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लानत है ऐसी अदालत पर

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जश्न ए चिराग
जब सूरज डूब जाएगा
और चांद जब कहीं नहीं होगा आसपास
तुम्हें पूरी छूट होगी
जश्न ए चिराग मनाने की

जब गुमास्ता आएगा
और पूछेगा
क्यों गैरहाजिर है चांद
कह दूंगा अभी क्वारेंटाइन में है
प्रवास से अभी अभी लौटा है

जश्न ए चिराग हो और पटाखे न फूटे
कैसे हो सकता है
सदियों की परंपरा
मिनटों में कैसे टूट सकती है

विगत कई सालों से
अदब से यह छेड़छाड़
नाकाबिले बर्दाश्त है
और उस पर यह कुफ्र
फैसला
लानत है ऐसी अदालत पर

  • राम प्रसाद यादव

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ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

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