मुझे एक रहस्य-रोमांच भरा किस्सा सुनाना है, पर शहर का या किसी व्यक्ति का नाम नहीं बताऊंंगी क्योंकि लोगों की पहचान उजागर करना ठीक नहीं होगा.
भारत का एक शहर है, आई टी हब है ! वहीं पर भाजपा आई टी सेल का एक बड़ा ऑफिस है, जिसमें चौबीसों घंटे देश-सेवा और धर्मोन्नति का काम इन्टरनेट आदि के जरिये होता रहता है. शिफ्ट ड्यूटी चलती है. इन दिनों उन सभी नौजवानों में खौफ़ का माहौल है, जिनकी शिफ्ट देर रात में छूटती है.
अभी तीन दिनों पहले की बात है. आई टी सेल का एक नौजवान अपनी शिफ्ट ख़तम करके रात करीब साढ़े बारह बजे घर लौट रहा था कि ऐन उसके घर के नुक्कड़ के पास आठ-दस श्वेत-धवल धोती-कुर्ता वेशधारी नौजवानों ने उसे घेर लिया, ‘महोदय, आपसे कुछ वार्तालाप करना है.’
नौजवान घबराया, ‘क्यों ? क्यों भाई क्या बात है ?’ दल के नेता ने कहा, ‘घबराने की कोई बात नहीं है. हमलोग ‘अखिल भारतीय हिन्दू धर्म रक्षा सेना’ यानी ‘अभाहिधरसे’ के स्वयंसेवक हैं.’ नौजवान थोड़ा निश्चिन्त हुआ कि अपने ही भाई-बंधु हैं, फिर भी एक खटका मन में लगा हुआ था कि इतनी रात को कैसा वार्तालाप होना है ! फिर दल के नेता ने नाम पूछा. नौजवान ने बताया, ‘.. चतुर्वेदी !’ फिर उसे धीरे-धीरे पास की नीम-अंंधेरी गली की ओर हाथ के हलके इशारे से ले जाते हुए दल-नेता ने कहा, ‘हूंं, चतुर्वेदी ! तब तो चारों वेद पढ़ रखे होंगे आपने !’
‘नहीं, वेद तो नहीं पढ़े हैं …’
‘अबे चूतिये, फिर काहे का चतुर्वेदी ?’ दल के दूसरे सदस्य ने कान के नीचे एक ऐसा बजाया कि सनसनाहट होने लगी. भाषा और भाव के इस आकस्मिक परिवर्तन से नौजवान तो एकदम अकबका गया !
‘अच्छा चल चारों वेदों के नाम बता ?’ दल-नेता ने निर्देश दिया !
‘ऋग्वेद, सामवेद …’ इसके बाद नौजवान सोचने लगा और आसपास देखता भी जा रहा था कि क्या बचाने के लिए कहीं कोई दीख रहा है ?
‘ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद… ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद !’ हर वेद के नाम पर दो-दो चमाट खींचकर लगाते हुए दल-नेता ने गालियों की बौछार कर दी.
‘अभागे, पथभ्रष्ट ब्राह्मण, तुम्हें तो चतुर्वेदी कुलोदभव होने के नाते चारों वेदों के साथ ही ब्राह्मण संहिताओं, उपनिषदों और पुराणों का भी अध्ययन होना चाहिए ! तू तो किसी विधर्मी की दोगली संतान प्रतीत होता है. अच्छा चल बता, चतुर्वेदी ब्राह्मण के कितने गोत्र होते हैं ?’ दल के एक सदस्य ने पूछा.
नौजवान एकदम निर्वाक उन्हें ताके जा रहा था.
फिर एक-एक गोत्र के नाम पर बांंह मरोड़कर एक-एक मुक्का लगाते हुए दूसरे सदस्य ने कहा, ‘आठ गोत्र होते हैं म्लेच्छ ! आठ – दक्ष, वशिष्ठ, धूम्म्य, सौश्रवस,
कुत्स, दीक्षित, भार्गव और भारद्वाज !’ और फिर उसकी झुकी पीठ पर तड़ातड़ थप्पड़ों-मुक्कों की बरसात करते हुए बोला, ‘और आठों गोत्रो को मिलाकर प्रवर कितने होते हैं ? कुल बीस, समझे गधे, कुल बीस !’
अब तीसरे दल-सदस्य ने पूछा, ‘चल शाखा बता, आश्वासलायनी या रारायणी ? कुलदेवी कौन, महाविद्या या चर्चिका ?”
अब नौजवान का कान पकड़कर खडा करते हुए दल-नेता ने हस्तक्षेप किया, ‘अरे यह कोई विधर्मी या म्लेच्छ लग रहा है, जो भेस बदलकर हमारे धर्म का सत्यानाश कर रहा है ! छोड़ो इसे !’ फिर उसने नौजवान से पूछा, ‘यज्ञोपवीत धारण किया है ? और सबसे पहले तो यह पाश्चात्य सभ्यता की निशानी कंठ-लंगोट उतारकर फेंक.’
नौजवान ने टाई उतारकर जैसे ही फेंकी, एक दल-सदस्य ने कमीज़ के बटन नोचते हुए अन्दर हाथ डालकर टटोला और चिल्लाया, ‘अरे गुरुवर, यज्ञोपवीत तो है ही नहीं !’ दल-नेता बोला, ‘मैं जानता था, पहले से ही जानता था.’ फिर लात-मुक्कों की बरसात शुरू हो गयी.
फिर पिटाई रोकने का इशारा करते हुए दल-नेता ने पूछा, ‘क्या मांसभक्षी भी है ?’ नौजवान ने साफ़ झूठ बोल दिया और सोचा कि पिटाई के एक चक्र से तो मुक्ति मिली. तभी एक दल-सदस्य ने चीत्कार किया, ‘और यह नीचे क्या पहन रक्खा है ? जीन्स – अमेरिकी आवारों-लम्पटों-व्यभिचारियों-दुश्चारित्रों का चीथड़ा ! उतार इसे ! फ़ौरन उतार !’ नौजवान एकदम घबरा गया पर निर्देश-पालन के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं था. फिर एक सदस्य ने उसके अंतर्वस्त्र को खींचते हुए कहा, ‘गुरुजी, वीआईपी का कच्छा !’
दल-नेता गुर्राया, ‘इस विदेशी कच्छे से ब्रह्मचर्य-रक्षा होगी हरामज़ादे ? राक्षस की संतान ! बजरंग बली का आशीर्वाद लंगोट कहांं है ? और सिर पर चुटिया भी नहीं है !’ फिर उसने सदस्यों को निर्देश दिया, ‘देख क्या रहे हो ! कर्म सीखने में समय लगेगा, परन्तु इस महापापी को कम से कम ब्राह्मण-वेश तो दो !’
फिर क्या था ! आनन-फानन में नौजवान को आदिम अवस्था में ला दिया गया. फिर एक दल-सदस्य ने झोले से निकालकर उसे एक भगवा लंगोट पहनाया और दूसरे ने मन्त्र बुदबुदाते हुए उसके ऊपर गंगाजल छिड़ककर यज्ञोपवीत पहनाया. फिर तीसरे सदस्य ने फिलिप्स का ट्रिमर जीरो नंबर पर चलाकर उसका पूरा सिर सफाचट कर दिया और चुटिया के स्थान पर बालों का एक वृत्ताकार द्वीप बना दिया.
फिर गंगाजल से भरा एक पीतल का लोटा और एक लाठी हाथ में देकर, चरणों में काष्ठ-निर्मित चरण-पादुका धारण करवाकर दल नेता ने नौजवान को घर की ओर प्रस्थान करने का निर्देश दिया. जाते-जाते उसने चेतावनी देते हुए कहा, ‘ओ दुष्ट नराधम ! धर्म की रक्षा से पहले स्वयं सच्चा हिन्दू तो बन. धर्म के आचार-विचार अपना, ब्राह्मण की तरह रह, यज्ञोपवीत और लंगोट धारण कर, धोती पहन, अंग वस्त्र धारण कर, यम-नियम-आसन कर, संध्या कर, गायत्री मन्त्र का जाप कर, वेदों, उपनिषदों और संहिताओं और भगवदगीता का नियमित अध्ययन कर. बिना स्वयं धर्म का अनुपालन किये तू हिन्दू धर्म की रक्षा कैसे करेगा रे पाखंडी क्लीव पुरुष ? हम जा रहे हैं, पर याद रखना ! हम धर्म की अदृश्य शक्ति हैं. यत्र-तत्र-सर्वत्र तुम पर हमारी दृष्टि है !’
एकदम ब्रह्मचारी ब्राह्मण बालक के वेश में जब आई टी सेल का वह नौजवान रात दो बजे घर पहुंंचा तो उसके पिता सीनियर चतुर्वेदीजी तो अपने पुत्र को पहचान ही नहीं पाए. श्रीमती चतुर्वेदी भी बेहोश होते-होते बची. पुत्र पिता के गले लगाकर भोंकार छोड़कर रोने लगा, फिर उसने अपनी दुर्गति की पूरी कथा सुनायी. चतुर्वेदीजी प्रतापी भाजपा नेता थे. तीन बार के सभासद और एक बार के विधायक थे. अभी भूतपूर्व थे लेकिन अगली बार उम्मीदवारी की प्रतिस्पर्द्धा में थे. क्रोध के मारे वह तो एकदम लुंगी से बाहर हुए जा रहे थे. उनकी जानकारी में ऐसी कोई हिन्दू धर्म-रक्षा सेना का अस्तित्व ही नहीं था. फिर भी उसी समय कई जगाह फोन मिलाकर उन्होंने अपनी जानकारी की पुष्टि कर ली.
अब उन्हें विश्वास हो चला था कि यह साज़िश किसी भी विरोधी दल वाले ने नहीं बल्कि उनकी अपनी पार्टी के भीतर के प्रतिद्वंद्वियों ने की है, तबसे वह लगातार प्रतिशोध की आग में जल रहे हैं. श्रीमतीजी ने अलग खाना-पीना छोड़ दिया है और रोये जा रही हैं. आई टी सेल का नौजवान सेनानी तकिया में मुंंह धंसाये अपने कमरे में पड़ा रहता है. ऑफिस से लगातार आ रही कॉल्स भी अटेंड नहीं कर रहा है. उधर बात न जाने कैसे पूरे मोहल्ले में फ़ैल गयी है. लोग खुसफुस करके मुस्कुरा रहे हैं और ‘फिस्स-फिस्स’ हंस भी रहे हैं.
चतुर्वेदीजी के आकलन के विपरीत मोहल्ले के कुछ और लोगों का कहना है कि यह कुछ वामपंथी लौंडों की शरारत है जो आई टी सेल के नौजवान की कई फेक आई डी जान गए थे और दिन-रात की उसकी भद्दी-अश्लील गालियों और उन्माद भरी बातों से तंग रहा करते थे. मोहल्ले के लड़के इन बातों पर कुछ नहीं बोलते. बस चुपचाप मुस्कुराते हैं.
- कविता कृष्णापल्लवी
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