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कुणाल कामरा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का हास्यास्पद अवमानना

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कुणाल कामरा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का हास्यास्पद अवमानना

प्रसिद्ध कहानी थी, ‘राजा नंगा है’ कहने पर राजा सरेआम फांसी की सजा मुकर्र करता था. हम राजतंत्र से आगे बढ़ते हुए लोकतंत्र में आ गये हैं, पर मिजाज अभी भी राजा वाली ही है. सुप्रीम कोर्ट एक ओर तो खुलेआम केन्द्र की मोदी सरकार की दलाली करता है और उसके विरोधी विचारधारा वाले लोगों को जेलों में सड़ाकर या अपराधियों के माध्यम से खुलेआम हत्या करवाने में मदद का भरोसा दे रहा है, तो वहीं वह यह भी चाहता है कि देश के लोग इस नकारे ‘राजा’ सुप्रीम कोर्ट के जजों का सम्मान भी करें. उसके नंगई को नंगई कहना एक बड़ा अपराध है. अवमानना का मामला है ताकि उसके नंगई और दलाली पर लोग पुष्पांजलि करें.

यह बेहद शर्मनाक है कि लोकतंत्र में कोई भी संस्थान या तंत्र की प्रतिष्ठा उसके कामों से नहीं बल्कि उसके नकारेपन के खिलाफ न बोलने और उसे नंगा न कहने से बचने में तलाशी जा रही है. सुप्रीम कोर्ट देश में न्यायिक गतिविधियों के लिए जिम्मेदार माना जाता है, परन्तु, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं रह गई है कि देश की पूरी न्यायपालिका सामंतवाद और भ्रष्टचार का सबसे बड़ा गढ़ बन गया है. यही कारण है कि देश की विशाल गरीब आबादी ने अपनी अलग न्यायपालिका की तलाश शुरू कर दी है.

ताजा मामला अर्नब गोस्वामी जैसे बहियात दलाल और बदजुबान को जिस आनन फानन में सुप्रीम कोर्ट ने ‘व्यक्तिगत आजादी’ के नाम पर रिहाई दी है, उसने देश की आम जनता के बीच खलबली मचा दी है. और यह तब है जब देश की इसी ‘संवैधानिक संस्थान’ की व्यक्तिगत आजादी के नाम पर देश के हजारों प्रबुद्ध लोगों, जिसमें औरतें, मर्दों, बुद्धिजीवियों, बुजुर्गों, छात्रों-छात्राओं, किसान यहां तक मृत्यु के करीब पहुंच चुके 83 वर्गीय बुजुर्ग भी आते हैं, को यही सुप्रीम कोर्ट ने देशद्रोही और आतंकवादी बताकर जेलों में सड़ने और मरने के लिए छोड़ दिया है. यह कहना नहीं होगा कि देश के 70 साल के इतिहास में पहली बार यह मौका आया था जब एक बहियात दलाल अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी पर देश के तमाम लोगों ने अपना खुशी जाहिर किया था.

अर्नब की इस आनन-फानन रिहाई को लेकर न केवल देश के अन्दर बल्कि विदेशों में भी सुप्रीम कोर्ट की भारी फजीहत मची हुई है. लोगों ने खुलेआम इस सुप्रीम कोर्ट को ‘वेश्यालयों को कोठा’ कहना शुरू कर दिया है. इससे तिलमिलाई सुप्रीम कोर्ट ने अब अवमानना का डंडा चलाने का फरमान सुनाना चालू कर दिया है. सवाल उठता है कि आखिर वह इस अवमानना जैसे कानून के बेजा इस्तेमाल से अपने कारतूत पर वह पर्दा कैसे डाल सकता है ? लोगों की निगाह में शरीफ का पुतला कैसे बन सकता है ?

ताजा मामला प्रसिद्ध काॅमेडियन कुणाल कामरा के साधारण से ट्विट पर है, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया है, को सुप्रीम कोर्ट का ‘माखौल’ उड़ाना बताया है. सवाल है जो सुप्रीम कोर्ट खुद मखौल है, उसका आखिर माखौल कौन उड़ा सकता है.

अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ कथित ‘अपमानजनक’ ट्वीट के लिए कामरा के खिलाफ आपराधिक अवमानना का केस चलाने की सहमति दी है. अटॉनी जनरल ने कहा है कि ‘यह समय है कि लोग इस बात को समझे कि सुप्रीम कोर्ट पर अकारण हमला करने से सजा का सामना करना पड़ सकता है. कि कॉमेडियन के ट्वीट न केवल ‘खराब टेस्ट’ के थे बल्कि यह साफ तौर पर हास्य और अवमानना के बीच की लाइन को पार कर गए थे. अटॉनी जनरल के अनुसार यह ट्वीट सुप्रीम कोर्ट और इसके न्यायाधीधों की निष्ठा का घोर अपमान है.’

अटर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने ठीक ही प्रसिद्ध काॅमेडियन कुणाल कामरा पर यह आरोप लगाया है कि यह ट्विट सुप्रीम कोर्ट और उसके न्यायधीशों की निष्ठा का घोर अपमान है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों की निष्ठा राज्यसभा के सांसद, राज्यपाल या मुख्यमंत्री वगैरह बनने में है. देश के लोगों को यह गलतफहमी हो गई थी कि सुप्रीम कोर्ट और उसके न्यायधीश देश की जनता के बीच न्याय करने के लिए है. संयोग से यही गलतफहमी कुणाल कामरा को भी हो गई थी, जिसकी सजा उन्हें जरूर मिलना चाहिए.

मोदी सरकार के लिए भांगड़ा नाच प्रस्तुत करने वाले सुप्रीम कोर्ट और उसके जजों से यह उम्मीद करना कि वह राज्यसभा सांसद, राज्यपाल या मुख्यमंत्री जैसे पदों को लालच ठुकरा कर देश की जनता के भलाई के लिए काम करें, यह सुप्रीम कोर्ट और उसके ‘माननीय’ न्यायधीशों को सरासर अपमान है, इसके लिए देश की जनता को सूली पर टांग देना चाहिए. राजा नंगा है कहने की हिमाकत करने वाले देश के लोगों को अबिलम्ब सजा मिलनी चाहिए. संभव हो तो त्वरित कारवाई करने के लिए देश के लोगों पर परमाणु बम वगैरह भी गिराना चाहिए, आखिर यह आधुनिक हथियार किस दिन काम आयेगा ? है न सुप्रीम कोर्ट और उसके माननीय न्यायधीश महोदय ?

अब जब स्टैंडिंग कॉमेडियन कुणाल कामरा खुद को दृढ़ता से प्रतिस्थापित करते हुए कहते हैं कि ‘मैं अपने ट्वीट को वापस लेने या उसके लिए माफी मांगने का इरादा नहीं रखता. मेरा मानना है कि वे अपनों के लिए बोलते हैं. कोई वकील नहीं, कोई माफी नहीं, कोई जुर्माना नहीं, समय की बर्बादी नहीं’ तो इसका यह आशय भी देश के ‘माननीय’ सुप्रीम कोर्ट और उसके न्यायधीशों को समझ में आ जाना चाहिए कि आपके अवमाना, फांसी, जेल और गोलियों की सजाओं से देश की जनता ने डरना छोड़ दिया है. आपने अब तक हजारों-लाखों की तादाद में देश के निर्दोष लोगों को जेल की सलाखों के पीछे डाल रखा है, यह आप पर निर्भर करता है कि आपके नुकीले दांंत-पंजे से और कितनों की बलि लेेंगे ?

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश महोदय ने बताया है कि वह अर्नब गोस्वामी का चैनल नहीं देखते, लेकिन अर्नब के गाली-गलौज करने के अंदाज से बेहद प्रसन्न हैं, तो आज जब आपको यही बातें सभ्य भाषाओं में बताया जा रहा है तो आपके तेवर चढ़ रहे हैं, ऐसा न हो कि देश की जनता आपके खिलाफ बकायदा अर्नब के अंदाज में ही गाली-गलौज पर उतारू हो जाये.

इससे पहले की आपकी इज्जत इस हद तक निलाम हो कि लोग चौक-चौराहे पर गलियाना शुरू कर दें, खुद को केन्द्र की फासीवादी मोदी सरकार और उसके लग्गु-भग्गुओं के चरणों में शरणागत होने से बचें. आपको आले दर्जे का वेतन और सुख-सुविधायें इस देश की जनता अपना और अपने बच्चों का पेट काट कर दे रही है, इससे पहले की देश के लोग आपके खिलाफ उठ खड़े हों, जनता की हित में खड़े हो जाये. इसी में हम सब की भलाई है. देश अब अवमानना के मामलों के डर से राजा नंगा है, बोलना बंद नहीं करेगा.

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