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दुष्यंत दवे का सुप्रीम कोर्ट के महासचिव को अर्णब गोस्वामी के मामले में लिखा एक पत्र

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दुष्यंत दवे का सुप्रीम कोर्ट के महासचिव को अर्णब गोस्वामी के मामले में लिखा एक पत्र

वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार असोसिएशन (SCBA) के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने सुप्रीम कोर्ट के महासचिव को रिपब्लिक टीवी के एडिटर अर्णब गोस्वामी के मामले में बिल्कुल कड़े शब्दों में एक पत्र लिखा है. दवे ने इस चिट्ठी के जरिए अर्णब की जमानत याचिका को सुनवाई के लिए अगले ही दिन लिस्ट करने पर सवाल उठाया है.

दवे ने इस बात पर आपत्ति जताई कि अर्णब की याचिका तो दायर होते ही लिस्ट हो गई, लेकिन ऐसे ही कुछ मामलों में इस तरह की त्वरित कार्रवाई नहीं हुई थी. उन्होंने रजिस्ट्री के महासचिव से यह भी पूछा कि क्या अर्णब गोस्वामी की याचिका पर तुरंत सुनवाई को लेकर चीफ जस्टिस एस.ए. बोबडे ने तो विशेष निर्देश नहीं दे रखे हैं ? गोस्वामी की याचिका पर आज सुनवाई होनी है और दवे ने यह चिट्ठी मंगलवार रात 8.15 बजे लिखी. उन्होंने अपने पत्र में कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम के महीनों जेल में रहने का भी हवाला दिया.

दवे ने चिट्ठी में कहा, ‘मैं यह पत्र सुप्रीम कोर्ट बार असोसिएशन के अध्यक्ष की हैसियत से कल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की बेंच में सुनवाई के लिए लिस्ट की गई याचिका के खिलाफ कड़ा प्रतिरोध जाहिर करने के लिए यह पत्र लिख रहा हूं. मेरा गोस्वामी से कुछ व्यक्तिगत लेना-देना नहीं है और मैं सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाने के उसके अधिकार में किसी तरह का हस्तक्षेप करने के मकसद से यह चिट्ठी नहीं लिखी है. सभी नागरिकों की तरह उन्हें भी सर्वोच्च न्यायालय से न्याय की मांग करने का अधिकार है.’

उन्होंने अपनी चिट्ठी में कहा, ‘गंभीर मुद्दा यह है कि आपके नेतृत्व में रजिस्ट्री कोविड महामारी के दौरान पिछले आठ महीनों से केस की लिस्टिंग में निष्पक्षता नहीं बरत रही है. एक तरफ हजारों नागरिक जेलों में बंद हैं और सुप्रीम कोर्ट में दायर उनकी याचिकाएं सुनवाई के लिए हफ्तों और महीनों तक लिस्ट नहीं होती हैं. ऐसे में यह बहुत दुखद है कि गोस्वामी जब भी सुप्रीम कोर्ट से दरख्वास्त करते हैं तो हर बार उनकी याचिका तुरंत क्यों और कैसे लिस्ट हो जाती है.’

उन्होंने कहा कि सिस्टम की खामियों की वजह से गोस्वामी जैसे लोगों को विशेष सुविधा मिलती है जबकि सामान्य भारतीयों को जेल जाने समेत तमाम तरह की कठिनाइयां झेलनी पड़ती है. कई बार तो उन्हें अवैध और अनाधिकृत तौर पर जेल भेज दिया जाता है. दवे ने सीनियर ऐडवोकेट और कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम का भी हवाला दिया. उन्होंने कहा, ‘यहां तक कि पी. चिदंबरम जैसे प्रतिष्ठित वरिष्ठ वकील की याचिका की भी तत्काल लिस्टिंग नहीं हो सकी थी और उन्हें महीनों जेल में गुजारना पड़ा था जब तक कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत के लायक घोषित नहीं किया.’

दवे ने सेक्रटरी जनरल से सवाल किया कि ‘क्या इस संबंध में मुख्य न्यायाधीश और रोस्टर के मास्टर ने कुछ विशेष आदेश या निर्देश दे रखे हैं ?’ उन्होंने आगे कहा, ‘यह अच्छी तरह मालूम है कि अप्रत्याशित तौर पर किसी केस की सुनवाई के लिए तत्काल लिस्टिंग चीफ जस्टिस के विशेष आदेश के बिना नहीं हो सकती है और न होती है.’ दवे ने फिर से सवाल किया, ‘क्या प्रशासकीय प्रमुख के रूप में आप या रजिस्ट्रार गोस्वामी को विशेष महत्व तो नहीं दे रहे हैं ?’

दवे ने साफ शब्दों में कहा कि गोस्वामी की याचिका की तत्काल लिस्टिंग आधिकारिक शक्तियों का पूरा-पूरा दुरुपयोग है. इससे ऐसा संदेश जाता है कि कुछ विशेष वकीलों के मुदालयों को स्पेशल ट्रीटमेंट मिलता है. उन्होंने आग्रह किया कि जब तक लिस्टिंग के लिए फुलप्रूफ सिस्टम लागू नहीं हो जाए तब तक गोस्वामी की याचिका की भी लिस्टिंग नहीं होनी चाहिए. दवे ने सेक्रटरी जनरल से कहा कि वो इस चिट्ठी को उस बेंच के सामने पेश करें जो गोस्वामी की याचिका पर सुनवाई करेगी.

माननीय सुप्रीम कोर्ट, यह आपके न्याय का कौन-सा सिद्धांत है कि समाज में नफरत फ़ैलाने वाले पत्रकार अर्नब गोस्वामी को तो आनन-फानन में बेल मिल जाता है, पर मानवाधिकारवाद, धर्मनिरपेक्षता और जनजातीय समुदायों के लिए संघर्ष करने वाले 83 वर्षीय फादर ग्राहम स्टेंस, 80 वर्षीय वरवर राव, आनंद तेलतुंबडे, प्रोफेसर साईं नाथ और सुधा भारद्वाज को बिना किसी गुनाह के जेल में बंद रखा जाए ? न्याय का ऐसा विकृत स्वरूप क्या खुद न्याय को ही कठघरे में खड़ा नहीं करता ?

  • अमृत कुमार

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