यह प्रतीकात्मक तस्वीर है
सत्ता का गरूर सर चढ़कर बोलता है. जरूरी चीज है सत्ता पर होना. जब धर्म के पाखंड का ढिंढोरा पीटती सरकार सत्ता सम्भालती है, तब हर अनैतिक कर्म, नैतिकता का चोला ओढ़ लेता है. प्रत्येक अपराध जो जनसामान्य के बीच अमान्य होती है, सत्ता के गलियारे में मान्यता प्राप्त कर लेती है. भ्रष्टाचार, बलात्कार, हत्या, लूटमार, बच्चों की तस्करी, जातिवाद, धर्मवाद आदि जैसे अनैतिक कृत्य नैतिकता का आवरण ओढ़ लेती है. सत्ता पास होने के कारण आम नागरिकों की इसके खिलाफ शिकायत कहीं नहीं ली जाती. पुलिस-थाने पहले ही हाथ खड़े कर देती है अथवा पीड़ितों को ही धमका का चुप करा देती है.
देश में पहली बार इस वीआईपी कल्चर के खिलाफ दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने सशक्त आवाज उठाई गई थी. जब आम आदमी पार्टी भारी बहुमत से चुनाव जीतकर सत्ता में आई तब इसके खिलाफ जबर्दस्त पहल लेते हुए लाल बत्ती वाली इस कल्चर – इसके कचरा कल्चर भी कहा जा सकता है – के खिलाफ धावा बोल दिया. आम आदमी पार्टी के इस कदम का समर्थन समूची देश की जनता ने दिल खोल कर किया. इससे देश की तमाम वीआईपी सरकारों और उसके विधायक, सांसदों, मंत्रियों पर देश भर में भारी दबाव बढ़ गया. परन्तु जल्दी ही सत्ता सुख के आदी शासक वर्ग आम आदमी पार्टी को ही बदनाम करने और जबर्दस्ती उसे वीआईपी सुविधा देने पर अड़ गई, ताकि आम जनता में आम आदमी पार्टी के खिलाफ गलत संदेश जाये. भोंपू की तरह बजते टेलीविजन और चीखते-चिल्लाते उसके एंकर, आम आदमी पार्टी के खिलाफ ताल ठोकने लगे.
अब जब भाजपा सरकारें एक हद तक जनता को बरगला पाने में कामयाब हो गई है, तब उसने नये सिरे से वीआईपी कल्चर को परोसने का कानून बना दिया है. इस कड़ी में भाजपा का चेहरा बने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक आदेश जारी किया है, जिसके अनुसार किसी मंत्री या विधायक के आने पर अधिकारियों को खड़े होकर रिसीव करना और उन्हें उच्च प्राथमिकता भी देना अनिवार्य होगा. अगर मंत्री के आगमन के दौरान अधिकारी व्यस्त हैं तो फोन करके उन्हें इसकी जानकारी दी जाये, साथ ही जल्द फ्री होने की कोशिश करें. सूबे के विधायकों और मंत्रियों को सम्मान देने के लिए कुर्सी से खड़े होकर उनका स्वागत करने और सांसद, विधायकों को चाय-नाश्ता भी कराना है. विधायक-सांसद जब मीटिंग के बाद बाहर निकले तो उन्हें उच्च सुरक्षा दी जाय. यह है भाजपा का राम राज्य, जिसमें आम जनता के ऊपर जनता के द्वारा चुनी गई विधायिका के लोगों का सम्मान है. योगी के शब्दों में ‘‘केन्द्र सरकार के कार्यों से देश के आम नागरिक को जो सुख मिलेगा, वहीं ‘राम-राज्य’ होगा.’’ इसका अर्थ क्या यह लगाया जा सकता है कि ‘‘भाजपा की सरकार के लिए आम नागरिक भाजपा के सांसद-विधायक और मंत्री’’ ही हैं, जिनकी प्राथमिकता उच्च है.
चीजें अगर अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाई है, तो आइये, भाजपा के दूसरे खानदानी राजघराने की बसुंधरा राजे, जो राजस्थान की मुख्यमंत्री हैं, का यह आदेश जो बजाप्ता विधानसभा में ‘बिल’ के तौर पर पेश करने जा रही है, से स्पष्ट हो जायेगा. बसुंधरा राजे राजस्थान विधानसभा में जो बिल पेश करने जा रही है, वह सभी सांसदों, विधायकों, जजों और अफसरों के खिलाफ पुलिस या अदालत में शिकायत से लगभग पूरी तरह मुक्त होगा. सांसदों, विधायकों, जजों और अफसरों के खिलाफ किसी भी तरह की शिकायत करना आसान नहीं होगा – वैसे अभी भी आसान नहीं है – उसे पूरी तरह कानूनी बना दिया जायेगा.
सीआरपीसी में संशोधन के इस बिल के बाद सरकार की मंजूरी के बिना किसी भी अधिकारी, अफसरों, विधायकों-सांसदों के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं किया जा सकेगा. यही नहीं, जब तक पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज नहीं होगी, मीडिया में भी इसके बारे में कोई रिपोर्ट नहीं की जा सकेगी. अगर मीडिया में यह खबर आ गई तो सम्बन्धित रिपोर्टर को दो साल की सजा भी हो सकती है.
बसुंधरा राजे की इस बिल के अनुसार किसी भी जज या अधिकारी के किसी कार्रवाई के खिलाफ जो उसने अपनी ड्यूटी के दौरान की हो, कोर्ट के जरिये भी प्राथमिकी दर्ज नहीं करा सकते. ऐसे मामलों में प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए सरकारी की मंजूरी अनिवार्य होगी, और बिना प्राथमिकी के मीडिया में भी यह खबर नहीं बन सकती. शिकायत दर्ज करवाने के लिए एक सरकार की मंजूरी पाने खातिर एक आम नागरिक क्या-क्या करेगा, हम सभी इससे अपरिचित नहीं हैं.
जाहिर है भाजपा की यह दोनों सरकार अपने कदम मध्य-युग की ओर बढ़ा रही है, जिसमें राजघरानों को किसी की भी हत्या, बलात्कार, छीन-झपट आदि करने का पूरी तरह अधिकार होता था. यह अब नये रूपों में एक बार फिर लाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है, वैसे ही लोगों के द्वारा जिसके खिलाफ इस देश की जनता आजादी का आन्दोलन छेड़ी थी, और यह राजघराने के लोग अंग्रेजों की तरफ से आम जनता व क्रांतिकारियों के खिलाफ जाजूसी करने व कत्ल करवाने का काम करती थी. पुराने राजघराने व उनकी स्वच्छंदता आज नये रूपों में एक बार फिर इन कानूनों के शक्ल में जीवित होने के लिए छटपटा रहा है.
देश में वीआईपी कल्चर के खिलाफ चले आम आदमी पार्टी के जोरदार अभियान से चूले हिल चुकी इस व्यवस्था को पुर्नजीवित करने का कार्यभार भाजपा ने अपने हाथ में ले लिया है. पहले से ही खूख्वांरपन से ओत-प्रोत ये विशेष दर्जा प्राप्त मुख्यमंत्री, विधायक, सांसद, अधिकारी को अब पूरी तरह यह छूट हासिल होगा कि वह देश की आम नागरिक के साथ किसी भी हद तक और किसी भी तरीके का दुष्कर्म कर सकता है, बदले में उसका बाल तक बांका नहीं होगा. देश की आम नागरिकों के हासिल थोड़े-बहुत जो भी अधिकार देश की जनता ने लड़कर हासिल किया था, उसे भी समाप्त करने पर भाजपा सरकार आमदा हो गई है. निश्चय रूप से यह किसी बड़े अनहोनी का संकेत भी है.