गिरीश मालवीय
अन्नदाता किसान के वोट से जन्मी मोदी सरकार आज किसानों के लिए भस्मासुर बन चुकी है. पंजाब हरियाणा में नए कृषि कानूनों का कड़ा विरोध किया जा रहा है. आजादी के बाद पहली बार ऐसा देखा गया है कि समाज के सभी वर्ग किसी आंदोलन का वहां पूर्ण समर्थन कर रहे हैं क्योंकि सब इस के दुष्प्रभाव से भली-भांति परिचित है. इन कानूनों में न तो खेत मजदूरों के अधिकारों के संरक्षण का कोई प्रावधान है और न ही जमीन जोतने वाले बंटाईदारों का, न ही भूमि के मालिक किसानों और न ही आढ़तियों का !
यह सबके हितों पर कुठाराघात करने वाला कानून है, चाहे वह मुनीम हो, ढुलाईदार हो, ट्रांसपोर्टर हो, या मंडी के आसपास छोटा-मोटा रोजगार करने वाला यह काला कानून किसान-मज़दूर-आढ़तियों को खत्म करने की साजिश है. मोदी सरकार पूंजीपति मित्रों के जरिए एक नई ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ का निर्माण कर रही है, इसीलिए अडानी-अम्बानी का नाम भी इस आंदोलन में बार-बार लिया जा रहा है.
यह पहली बार हुआ है कि किसी आंदोलन में अडानी-अंबानी ओर मोदी के गठजोड़ को सीधे निशाने पर लिया गया है. मोदी सरकार इस बात से बुरी तरह से घबरा गई है और इसीलिए सरकार ने कृषि बिलों पर बातचीत के लिए पंजाब से कम से कम 31 किसान संगठनों और उनके नेताओं को 14 अक्टूबर को दिल्ली बुलाया है. किसान संगठनों ने इससे पहले पिछले सप्ताह केंद्रीय कृषि विभाग द्वारा 8 अक्टूबर को उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए आयाजित बैठक में भाग लेने के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया था.
दरअसल किसान कृषि कानून और उसके पीछे अडानी-अम्बानी को लाभ दिलाने की मंशा को अच्छी तरह समझ गए हैं इसलिए इस बार वह इनके झांसे में आने वाले नही है. एक बड़ा सवाल तो इन कानूनों को पास कराने की टाइमिंग को लेकर भी खड़ा हो रहा है. कोरोना संकट में ऐसे कानूनों को लाना, किसानों की आवाज को जानबूझकर दरकिनार करने जैसा है.
मोदी सरकार कोरोना का बहाना बनाकर कारपोरेट की पूरी मदद कर रही है. मोदी ने कृषि क्षेत्र में विकास के नाम पर कारपोरेट की सुविधा के लिए एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के तहत एक लाख करोड़ रुपये की फाइनेंस सुविधा की शुरुआत की है. फंड के जरिए किए जाने वाले कार्यों में कोल्ड स्टोरेज, वेयरहाउस, कलेक्शन सेंटर और प्रोसेसिंग यूनिट, परख केंद्र, ग्रेडिंग, पैकेजिंग यूनिट, ई-प्लेटफॉर्म जैसी इकाइयों की स्थापना की जाएगी. इन्ही सारे क्षेत्र में कारपोरेट की गहरी रुचि है.
कोरोना के नाम पर जो 20 लाख करोड़ का पैकेज बनाया गया था, यह उसी का हिस्सा है. फाइनेंस की शर्तों में भी स्पष्ट कर दिया गया है कि यह सार्वजनिक-निजी साझेदारी परियोजना प्रायोजित स्थानीय निकायों को दिया जा सकेगा, जो स्पष्टतः अडानी-अम्बानी जैसे बड़े कारपोरेट को फायदा पुहचाएगा. साफ दिख रहा है कि इन कृषि कानूनों के जरिए कृषि में ईस्ट इंडिया कम्पनी राज की स्थापना करने का रास्ता मोदी जी ने तैयार कर दिया है.
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