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सूंघने के अपने मजे हैं

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हवा में किस बदन की
बदबू कितनी घुली है
सब सूंघने में लगे हैं

कल तक कबीले को
सरदार मिल जाएगा

सूंघने के अपने मजे हैं

जब ढाबे पर खाना है
सराय में सोना है
तो घर की क्या जरूरत

इस सुंदर वन के
रोयाल बेंगाल ने
पता लगा लिया है
कौन शिकारी
दांव के इस
पेंचो खम में
कितना माहिर है
कौन कितना सफल व
सुरक्षित शिकार कर सकता है

तरीका
चाणक्य के पूर्व के गणतंत्र का हो
या लिंकन के पश्चात का
कुछ लेना देना नहीं है

बात पैंतीस की हो
या अस्सी प्रतिशत की
जारी देवासुर संग्राम में
जीतना हर हाल
देवताओं को है

लेकिन फिर भी
सूंघने के अपने मजे हैं

  • राम प्रसाद यादव

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ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

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