Home कविताएं हाथरस का दरिन्दा कौन है ?

हाथरस का दरिन्दा कौन है ?

6 second read
0
0
414

हाथरस का दरिन्दा कौन है ?

आप पूछते हैं-
हाथरस का दरिन्दा कौन है ?
और सोच रहे हैं कि
बलात्कारी मिल जाये तो
सर फोड़ दूं
उसके हाथ मरोड़ दूं
हड्डियां तोड़ दूं
फाड़कर छाती उसका खून पी जाऊं.
क्या मैं सच-सच बता दूं ?

हां, तो सुनिए,
बहुत से हाथरस हैं,
बता देता हूं कि उन सबका जिम्मेदार कौन है ?
कोई व्यक्ति है या कोई व्यवस्था ?
हां वह व्यवस्था
जो छूट देती है इन्सान को इन्सान का खून पीने की
जो बढ़ा रही है, अमीर और गरीब के बीच की खाईं
जो व्यवस्था चाहती है कि नौजवान गन्दी फिल्में देखें,
फिल्मी हीरो की तरह हीरोगिरी करें.

संगठित जालिम की हवेली पर अकेले ही
अपनी आस्तीन चढ़ाते हुए चढ़ जाएं
अर्थात असंगठित रहें
संगठित होकर रियल हीरो न बने
फिल्मी हीरो बनकर बेरोजगार रहें, भूखे रहें,
मंहगाई की मार झेलें,
भ्रष्टाचार का दंश झेलें,
कर्ज में पैदा हों और कर्ज में मरें
शराब पियें
जुआ खेलें
फंसे रहें अंधविश्वास, जातिवाद-सम्प्रदायवाद,
नस्लवाद में.
ताकि शोषण और लूट का धंधा बदस्तूर जारी रहे
तथा कोई भगतसिंह बनकर
दरिन्दों का मुंहतोड़ जवाब न दे सके।

और क्रान्तिकारी बदलावों के खिलाफ खड़े
वे लोग भी हैं जिम्मेदार-
फासीवादी शासन के धूर्त समर्थक,
लम्पट बुद्धिजीवी,
सामंती लठैत,
अन्धभक्त फिरकापरस्त,
गाय, गोबर, गंगा के सौदागर,
जातिवाद, नस्लवाद, क्षेत्रवाद के सौदागर
अर्थात, अगड़े-पिछड़े-दलित के नाम पर
जनता का वोट बेचने वाले
देशभक्ति के नाम पर देश बेचने वाले.

और इनके सड़े-गले जनतंत्र के पैरोकार,
सिस्टम पर सवाल खड़े करने की बजाय
‘पप्पुआ बनाम विकास के पापा’ पर बहस
कराने वाले एंकर, लेखक, पत्रकार,
नेता, अभिनेता, अफसर.
इन दरिंदों की सुरक्षा में लगे सांड़
जो जुल्म के खिलाफ मंगल पाण्डे,
मातादीन भंगी बनने की बजाय
बेच रहे अपनी जमीर.

क्या वे भी हैं जो मौन हैं ?
हां इन अपराधों के लिये
वे भी हैं जिम्मेदार जो मौन हैं.
अब बताओ क्या उखाड़ कर फेंक सकते हो
उनकी सड़ी-गली व्यवस्था को ?

नहीं,
यह काम तो सिर्फ जनता ही कर सकती है,
अत: अकेले-अकेले हीरोगिरी मत दिखाओ,
संगठित हो जाओ
क्या माद्दा रखते हो
जातीय-धार्मिक भेदभावों को भुलाकर
संगठित होने की ?
क्या हिम्मत है संगठन के
अनुशासन में रहने की ?

क्या पढ़ने, लिखने, तथा
जनता से सीखने
और जनता को बताने का साहस है ?
यदि नहीं, तो तुम भी जिम्मेदार हो,
हाथरस समेत सारे शोषण,
उत्पीड़न, माबलिंचिंग, समेत
सारे अपराधों के लिये.

  • रजनीश भारती

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध

    कई दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण ये शहर अब अपने पिंजरे में दुबके हुए किसी जानवर सा …
  • मेरे अंगों की नीलामी

    अब मैं अपनी शरीर के अंगों को बेच रही हूं एक एक कर. मेरी पसलियां तीन रुपयों में. मेरे प्रवा…
  • मेरा देश जल रहा…

    घर-आंगन में आग लग रही सुलग रहे वन-उपवन, दर दीवारें चटख रही हैं जलते छप्पर-छाजन. तन जलता है…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…