हिमांशु कुमार, प्रसिद्ध गांधीवादी
सोशल मीडिया पर अगर आप सांप्रदायिकता के अंधविश्वास के महिलाओं की दोयम स्थिति के या आर्थिक शोषण के विरुद्ध कुछ भी लिखो तो भाजपाई और संघी लोग आकर गालियां देते हैं. बाकी गालियों के अलावा इन भाजपाइयों और संघियों की फेवरेट गाली है कि ‘तू मुल्ले की औलाद है’, मतलब तुम मुसलमान हो. इन संघियों ने पिछले 100 साल मेहनत करके मुसलमान होना एक गाली में बदल दिया है. इस देश में हजारों धार्मिक विश्वास है. इस्लाम भी एक धार्मिक विश्वास है. अभी तक यह बात किसी भी तरह से साबित नहीं हो पाई है कि किसी एक धार्मिक विश्वास वाले लोग ज्यादा देशभक्त हैं और किसी दूसरे धार्मिक विश्वास वाले कम देशभक्त है. भारत में जैसे दूसरे धार्मिक विश्वास है, वैसे ही मुसलमान भी एक धार्मिक विश्वास वाला समुदाय है.
आजादी की लड़ाई सब ने मिलकर लड़ी. देश को बनाने में सभी धार्मिक समुदायों के लोग काम कर रहे हैं. भले-बुरे लोग सभी समुदायों में हैं लेकिन एक खास समुदाय को देशद्रोही, कट्टर, अछूत, नफरत योग्य साबित करने के लिए एक राजनैतिक योजना जरूरी है. आरएसएस ने यही काम किया है.
याद कीजिए 2014 के चुनावों से पहले व्हाट्सएप पर किस तरीके से जवाहरलाल नेहरू, मोतीलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, फिरोज गांधी और राहुल गांधी को मुसलमान साबित करने वाले व्हाट्सएप मैसेज फैलाए जाते थे. गोया कि इन लोगों को इसलिए चुनाव में हराना चाहिए क्योंकि यह लोग मुसलमान है.
अगर किसी देश में एक समुदाय विशेष का होना ही उसकी अयोग्यता बन जाए तो समझ लीजिए कि उस देश में एक राजनीतिक योजना काम कर रही है. आप करोड़ों लोगों को अछूत बनाकर उन्हें राजनीति और दूसरे समाज निर्माण के कामों से दूर कर देते हैं. हजारों सालों तक भारत में ऐसा मेहनतकश जातियों को शूद्र घोषित करके किया गया. शूद्र घोषित करके समाज के सबसे बड़े तबके के लोगों को हथियार रखने राजनीति में भाग लेने व्यापार करने और युद्ध करने की मनाही कर दी गई थी. इसी वजह से हम गुलाम हो गए.
मुट्ठी भर लोगों ने व्यापार राजनीति और ज्ञान पर एकाधिकार कर लिया. अब वही शुद्धतावादी विचार अपना रूप बदलकर मुसलमान बन चुके शूद्रों को नफरत का निशाना बनाकर दूर रख रहा है. राम मनोहर लोहिया ने कहा था जातिवाद हटेगा तो सांप्रदायिकता खत्म हो जाएगी. भारत के सवर्ण हिंदुओं को याद है कि आज जो मुसलमान है, पहले यह शुद्र थे. इसलिए वह इन से नफरत करता है.
सांप्रदायिकता जातिवाद का ही बदला हुआ तथा छिपा हुआ रूप है. मजे की बात यह है कि जो लोग सवर्ण हिंदुओं से जातिवाद की लात खा रहे हैं. वही लोग सांप्रदायिक बनकर मुसलमान बन चुके दलितों को लात मारने में मजा महसूस कर रहे हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सवर्ण हिंदू पुरुषों का संगठन है. यह सवर्णों की सत्ता पुरुषों की सत्ता और अमीरों की हजारों सालों से चली आ रही सत्ता को बनाए रखने के लिए बनाया गया संगठन है.
आजादी की लड़ाई के दौरान भगत सिंह, अंबेडकर गांधी जिस बराबरी की बात कर रहे थे, उससे परंपरागत शासक वर्ग घबरा गया था और उसने अपनी परंपरागत सत्ता को बनाए रखने के लिए आरएसएस का गठन किया था. इसलिए आरएसएस वाले इस बराबरी की मांग से घबराकर एक तरफ तो मुसलमानों को अपना दुश्मन कोशिश करते हैं, वही यह कम्युनिस्टों से भी नफरत करते हैं क्योंकि कम्युनिस्ट बराबरी की बात करते हैं और बराबरी की बात से संधियों को घबराहट होती है.
अब सवाल यह है कि क्या भारत इस नफरत की राजनीति के रहते अपनी आर्थिक हालात सुधर पायेगा ? क्या नागरिकों के बीच प्रेम और सद्भावना बनाए रखी जा सकेगी ? अगर भारत में नागरिकों के बीच नफरत इसी तरीके से बढ़ाई जाती रही और आर्थिक तौर पर इसी तरह बर्बादी जारी रही तो भारत का भविष्य कैसा होगा उसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते. भारत को जल्दी से जल्दी अपनी राजनीति की दिशा बदलनी पड़ेगी वरना उसे बर्बादी से कोई नहीं बचा सकता.
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