हिमांशु कुमार, प्रसिद्ध गांधीवादी
अभी औरतों द्वारा अपनी आजादी के बारे में बोलने पर एफआईआर शुरू हुई है. कुछ दिनों में इन्हें मारा जाने लगेगा और फिर हम पूरी तरह एक धार्मिक राष्ट्र बन जाएंगे. जहां जातिवाद, पुरुषवाद, अमीरों की सत्ता हर चीज को परंपरा रिवाज धर्म कहकर लादा जाएगा. पूरी आजादी की लड़ाई और उसके बाद भारत ने जो प्रगति की थी, उसे मटियामेट कर दिया जाएगा.
गोवा लॉ कॉलेज की सहायक प्रोफेसर शिल्पा सिंह के खिलाफ राष्ट्रीय हिंदू युवा वाहिनी ने एफआईआर दर्ज करवाई है. प्रोफेसर शिल्पा सिंह ने फेसबुक पर पितृसत्ता को चुनौती देते हुए मंगलसूत्र की तुलना चेन से बंधे हुए कुत्ते से कर दी थी. मैंने जब से यह खबर पढ़ी है, तब से मैं इस पर सोच रहा हूं. मैं जानने की कोशिश कर रहा हूं कि मंगलसूत्र कब से धर्म का हिस्सा हो गया ?
मुझे लगता है धार्मिक लोगों को एक लिस्ट जारी कर देनी चाहिए कि कौन-कौन सी चीजें उनके धर्म का हिस्सा है ? बिंदी, बिछुआ, कंगन, सिंदूर, आलता, महावर हो सकता है यह सब धर्म का हिस्सा हो. संभव है कल को धर्म वाले काजल, रूज, पाउडर, सुरमा, मस्कारा, फाउंडेशन, शैंपू, साबुन, लिपस्टिक और पता नहीं किस-किस चीज को धर्म से जुड़ा हुआ घोषित कर दे और इन पर लिखने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने लगे. पुलिस की मूर्खता और बदमाशी देखिए जो इस तरह की एफआईआर दर्ज भी कर लेती है.
भारत का संविधान कहता है कि हर नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह वैज्ञानिक समझ बढ़ाने के लिए कार्य करेगा. अब यह तो सामान्य सी बात है कि औरत को ही सुहागन दिखने के लिए मंगलसूत्र पहनने की अनिवार्यता क्यों हो ? पुरुष विवाहित होने के बाद ऐसा चिन्ह धारण क्यों नहीं करता जिससे लगे कि वह भी विवाहित है ? कितने गुस्सा आने वाली बात है कि जब कोई नागरिक वैज्ञानिक समझ बढ़ाने की कोशिश करता है, स्त्री पुरुष की समानता के लिए काम करता है तो उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज होती है.
एक तो धर्म वालों को यह समझ लेना चाहिए की धर्म सिर्फ उनके ईश्वर के विषय में विचार स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य के बारे में उनका दर्शन और धार्मिक कर्मकांड होते हैं. इसके अलावा भाषा, पहनावा, परंपराएं, रीति-रिवाज यह धर्म का हिस्सा नहीं होते. भाषा, पहनावा, परंपराएं, रीति-रिवाज यह सब अलग-अलग जगहों का होता है और हर धर्म में यह एक जैसा हो सकता है. यानी हिंदू और मुसलमानों के रिवाज एक जैसे हो सकते हैं. अब जब से धार्मिक कट्टरता बढ़ रही है, तब से धर्म वाले इन सभी चीजों को धर्म से जुड़ा हुआ बताने लगे हैं. उसी का नतीजा है कि कट्टरपंथी मंगलसूत्र को भी हिंदू धर्म की चीज बताने लगे हैं जबकि यह कुछ ही इलाकों में पहने जाने वाला जेवर है.
सारे भारत में मंगलसूत्र का प्रचलन नहीं है. मैं उत्तर प्रदेश से आता हूं उत्तर प्रदेश में कोई मंगलसूत्र को नहीं जानता था, जबसे टीवी और फिल्मों में मंगलसूत्र दिखाया जाने लगा है तब से उस का प्रचलन बढ़ा है. इसी तरह से करवा चौथ सारे भारत में नहीं जाना जाता था. यह उत्तर भारत के मात्र कुछ इलाकों में ही मनाया जाता था लेकिन अब टीवी और फिल्मों की वजह से दूर-दूर तक इसका रिवाज फैल गया है. यह समस्या हिंदू और मुसलमानों दोनों में है.
धर्म जब सार्वजनिक जीवन राष्ट्रीय जीवन में दखल देने लगे तो उसे उसकी हद दिखाने की जरूरत है. स्त्री-पुरुष समानता, वैज्ञानिक समझ, अकल की बातें, न्याय, धर्मनिरपेक्षता, संविधान अच्छा हो धर्म वाले इससे ज़रा दूर ही रहें. स्त्री पुरुष समानता को कोई भी धर्म अगर रोकने की कोशिश करेगा तो मुंह की खाएगा.
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जब हम मुजफ्फरनगर में रहते थे तो मेरी बहनें आर्य कन्या इंटर कॉलेज में पढ़ती थी. उस वक्त आर्य कन्या इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्य कृष्णा कुमारी जी थी. कृष्णा कुमारी जी सर्वोदयी थी. उनके स्कूल में एक बार स्त्री शक्ति जागरूकता शिविर लगा था. हमारे पिताजी को भी उसमें बोलने के लिए बुलाया गया था. मैं भी उनके साथ चला गया.
वहां कृष्णा कुमारी जी ने भी भाषण दिया था. कृष्णा कुमारी जी ने कहा यह कंगन हथकड़ी जैसे हैं. नथ जानवर की नकेल जैसी है. यह पांव की पायल बेड़ी जैसी है. औरतों को आजादी चाहिए तो पुरुषों द्वारा बनाए गए इन जेवरो से खुद को आजाद करो. पुरुष ने औरत को सुंदर बनकर पुरुष को लुभाने घर के भीतर रहने और सेवा करने के लिए उसे भुलावे में डाल रखा है. महिला जब तक अपने ज्ञान का विस्तार नहीं करेगी, पुरुष की तरह घर से बाहर निकल कर काम नहीं करेगी, तब तक उसकी मुक्ति संभव नहीं है.
मेरी उम्र उस वक्त लगभग ग्यारह या बारह साल की होगी लेकिन इन बातों ने मेरे भीतर गहरे तक असर किया. आज मैं सोचता हूं की 40-45 साल पहले एक महिला खुलेआम मंच पर खड़े होकर यह सब बोल सकती थी. अभी गोवा की प्रोफेसर शिल्पा सिंह ने जब मंगलसूत्र की तुलना कुत्ते की चेन से की तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई. अब दक्षिण पंथियों के सत्ता में आने के बाद पुरुष सत्ता ज्यादा मजबूत हो गई है.
अभी औरतों द्वारा अपनी आजादी के बारे में बोलने पर एफआईआर शुरू हुई है. कुछ दिनों में इन्हें मारा जाने लगेगा और फिर हम पूरी तरह एक धार्मिक राष्ट्र बन जाएंगे. जहां जातिवाद, पुरुषवाद, अमीरों की सत्ता हर चीज को परंपरा रिवाज धर्म कहकर लादा जाएगा. पूरी आजादी की लड़ाई और उसके बाद भारत ने जो प्रगति की थी, उसे मटियामेट कर दिया जाएगा.
अभी अफगानिस्तान में एक महिला पुलिस अधिकारी की दोनों आंखें चाकू मारकर फोड़ दी गई क्योंकि उसका पिता नहीं चाहता था कि वह घर से बाहर जाकर काम करे. लंबे सामाजिक संघर्ष के बाद इंसानियत थोड़ा थोड़ा आगे बढ़ रही है. ब्रिटेन और यूरोप के कई देशों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार सिर्फ 75 साल पहले ही मिला है. अब दक्षिण एशिया में मजहब के नाम पर फिर से औरतों को गुलाम बनाने की कोशिश की जा रही है. कहीं इस्लाम के नाम पर ऐसा किया जा रहा है कहीं हिंदुत्व के नाम पर लेकिन मजहब की आड़ में पुरुषवाद और पूंजीवाद अपना खेल खेलता है. सबसे बड़ी चुनौती पूरे इंसानी समाज के सामने है कि वह और सभ्य बनेगा या मजहब के नाम पर इस दुनिया को और बदसूरत बनाएगा और अंत में खत्म कर लेगा.
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