत की नजर से देखता रहा है. और गाहे-बगाहे जब भी मौका पाया है उन्हें अपमानित व लांछित करने का कुकर्म किया है, जिसका एक घृणित उदाहरण लालू प्रसाद यादव को ‘चारा चोर’ सिद्ध कर डालने का षयंत्र करना है.
एपी दुराई ने जो इस पशुपालन घोटाले के जांच अधिकारी थे, स्पष्ट कर दिया है कि लालू को व कुछ आईएएस को फंसाने की गहरी साजिश हुई. आखिर लालू को फंसाने की साजिश क्यो हुई ? आखिर वह लालू जिन्होंने शिवहर कोषागार में हुए खेल का खुलासा कर रपट दर्ज कराया वही लालू मुजरिम क्यों और कैसे हो गये ? वह जगन्नाथ मिश्र जिसने इस पशुपालन घोटाले का सृजन किया, वह चाराचोर न होकर पण्डित जगन्नाथ मिश्र और खेल को उजागर करने वाले लालू प्रसाद यादव चारा चोर ? – अद्भुत ब्याख्या है इस देश का.
ब्राह्मणवादी सामंती ताकतों के खिलाफ खड़े महानायक
मैं समझता हूं लालू प्रसाद यादव का अहीर/पिछड़ा होना ही उन्हें अपराधी घोषित करने के लिए काफी था. सीबीआई द्वारा लालू को क्रश करने की योजना को मूर्त रूप दिया गया क्योंकि लालू इस देश की हजार वर्ष पुरानी सनातन एवं जड़ हो चुकी व्यवस्था को चुनौती दे दिए थे. लालू ने रामरथ रोक दिया था. लालू ने आरक्षण के लिए पुरजोर जोर लगा दिया था. लालू ने मण्डल कमीशन को लागू करवाने के लिए अपनी पूरी पूंजी/ताकत झोंक डाली. लालू ने रामजेठमलानी को मण्डल कमीशन के केस का वकील हायर कर सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर लड़ाई लड़ने का कार्य किया. लालू जी ने बिहार में मनहीनो को भी जीवंतता दी. दमित-पीड़ित लोग अब लालू के कारण बोलने लगे. लालू प्रसाद यादव वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य के ऐसे महानायक हैं जिनके मान मर्दन का लगातार प्रयास जारी है. और उनको चाराचोर व उनके शासन को जंगलराज कहते फिर रहे है.
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