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सत्ता के बलि का बकरा बनते सेना-पुलिस

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सत्ता के बलि का बकरा बनते सेना-पुलिस

सेना, अर्द्ध सेना और पुलिस का निर्माण ही देश के आम आदमी को मारने, पीटने और उजारने के लिए हुआ है. यह सब कुकर्म-दुष्कर्म वह आम आदमी पर इसलिए करता है ताकि अंबानी-अदानी जैसे धन्नासेठों की हिफाजत कर सके. इसका सबसे क्रूर दर्शन पिछले दिनों तब हुआ था जब दिल्ली में किसानों ने प्रदर्शन किया था, और इन प्रदर्शनकारी किसानों पर लाठी चलाने के लिए पुलिस को हुला दिया गया था.

एक दौरान एक वक्त ऐसा भी नजारा आया जब किसान पिता के हाथ में अपनी जमीन-फसल को अंबानी-अदानी के चंगुल से बचाने की मांगों का झंडा था तो ठीक उसके सामने उसका बेटा पुलिस के भेष में अंबानी-अदानी के हितों की हिफाजत खातिर लाठी उठाये हुआ था. और पुलिस अधिकारी लगातार उस किसान पिता को पीटने का आदेश पुलिस बने उसके बेटा को दे रहा था. आप इस दृश्य की कल्पना पर दोनों पिता-पुत्र की मनोदशा की कल्पना कर सकते हैं.

यह एक ऐसी परिस्थिति थी जिससे सावधान रहने की कोशिश यह सरकार करती है. यही कारण है कि एक राज्य के आम आदमी को पीटने के लिए दूसरे राज्य की पुलिस भेजता है. एक जिले के आम आदमी को पीटने के लिए दूसरे जिले की पुलिस को लाता है. और यह पुलिस अपने ही पिता समान आम नागरिक को पीटपीटकर मार डालता है, लहुलुहान कर देता है. अंबानी-अदानी के पालतू सत्ता के इशारे पर यह सेना-अर्द्ध सेना और पुलिस किसी भी क्रूरता पर उतर आता है. यही कारण है कि एक समय इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी पुलिस को गुंडा गिरोह की संज्ञा दी थी.

निसहाय आम आदमी पर पुलिसिया क्रूरता जब हद से ज्यादा बढ़ने लगा, नियम-कानून ताक पर रखे जाने लगे तब आम आदमी ने अपना हथियार उठा लिया और प्रतिक्रिया में पलटकर मारना शुरू किया. आम आदमी भी पुलिस पर हमला कर सकता है और थोक के भाव में पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार सकता है, इस भयावह स्थिति की वास्तविकता ने शासक वर्गों की रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा कर दिया. थोक के भाव आम आदमी के हाथों मौत के घाट उतारे जाने वाले पुलिसिया गुंडों को यह बताया जाने लगा कि ‘तुम पर हमला करने वाला आम आदमी, असल में माओवादी है, आतंकवादी है, देशद्रोही है. इसलिए तुम्हें इन्हें मार डालना है.’

अपनी ही क्रूरता से मौत के घाट उतारे जाने वाला यह सेना-पुलिस माओवादी, आतंकवादी, देशद्रोही बता कर अपने ही लोगों को मारना शुरू कर दिया, ताकि वह अंबानी-अदानी जैसे औद्योगिक घरानों के सेवक सत्ता की नजरों में बेहतर बन सके. परन्तु, त्रासदी तब सामने आने लगी जब इस सेना-पुलिस में भर्ती होने वाले किसानों के ही बेटों को यह सत्ता बलि का बकरा और भाड़े के गुंडों से ज्यादा कोई अहमियत देना बंद कर दिया.

मौजूदा सत्ता तो लगातार सेना-पुलिस की न केवल वेतन ही कम कर दिया अपितु अन्य सुविधाएं भी कम कर दिया. मौजूदा संघी सत्ता सेना पुलिस को किस कदर बलि का बकरा बना दिया इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण पुलवामा में मारा गया 44 सेना है, जिसे महज चुनाव जीतने के लिए मोदी सरकार ने चिथड़े उड़वा दिया ताकि देश में राष्ट्रवाद का हंगामा खड़ा किया जा सके. दूसरा उदाहरण चीनी सीमा पर मारा गया 20 सेना का जवान है, जिसके मौत का सौदा मोदी सरकार ने चीनी सरकार से किया और इसके एवज में हजारों करोड़ रुपया लिया.

सेना-पुलिस के जवानों जिसे माओवादी, आतंकवादी, देशद्रोही के नाम पर लोगों को मारने के लिए यह शासक वर्ग ललकारता है, मारे जाने पर कुत्ते की सी दशा में धकेल देता है. उसे न्यूनतम मदद भी देना भी गवारा नहीं. वर्षों पहले मुंगेर के एसपी सुरेंद्र बाबू को माओवादियों को खोज खोज कर मारने के लिए नियुक्त किया गया. जब उसे माओवादियों ने बम से उड़ा दिया, तब उसका बचाव करने बांकि का पुलिस आने के बजाय भाग खड़ा हुआ. उस घायल एसपी को जब माओवादियों ने गोलियों से भून डाला, तब उसका रोता-बिलखता, माफी मांगता चेहरा और हाथ अखबारों में छपा था. बाद में मालूम चला उसका पिता अपनी बेटी की शादी करने के लिए दफ्तर दफ्तर बकायदा भीख मांग रहा था.

आम आदमी के साथ लड़ाई कर आप कुछ भी हासिल नहीं कर सकते सिवाय अपनी बर्बादी के क्योंकि जिसके लिए आप अपनी जान दे रहे हैं, वे आपको नफरत के सिवा और कुछ नहीं देगा. लोग माओवादी, आतंकवादी, देशद्रोही नहीं होता. उसकी कुछ मांगे होती है. उससे बात कर हल करने के बजाय उसे अगर आप गोलियों से उड़ाना शुरु कर देंगे, थानों में हत्या और बलात्कार को अंजाम देंगे तो उस आम आदमी का गुस्सा आपके चिथड़े उड़ा सकता है. कश्मीर के पुलवामा में 44 जवान, छत्तीसगढ़ के सुकमा में मारे गये 76 जवान, बिहार के तोपचांची के थाने को घेरकर 14 पुलिस को जिंदा लोगों ने भून डाला और अभी हाल ही में बिहार में अर्द्ध सेना के 14 सिपाहियों को बम से उड़ा दिया. आप नाम चाहे कुछ भी दें पर वे देश के आम आदमी हैं, जिनकी अपनी मांगें हैं, जिसे आप खत्म नहीं कर सकते, चाहे जितनी खून बहा लें.

वहीं, शासकों के लिए अपने ही लोगों का खून बहाने के बाद भी आपने क्या हासिल कर लिया ? सेना के ही जवानों का यह विडियों आप देख, सुन और समझ सकते हैं, जिसे मौत के मूंह में धकेल दिया जा रहा है.

सैनिकों द्वारा जारी किया गया यह विडियों सेना के आम सिपाहियों की हालत को बखूबी बयां कर रहा है. सेना-पुलिस आम आदमी पर अपनी क्रूरता और हत्या का खुला खेल खेलकर खुद भी सुरक्षित नहीं रह सकते. बेहतर है समय रहते देश की आम आदमी पर हमला करने के बजाय आम आदमी के दुश्मन औद्योगिक घरानों अंबानी-अदानी और उसके चाटुकार सरकार से सवाल किया जाये जो देश में खून की होली खेल रहा है.

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ROHIT SHARMA

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