जेनएयू में विवेकानंद की प्रतिमा का अनावरण प्रधानमंत्री द्वारा किया जा रहा है. आप इसे दोबारा पढ़िए. अबकी बार नाउन नहीं कलेक्टिव नाउन में पढ़िए कि एक विश्वविद्यालय में एक मूर्ति का अनावरण एक देश के प्रधानमंत्री द्वारा किया जा रहा है। क्या ये तथ्य आपको आश्चर्यचकित नहीं करता ?
इस पर जो राजनीति हो रही है उसके इतर आम जनता में इस भव्य आयोजन के प्रति उपजे मनोविज्ञान को पढ़िए कि किस तरह एक प्रधानमंत्री आपके मन के साथ प्रतीकों के माध्यम से खेल रहा है. वह जानता है कि आप विवेकानंद को पसन्द करते हैं. वह यह भी जानता है कि किस प्रकार की डोज कितनी मात्रा में कब देनी है. एक आध्यात्म प्रधान देश में प्रतीकों को बड़ा महत्व है.
पहले आपके मन में ये स्थापित किया गया कि जेनएयू विश्वविद्यालय देशद्रोहियों का अड्डा है, उसके इतर विवेकानंद को हिंदुत्व के सॉफ्ट पोस्टर बॉय की तरह स्थापित किया गया. एक विश्वविद्यालय को विपक्ष बना दिया गया और विवेकानंद को पक्ष बना दिया गया. अब मूर्ति स्थापना को द्वारा विपक्ष पर पक्ष की जीत के रूप में आपके मन में परोसा जा रहा है, जबकि विवेकानंद को पढ़ने और समझने वाले जानते हैं विवेकानंद का सनातन धर्म आरएसएस के राजनीतिक हिंदुत्व से एकदम उलट है.
जेनएयू विश्वविद्यालय से विवेकानंद की आइडियोलॉजी का कोई टकराव नहीं है लेकिन अपने प्रचारतंत्र के बृहद साम्राज्यवाद के बल पर आरएसएस और भाजपा इस बात को आपके मन में बिठाने में सफल हुए हैं कि वही एकमात्र पार्टी और संगठन हैं, जो विवेकानंद को लेकर संवेदनशील हैं. जबकि वही एकमात्र पार्टी और संगठन है जो विवेकानंद के हिंदुत्व पर अपने नकली हिंदुत्व को लेकर परजीवियों की तरह चिपटा हुआ है, जो एक दिन विवेकानंद की विचारधारा को खत्म करके ही दम लेगा.
लेकिन सोचने वाली बात है कि आम जन प्रधानमंत्री के मूर्ति अनावरण से प्रसन्न है लेकिन इस बात से दु:खी नहीं है कि जिस विश्वविद्यालय में प्रधानमंत्री इस प्रतिमा का अनावरण कर रहे हैं, ऐसे कितने विश्वविद्यालय पिछले 6 सालों में खोले गए हैं ? जबाव सबको पता है कि एक भी नहीं. भारतीय राजनीति में प्रचार तंत्र का रोल कितना बड़ा हो चुका है, आप इस बात को इस तरह देखिए कि लोग जेएनयू विश्वविद्यालय जिसमें कि गरीब से गरीब आदमी उच्च शिक्षा की तालीम ले सकता है, उस विश्वविद्यालय को खड़े करने वाले नेहरू, इंदिरा को गाली देते हैं और उसी विश्वविद्यालय में मूर्ति लगाने वाले प्रचारमंत्री की हर अदा पर गद-गद हो रहे हैं.
नेहरू थे जो सिखाते थे कि मंदिर-मस्जिद से जरूरी कारखाने और विश्वविद्यालय हैं, एक ये विचारधारा है जो आपको बताती है कि विश्वविद्यालयों और पुस्तकालयों से अधिक महत्वपूर्ण मूर्तियां हैं. अब तय आपको करना है.
- श्याम मीरा सिंह
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